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वर्षे ३, किरव -
यति-समाज
दरबारों में भी उनकी प्रतिष्ठा जम गई । जनतामें तक नहीं मिलता था । पाटण उस समय उनका तो प्रभाव था ही, राजाश्रय भी मिल गया; बम केन्द्रस्थाने था । कहा जाता है कि वहां उस
और चाहिये क्या था ? परिग्रह बढ़ने लगा, ममय चैत्यवासी चौरामी आचार्योंके अनग क्रमशः वह शाही ठाटबाट मा हो गया । गहो अलग उपाश्रय थे । सुविहितोंमें उम ममय श्री तकियोंके महारे बैठना, पान खाना, स्नान करना, वर्द्धमानमूरिजी मुख्य थे। उनके शिष्य जिनेश्वरशारीरिक सौन्दर्य बढ़ानके माधनोंका उपयोग, मूरिम जैनमुनियों की इननी मार्गभ्रता न देखी जैसे बाल रखना, सुगंधित तेल और इत्रफनेलादि गई, अतः उन्होंने गुरु जीसे निवेदन किया कि मेवन करना, और पुष्पमालाओंको पहनना श्रादि पाटण जाकर जनताको मच्च माधुत्व का ज्ञान विविध प्रकारके प्रागम-विरुद्ध आचरण प्रचलित कराना चाहिये, जिमसे कि धर्म, जो कि कंवल हो गये ।
बाहरके आडम्परोंमें ही माना जाने लगा है,
वास्तविक रूपमें स्थापित हो सके। इन विचारों मुविहित मुनियोको यह बातें बहन अग्यसें. के प्रबल आन्दोलनमे उनमें नये माहमका सञ्चार उन्होंने सुधारका प्रयत्न भी किया, पर शिथिला- हुआ और वे १८ मुनियोंके माथ पाटण पधारे। चारियोंक प्रबल प्रभाव और अपने पर्ण प्रयन्त्र उम ममय उन्हें वहाँ ठहरनेके लिये स्थान भी अभावकं कारण मफल नहीं हो सके। ममथ नहीं मिला पर आखिर उन्होंने अपनी प्रतिभासे आचार्य हरिभद्रसूरिन भी अपने संबोध-प्रकरण स्थानीय गजपुरोहितको प्रभावित कर लिया, चत्यवाभियांका बहुत कड़े शब्दोंम विरोध किया और उमीकं यहाँ ठहरे । जैमा कि पहले मोचा है । इन प्रकरण चैत्यवानका म्वरूसिट माग गया था, चैत्यवामियों के माय विराध और प्रकट होना । प्रसिद्ध करावा. वारका मुठभेः अवश्यम्भावी थी उन लोगोन जिलेश्वरमेरे बिना नही फटना" । ममयकं परिवार पर मूरिजीके अाने का समाचार पनि ही जिम किमी होने पर हा काय हश्रा करते है। नाभी जयना प्रकारमे उन्हें लाछिन कर निर्गमित करानकी परा नही पक जाता, तब तक नहीं फटता । या. ठान ली। विरुद्ध प्रचार उनका पडला हथियार हवी शताब्दी में चैत्यवासियों का प्रावल्य इन बड
था। उन्होंने अपन कई शिप्यों और आश्रित गया कि मुविहितोंको उतरन या ठहरनका स्थान
व्यक्तियों को यह कहा कि तुम लोग मवत्र इम
बानका प्रचार करो कि “यह माध अन्य गाजों के ___ * विशेष जानने के लिये देखें हरिभद्र मूरिजी छद्मवेशा गुप्तचर हैं, यहाँका प्रान्तरिक भेद प्राप्त रचित संवोध-प्रकरण, गणधरमाईशतक वृहद वृत्ति, कर राज्यका अनिष्ट करेंगे । अत: इसका यहाँ संघपटकवृनि श्रादि । पं० बेचरदामजी रचित, लैन रहना मंगलजनक न होकर उलटा भयावह ही है। माहित्य माँ विकार थवार्थी थयेली हानी' ग्रन्थप्रे भी जितनी शीघ्र ही मके इनको यहाँमे निकाल देना संबोध मस्तरीके आधारसे अच्छा प्रकाश डाला गया है। चाहिये। राष्ट्रके हितके लिये हमें इस बानका