SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनियोंकी दृष्टि में बिहार लेखक-पंडित के० भुजवली शास्त्री, विद्याभूषण, स. "जैनसिद्धान्तभास्कर" ] इस महत्वपूर्ण प्रस्तुत विषयका मैं दो भारहे हैं। इतना ही नहीं, सम्मेदशिखर, पावापुर दृष्टियोंसे विचार करूँगा, जिनमें पहली और राजगृहादि स्थानों पर जैनियोंने अतुल दृष्टि पौराणिक और दूसरी ऐतिहासिक होगी। द्रव्य व्यय कर बड़े-बड़े आलीशान मन्दिर जैनियों की मान्यता है कि वर्तमानकालमें निर्माण किये तथा धर्मशालाएँ आदि बनवाई है भारतक्षेत्रान्तर्गत प्रार्यखण्डमें एक दूसरेसे दीर्घ और प्रतिवर्ष हजारोंकी संख्यामें समूचे भारतकालका अन्तर देकर स्व-पर-कल्याणार्थ चौबीस वर्षसे जेनी यात्रार्थ वहाँ जाते हैं। जिस बिहार महापुरुष अवतरित हुए, जिन्हें जैनी तीर्थकरके प्रांतमें अपने परमपूज्य एक-दो नहीं बीस तीर्थनामसे सम्बोधित करते और पूजते हैं । इन करने दिव्य तपस्याके द्वारा कर्म-आय कर मोर तीर्थङ्करोंमें १९ वें तीर्थकर श्रीमल्लिनाथ, २०वें लाभ किया है, वह पावनप्रदेश जनी मात्रके तीर्थकर श्रीमुनिसुव्रत, २१ वें वीर्यङ्कर श्रीनमि. लिए कैसा आदरणीय एवं रसापनीय है-यह नाथ एवं २४ वें तीर्थकर श्रीमहावीरकी जन्म- यहाँ कहनेकी आवश्यकता नहीं । इतना ही भूमि कहलानेका सौभाग्य इसी बिहार प्रान्तको कहना पर्याप्त होगा कि एक श्रद्धालु जैनीके लिए है। मल्लिनाथ और नमिनाथकी जन्मनगरी इस विहारका प्रत्येक कण, जो तीर्थहरों एवं मिथिला, मुनिसुव्रतकी राजगृह तथा महावीर. अन्यान्य महापुरुषोंके चरणरजसे स्पृष्ट हमा की वैशाली है। चौबीस तीर्थदरों में से है, शिरोधार्य तथा अमिनन्दनीय है। इसकी श्रीनमिनाथ और १ ले श्री ऋषभदेवको छोड़-प विस्तृत कीर्ति-गाथा जैन-प्रन्थों में बड़ी श्रद्धासे कर शेष २२ तीर्थकर इसी बिहारसे मुक्त हुए हैं " जिनमेंसे २० तीर्थहरोंने तो वर्तमान हजारी- प्रथम तीर्थकर भी ऋषभदेव इक्ष्वाकुवंशीय बाग जिलान्तर्गत सम्मेदशिखर ( Parshwan- त्रिय राजकुमार थे । हिन्दपुराणोंके अनुसार ath hill ) से मुक्तिलाम किया है और शेष दो ये स्वयम्भू मनुकी पांचवीं पीढ़ीमें हुए बतलाये में से महावीरने पावासे तथा वासुपूज्यने चम्पा- गये हैं । इन्हें हिन्दू ' एवं बौद्ध ' शास्त्राकार भी से । सम्मेदशिखर, पावापुर और चम्पापुर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और युगके प्रारम्भ में जैन-धर्म(भागलपुर ) के अतिरिक्त राजगृह, गुणावा, का संस्थापक मानते हैं । हिन्दू अवतारोंमें यह गुलजारबाग (पटना) जैसे स्थानोंको भी जैनी रखो, भागवत ५१.५. देखो, न्यायविन्दु अपने अन्यान्य महापुरुषोंका मुक्तिस्थान मानते भ०३।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy