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अनेकान्त [ज्येष्ठ-आषाद, पीर-निर्वाण ० २४६६
पाठवें माने गये हैं और सम्भवतः वेदोंमें भी एवं श्री नेमिनाथ भादि कतिपय वीर्यवर्टीका इन्हींका उल्लेख मिलबा है। इन्हीं ऋषभदेवके उल्लेख मानते हैं । माधुनिक खोजमें जैनियोंज्येष्ठ पुत्र सम्राट भरतके नामसे यह देश भारत- के अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीरके पूर्ववर्ष कहलाता है। बीसवें तीर्थकर श्री मुनिसुव्रत- गामी २३वें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथको नायके कालमें ही मर्यादा-पुरुष रामचन्द्र एवं सभी इतिहासवेत्ता सम्मिलिवरूपसे ऐतिहासिक लक्ष्मण हुए थे । श्रीकृष्ण २२३ तीर्थङ्कर श्री व्यक्ति स्वीकार कर चुके हैं, जो भगवान् नेमिनाथ के समकालीन ही नहीं, बल्कि इनके महावीरसे प्रायः ढाईसौ वर्ष पहले हुए थे । बाजजाद भाई थे। अब कई विद्वान भगवान् अतएव भाधुनिक दृष्टिसे एक विशेष विश्वसनीय नेमिनाथको भी ऐतिहासिक व्यक्ति मानने लगे जैन इतिहास ई० पूर्व नवमी शताब्दीसे प्रारम्भ हैं। गुजरातमें प्राप्त ई० पूर्व लगभग ११ वीं हुआ था यह निर्विवादरूपसे माना जा सकता शताब्दीके एक ताम्रपत्रके माधार पर हिन्दू है। प्रस्तु, यह विषयान्तर है। अब आइये प्रस्तुत विश्वविद्यालय बनारसके सुयोग्य प्रोफेसर डाक्टर विषय पर।। प्राणनाथ विद्यालंकार तो इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति जैनियोंकी दृष्टिमें बिहार' इस विषयपर स्पष्ट घोषित करते हैं। बल्कि प्रोफेसर प्राणनाथ- ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करता हुआ मैं सर्वजी का कहना है कि मोहोनजोदारो' से प्रथम अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीरको ही उपलब्ध पाँचहजार पूर्वकी वस्तुओं में कई शिलाएँ लँगा। भगवान महावीरका जन्म आजसं २५३८ भी हैं जिनमें से कुछ में 'नमो जिनेश्वराय साफ वर्ष पूर्व चैत्र शु० त्रयोदशीके शुभ दिन वर्तमान बंकित मिलता है।
मुजफ्फरपुर जिलेके वसाढ़ नामक स्थानमें हुमा यद्यपि भगवान पार्श्वनाथकं पूर्वके तीर्थहरोंके था, जिसका प्राचीन वैभवशाली नाम वैशाली बस्तित्वको प्रमाणित करनेके लिये हमारे पास था। भगवान् महावीरके श्रद्धेय पिता नृप सिद्धार्थ सबल ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नही फिर भी थे। ये काश्यपगोत्रीय इक्ष्वाकु अथवा नाथ या जैन-प्रन्थोंके कथन एवं आजसे लगभग ढाई. ज्ञातवंशीय क्षत्रिय थे । इनका विवाह वैशालीके तीन हजार वर्ष पूर्व निर्मित अवशेष तथा लिच्छिवी क्षत्रियोंके प्रमुखनेता राजा घेटककी शिलालेखादि से शेष तीर्थकरोंके अस्तित्वका पुत्री प्रियकारिणी अथवा त्रिशलाके साथ हुमा पता अवश्य चलता है। पल्कि कई विद्वान् था। राजा चेटक-जैसे संभ्रान्त राजवंशसे सिद्धार्थरामायण, महाभारतादि प्रन्थों में ही नहीं किन्तु यजुर्वेदादि सुप्राचीन वैदिक साहित्यमें जैन-धर्म
का वैवाहिक सम्बन्ध होना ही इनकी प्रतिष्ठा ३ देखो, 'इण्डियन हिस्टारिकल क्वाटली' माग ७, न० २॥
और गौरवका ज्वलन्त निदर्शन है। जैनप्रन्थों में ४ देखो, कैकालीटोले वाला मथुरा-जैनस्तूप ।
६ देखो, 'संक्षिप्त जैन इतिहास' प्रथम भागकी प्रस्तावना ५देखो, खण्डगिरि-उदयगिरि-सम्बन्धी हाथी-गुफाका और 'वेद पुराणादि ग्रन्थोंमें जैनधर्मका अस्तित्व' ।
७देखो, 'उत्तरपुराण' पृ६०५ ।
शिलालेख।