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________________ पर, जि ] गोम्मटसार-काकी त्रुद्धि-पूर्ति अपने कर्मकाण्डको ऐसा त्रुटिपूर्ण बनाया होगा, नहीं पाई जाती और जिन्हें यथास्थान जोर देनेसे. खासकर ऐसी हालतमें जब कि उनका जीवकाण्ड कर्मकांडका सारा अधुरापन दूर होकर सब कुछ बहुत ही सुसंगत और सुव्यवस्थित जान पड़ता है, सुसम्बद्ध हो जाता है। शेष ८४ गाथाएँ उसमें अवश्य ही इसमें लेखकोंकी कृपासे कुछ गाथाएँ पहलेसे ही मौजूद हैं। इन ७५ गाथाभोंमें ७० छूट गई हैं। गाथाएँ तो कर्मकांडके उक्त प्रकृति समुत्कीर्तन हालमें मुझे प्राचार्य नेमिचन्द्र के 'कर्म प्रकृति', अधिकारमें उपयुक्त बैठती हैं और शेष ५ गाथाएँ नामक एक दूसरे प्रन्थका पता चला और इससे कर्मकाण्डकी ८०८ नंबरकी गाथाके बाद होनी उसको देखनेके लिये मेरी इच्छा बलवती हो चाहिये, क्योंकि इन ५ गाथाओंके बाद कर्मप्रकृति उठी। प्रयत्न करने पर श्रारा जैनसिद्धान्त भवन में जो दो गाथाएँ और दी हैं वे एक काण्डमें के अध्यक्ष पं० के. भुजबलीजी शास्त्रीके सौजन्यसे ८०९ और ८१० नम्बर पर पाई जाती हैं। मुझे इस प्रन्थकी एक दस पत्रात्मक प्रतिकी प्राप्ति अब वे ७५ गाथाएँ कौनसी हैं और उनमें से हुई, जो विक्रम संवत १६६९ की लिखी हुई है। कौन कौन गाथा कर्मकाण्डमें कहाँ पर ठीक बैठती इसमें कुल गाथाएँ १५९ हैं, परन्तु लिपिकर्ताने हैं उसे क्रमशः बतलाया जाता हैगाथाओंकी संख्या १६४ दी है जो कुछ गाथाओं कर्मकाण्डके 'प्रकृति समुत्कीर्तन' नामक प्रथम पर ग़लत अंक पड जानेका परिणाम जान पड़ता अधिकार में मंगलाचरणसे लेकर १५ नं० तक जो है, और यह भी हो सकता है कि ५ गाथाएँ गाथाएँ हैं वे सब 'कर्म प्रकृतिमें भी ज्योंकी त्यों लिखनेसे छूट गई हों, जिसका पता दूसरी प्रतियों पाई जाती हैं और यह बात दोनोंके एक ही प्रकरण के सामने आनेसे ही चल सकता है, अस्तु । होनेको सूचित करती है। १५वी गाथामें सप्तमंगों __इस प्रन्थ-प्रतिको देखने और कर्मकाण्डके द्वारा पदार्थोके श्रद्वानकी बात कही गई है, परन्तु साथ उसकी तुलना करने मेरे आनन्दका पार व सप्तभंग कौनसे हैं यह कर्मकाण्डसे मालूम नहीं नहीं रहा, क्योंकि मैंने जिन त्रुटियोंकी कल्पना की होता, कर्म प्रकृतिमें उनको सूचक निम्न गाथा दी थी वह सब ठीक निकली और उनकी पूर्तिका है जो १६३ नम्बर पर ठीक जान पड़ती है - मुझे सहज ही मार्ग मिल गया । इस प्रकरण ग्रंथ सिपास्थि स्थि उभयं अन्वतम्यं पुणो वि तत्तिदयं । परसे कर्मकाण्डका वह सब अधूरापन और असं- द ख सत्तमंग पावसबसेण संभवदि ॥१६॥ गतपन दूर हो जाता है जो अर्सेसे विद्वानोंको . कर्मकाण्डकी २००की गाथाके बाद, जिसका खटक रहा है । इस 'कर्म प्रकृति प्रकरणको १५९ ।। गाथानों से ७५ गाथाएँ ऐसी हैं जो नक्त काण्डमें नं. एक गाथाकं बढ़ जानेके कारण २१ हो जावा है, कर्म प्रकृतिमे निम्न पांच गाथाएँ और दी हैं, • 'ऐवक पा सरस्वति भवन' बम्बई में भी इस जिनमें कर्म बंधका विशेष एवं संगत वर्णन पाया पन्धकी एक प्रवि। . . . . जाता है:- .
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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