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________________ wara [ोड, माह, बीर-विवि सं०१५ श्रापक लोग, जो साधारण स्थितिके थे, पतियों के बहुत कम मिलते हैं) और वह घटने घटते वर्तपास ब्याज पर रुपये लेने लगे। अतः मार्षिक मान अवस्थाको प्राप्त हो गई। सहायताके कारण को श्रापक यतियों के वेलसे ___यतिममाजकी पूर्वावस्थाके इतिहास पर बन गये, कई वैयक-तंत्र-मंत्र भादि द्वारा अपने सरसरी तौरसे ऊपर विचार किया गया है। इस स्वार्थ साधनों में सहायक एवं उपकारी समझ उन्हें उत्थान-पतनकालके मध्यमें यतिसमाजमें धुरंधर मानते रहे, फलतः संघससा क्षीण-सी हो गई। विद्वान. शासन प्रभावक, राज्यसन्मान-प्राप्त अनेक यतियोंको संघसत्ता-द्वारा भून पतला कर पुन: महापुरुष हो गये हैं, जिन्होंने जैनशासनकी बड़ी कर्तव्य पथ पर भारुढ़ करनेकी मामय उनमें भारी सेवा की है. प्रभाव विस्तार किया है, अन्य नहीं रही। इमसे निरंकुशता एवं नेतृत्वहीनताके आक्रमणोंसे रक्षा की एवं लाखों जैनेतरोंको जैन कारण यति समाजमें शिथिलाचार म्वछंदतासे बनाया. हजारों अनमोल ग्रंथरबोंका निर्माण किया पनपने एवं बढ़ने लगा । गमिसमाजने भी रुख जिसके लिये जैन ममाज उनका चिर ऋणी बदल डाला । धर्मपचारके माथ माथ परोपकार रहेगा। अब यति ममाजकी वर्तमान अवस्थाका को उन्होंने स्वीकार किया. भाषक भादिके बामको अवलोकन करते हुए इमका पुन: उत्थान कैसे हो को वे पढ़ाई कराने लगे, जन्मपत्री बनाना, मुह. सकता है। इस पर मैं अपने विचार प्रकट करता दि बतलाना रोगों के प्रतिकारार्थ औषधोपचार हूँ । यद्यपि वर्तमान अवस्था * का वास्तविक चाल करने लगे जिनसे उनकी मान्यता पूर्ववत चित्र देने से तो लेखके अश्लील अथवा कुछ बातों बनी रहे। के कटु हो जानेका भय है एवं वह सबके सामने ___ उनकी विद्वताकी धाक राज दरबारों में भी ही है, अत: पिशद वर्णनकी आवश्यकता भी नहीं अच्छी जमी हुई थी, प्रस: राणामोंमे पन्हें अच्छा प्रतीत होती! फिर भी थोड़ा स्वरूप दिखलाये सन्मान प्राप्त था, अपने चमत्कारोंमे उन्होंने बिना भविष्यके सम्बन्धमें कुछ कहना उचित नहीं काफी प्रभाव बढ़ा रक्खा था । हम राज्य-सम्बन्ध होगा। एवं प्रभावके कारण स्थानकवासी मत निकला जो पहले साधु या मुनि कहलाते थे, वे ही तब उनके माधुषों के लिये इनोंने बीकानेर, जोध यति कहलाते हैं । पतनकी करीब करीब चरम पुर प्रादिसे ऐसे माज्ञापत्र भी जारी करवा दिये सीमा हो चुकी है । नो शास्त्रीय ज्ञानको अपना थे जिनसे वे उन राज्यों में प्रवेश भी नहीं कर सकें। आभूषण समझते थे, ज्ञानोपासना जिनका व्यसन १८ वी शताब्दी तक यति-समाज में जान सा था,वे अब पाजाविका,धनोपार्जन और प्रतिष्ठापासना सतत चालू थी, अतः उनके रचित बहुतमे ला अच्छे पच्छे अन्ध इस समय तक मिलते हैं; इसका संक्षेप में कुछ वर्णन कालरामजी बरदिया पर १९वीं शताब्दीसे झानोपासना क्रमशः घटती लिखित 'मोसवाल समाजको वर्तमान परिस्थिति' ग्रंथ चली (मतः इम शताब्दीके विद्वत्तापर्ण प्रन्थ में भी पाया जाता है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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