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________________ वष ३, किरण ८-९] जैनियों की दृष्टि में बिहार ५२३ - सिद्धार्थ नाथवंशके मुकुटमणि कहे गये हैं। जैनसंघ इसी नामसे अधिक परिचित था। यह भाधुनिक साहित्यान्वेषणसे प्रकट हुआ है कि निर्विवाद बात है कि भगवान महावीरके समय शात्रिक-क्षत्रियोंका निवास स्थान प्रधानतया वैशालीमें जैनियोंकी संख्या अत्यधिक थी। वैशाली (बसाढ़), कुण्डग्राम एवं वणियप्रामोंमें चीनयात्री हुएनस्वांग (सन् ६३५) के भारतयात्रा था । साथ ही, यह भी ज्ञात हुआ है कि नाथ- कालतक जैनियोंको संख्यामें वहां कमी नहीं हुई वंशीय क्षत्रिय कुण्ड प्रामसे ऐशान्य दिशामें अब थी, क्योंकि उन्होंने अपने यात्राविवरणमें स्पष्ट स्थित कोल्लागमें अधिक संख्यामें रहते थे। लिखा है कि वैशाली-राज्यका घेरा करीब एक वैशाली के बाहर निकट ही कुण्डमाम वर्तमान हजार मीलका था, वहाँकी जलवायु अनुकूल थी, था, जो संभवतः आजकलका वसुकुण्ड गाँव है। लोगोंका आचरण पवित्र और श्रेष्ट था, लोग जैनप्रन्थोंके कथनानुसार भगवान महावीरका धर्मप्रेमी थे, विद्याकी बड़ी प्रतिष्ठा थी, और जन्म यही पर हुआ था । कोई कोई विद्वान जैनी बहुत सँख्यामें मौजूद थे । तीस वर्षकी कोल्लागको ही महावीर का जन्मस्थान बताते हैं। अवस्थामें भगवान महावीरने संसारसे विरक्त हो परन्तु यह बात दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों अपने आत्मोत्कर्षको साधने एवं संसारके जीवोंको सम्प्रदायोंकी मान्यताके प्रतिकूल है। नाशवंशीय सन्मार्गमें लगानेके लिये सम्पूर्ण राज्यवैभवको क्षत्रिय वजिप्रदेशीय प्रजातन्त्रात्मक राजसंघमें ठुकराकर जंगलका रास्ता लिया । दीन दुखियोंकी सम्मिलित थे । कौटिलीय अर्थशास्त्रसे स्पष्ट है प्रकार उनके उदार हृदयमें घर कर गयी और कि, प्रजातन्त्रीय राजसंघमें क्षत्रियकुलोंके मुखि. पकुलोक मुखि. उनकी सञ्ची संवा बजाने के लिये वे दृढप्रतिज्ञ याओंकी कौंसिल मुख्यकार्यकी थी और इस होगये । विशेष सिद्धिके लिये विशेष तपस्याकी कौंसिल के सदस्योंका नामोल्लेख राजाकं रूपमें होता था । यही कारण है कि भगवान महा. आवश्यकता होती है, यह बात निर्विवाद सिद्ध वीरके पिता सिद्धार्थकुंडपुरके राजा कहलाते थे। है। इसी लिये महावीरको बारह वर्षों तक घोर तपश्चरण करना पड़ा। क्योंकि तपश्चरण ही नाथवंशीय क्षत्रिय मुख्यतः जैनियोंके २३वें आन्तरिक मलको छाँटकर आत्माको शुद्ध, सुयोग्य तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथके अनुयायी थे। बाद एवं कार्यक्षम बना सकता है। इस दुर्धर तपश्चरणको जब भगवान महावीरके दिव्य कर-कमलोंमें की कुछ घटनामोंको ज्ञातकर रोंगटे खड़े होजाते जैनधर्मका शासनसूत्र आया तब वे नियमानुसार , र हैं। परन्तु साथ ही साथ आपके असाधारण उनके उपासक बनगये। बौद्धग्रन्थोंमें भगवान् धैर्य, अटल निश्चय, दृढ़ पात्मविश्वास, अगाध महावीर 'निग्गंथनाथपुत्त' के नामसे ही अधिक साहस एवं लोकोत्तर क्षमाशीलताको देखकर प्रसिद्ध हैं। इसका कारण यह है कि उस जमानेमें भक्तिसे मस्तक झुक जाता है और मुख स्वयमेव ८ देखो, 'कोहिस्य-रुषशास' का मैसूर संस्करण पूछ ४५५ ९ देखो, मिसेज स्टिबेन्सन का 'हार्ट बाफ निम्म' (लंडन) १० देखो, 'बंगाल विहार उड़ीसाके प्राचीन जैनस्मारक पर
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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