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भनेकान्त
ज्येष्ठ, प्राषाढ, वीर निर्वाण सं०२११६
भा सकता।
मुनियोंकी कुछ नहीं चल सकी।
हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि भविष्य जब पतन या मम्राट संप्रति * के ममय में जैन मंदिरोंको उत्थानका होता है तब एक ही ओरसं पतन या संख्या बहुत बढ़ गई । मुनिगण इन मन्दिरोंको उत्थान नहीं होता, वह चारों ओर में प्रवेश कर अपने ज्ञान-ध्यान कायमें माधक ममझ कर वहीं अपना घर बना लेता है । यही बात जैनश्रमण- उत्तरने लग । वनको उपद्रवकारक ममझ कर, संस्था पर लागू है । जैनागमोंके अनुशीलन क्रमशः वहीं ठहरने एवं स्थायी रूपसे रहने लगे। पता चलता है कि पहले ज्ञानबल घटने लगा। इस कारण उन मन्दिरोंकी देखभाल का काम भा जंबुस्वामीसे कंवलज्ञान विच्छंद हो गया, भद्रबाहु उनके जिम्मे आ पड़ा, और क्रमशः मन्दिरोंके मे ११ मे १४ पूर्वका अथ, स्थूजिभद्ने ११ से १४ माथ उनका मम्पर्क इतना बढ़ गया कि ये मन्दिरों वाँ पूर्व मूल और वनस्वामिसं १० पूर्वका ज्ञान को अपनी पैतृक मम्पत्ति (बपौती) ममझने लगे। भी विच्छिन्न होगया है। इस प्रकार क्रमशः ज्ञान चैत्यवामका स्थलरूप यहींसे प्रारम्भ हुआ मालूम बल घटा और साथ ही साथ चारित्रको उत्कट पद्धता है। एक स्थानमें रहने के कारण लोकसंमर्ग भावनायें एवं आचरणायें भी कम होने लगीं । बढने लगा, कई व्यक्ति उनके बढ़ अनुयायी और छोटी-बड़ी बहुत कमजोरियोंने एक ही माथ श्रा
4 आ अनुरागी हो गये । इमीसे गच्छोंकी बाडाबन्दीकी दबाया। इन माधारण कमजोरियोंको नगण्य नींव पडी। जिम परम्परा कोई ममथ आचाय ममझ कर पहले तो उपेक्षा की जाती। पर एक दमा और उनके पृष्ठपोषक तथा अनुयायियांकमजोरी आगे चलकर-प्रकट होकर-पडोमिन की संख्या बढ़ी, वहा परम्पग एक स्वतन्त्र बहुत सी कमजोरियोंको बुना लानी है, यह बात गच्छरूपम परिणत हो गई: बहुतम गच्छोंक नाम हमारे व्यावहारिक जीवनमे स्पष्ट है । प्रारम्भ में तो स्थानोंक नामसे प्रसिद्ध हो गये । रुद्रमनीय, जिस शिथिलताको, माधारण समझकर अपवाद- मंडरक उपकैश इत्यादि इम वात के अच्छे उदा. मार्गके रूपम अपनाया गया था, वही श्रागे चल हरण हैं। कई उम परम्पराक प्रसिद्ध अाचार्यके कर राजमार्ग बन गई । द्वादश वर्षीय दुष्काल में किसी विशिष्ट कायम प्रसिद्ध हुर, जेमे खरतर, मुनियोंको अनिच्छासे भी कुछ दोषांके भागो तपा आदि । विद्वता आदि सद्गुणोंके कारण बनना पड़ा था, पर दुष्काल निवर्तनकं पश्चान भी उनके प्रभावका विस्तार होने लगा और राजउनमेंसे कई व्यक्ति उन दोषोंको विधान के कमें - म्वीकार कर खुल्लमखुल्ला पोषण करने लगे। उन * कहा जाता है सम्प्रनिने माधुओं की विशेष की प्रबलता और प्रधानताकं आगे मुविहिताचागे भक्तिपे प्रेरित होकर कई ऐसे कार्य किये जिससे उनको ___ इस सम्बन्धमें दिगम्बर मान्यताके लिये "अने- शुद्ध ग्राहार मिलना कठिन हुआ और गजाश्रयमे कान्त" वर्ष ३ किरण में देखें।
शिथिलता भी पा घुमी।