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________________ %E TRIPIN PALM ज्येष्ठ, भाषाह, बीर-नि: RAMESH परंपरकायनी पर विर विदित होता है। ऊहापोहोकाइस प्रकार दिसते . TEE बालोनाका प्रथम प्रकामारम्भालुमा, बालिका मा सर्भुित कारणों से कोई तब उसमें प्रथम समूहान और बौद्धामलोगोंकाRFभी विचारसीला विकास समाविषयक पत्रकार प्रतीत होता है समयसी परिमाणमें कथनको पूर्णनमा समस्या गंभीर निवासिक हो भी प्रतिज्ञासाकालिएबीहाणकर्मको पावर इंनाफारविचाक भयोगमा वह लो, पौरारिपकता अदिका संशयोंकी बहुधानितिका नया साहिएवं मास में उन तत्कालीन मनोधियों को त्यिक रचना निर्माणद्वारा अपनेको संतुष्ट अध्यन कर के लिए एक अभ्यास पेश, करेगा करमापा मिलबासी भोइस भावना यद्यपि का चामिल इतिहासको वाम घटनाओंको. प्रभावित प्रतीत होते हैं इससे उनकी राष्ट्री-प्रमाणित करत में असमर्थ है, तथापि वह परंपरा यताकों और रुस्मुखता हुई । और इस प्रकार राष्ट्रीयशान प्रतिनियत समयकी खास घटना दूससीकाल भाव और परिणाममें साहित्यिक रहा होनेकावारण जितनीय है। मुझे, अधिक सन्देह है.. जिसके परिचायक कुरम, बोन कारिफ्यम;' प्रादि कि कहीं आनहीं सदीका परम्परा कथन जैनियोंके... तात्कालिक मन्थ हैंहिन्दु लोग सबके बन्न। पूर्ववर्ती संगम आन्दोलनको हल्की पुनरावृत्ति तो, आएं और उनके भानसे गाष्ट्रीय मामृतिका नूतका नहीं है। हमारे पास इस - बावक प्रमाण है. कि द्वार खुला जिस भोगन्द्राविड़ोंका सोवासेपूर्ण वनतंही संगमके सस्थापनके लिये मद्धरा गये थे। जीवमा और झन माहित हुम हम बोन वे जैन वैयाकरण और विद्वान थे। वे दी शता संकीका उल्लेख किए बिना तामिल- साहित्य : बिक, कर्नाटक माँतीय संस्कृत वैयाकरया, जैसेन्द्र : सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कह सकते: तयिती व्याकरणकरचयिता, और सस्कृत व्याकरणके. साहित्य खासेकर पिछला उमा बीन संगमोत्री आठ प्रामाणिकरचमकारों में देवबंदि पख्यपादके. याकडेमी teaadies) का बल्लेखा करता, अनमतम शिष्य थे । यथार्थ में वह संगम अपने धर्स, है, जिनकी अधीनतामें तामिल साहित्यका प्रारमें संजाम जैन, साधुओं और विद्वानोंक महाः उभय हुआ है। 'संगमाची बहुसी काया तो विद्यालय के सिवाय अन्य नहीं हो सकता। इस , पौराशिनी में छुपी हुई पुस्तक संगम साहित्य अान्दोलनने मामिल देशमें संपम्के विचारको.. केनामसे मोनोजानें मालेमिंट: संग्रहदश कमि. पहिली बार उत्पन्न किया होगा। यह अधिक तामों आदि प्रमोसे मंगा-साहिकका रफललेखा संभव है कि सातवीं महीमें जैलियों का निदयता नहीं है। भानुनिक परिचमात्य विद्वानीका सह पूर्वक संहार करने के अनन्तर-सैदिक हिन्दु मसाजन परिणामीनिकालमा सका है कि कानपूरमी मारमण ने अपने अस्को सावस्थित र अयान किया। कामिया और किसी मस्तिष्कको होस और संगमों के सालार्थ जे -धर्म गुरुओं उप्र श्री शिवाकिपिजिनका मगर चलेका सामें संजाम हुसे होंसे ताकि हमने साहित्यकी किन ingat, संगम पार बिसयमें महिला प्रायणिकशा और दो # यह एक
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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