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________________ वर्ष ३, किरण १] तामिल भाषाका साहित्य संप्रदाय तामील देशके मैदान में बहुत विलम्बसे ठहरे थे तथा अपने देशको वापिस जाना चाहते आया होगा, कारण यह बात हिन्दुधर्मके पश्चात थे, उनका यह वापिस जाना पांड्य नरेशको इष्ट कालवर्ती उस पुनरुद्धारसे पूर्णतया स्पष्ट होती है, नहीं था। अतः उन सबोंने समुदाय रूपसे एक जिसने दक्षिणमें जैनियोंकी प्रभुताको गिराया। रात्रिको पांड्य नरेशकी राजधानीको छोड़ दिया । __ साधारणतया यह कल्पना की जाती है कि, प्रत्येकने एकर ताड़ पत्र पर एक २ पद्य लिखा था चन्द्रगुप्त मौर्यके गुरु भद्रबाहुके समयमें जैनियोंने और उसको वहाँ ही छोड़ दिया था। इन पद्योंके दक्षिण भारतकी ओर गमन किया था और उत्तर समुदाय में "नालिदियर' नामक ग्रंथ बना है। यह भारतमं द्वादश वर्षीय भयंकर दुष्काल आने पर परम्परा कथन दक्षिण के जैन तथा अजैनोंको भद्रबाहु मंपर्ण जैन संघको दक्षिणकी ओर ले गए मान्य है। इससे इम बातका भी समर्थन होता है थे और उनका अनुसरण उनके शिष्य चन्द्रगुप्तने कि तामिल देश भद्रबाहुक जानेसे पूर्व जैन नरेश किया था एवं अपना राज्यासन अपने पुत्रको थे। अब स्वभावतः यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि, प्रदान किया था। वे कुछ समय तक मैमूर प्रांतमें वह कौनमा निश्चित काल था जब जैन लोग ठहरे। भद्रबाहु और चंद्रगुप्त ने श्रवणवेलगोलाके तामिल देशको ओर गए ? तथा ऐसा क्यों हुआ? चंद्रगिरि पर्वत पर प्राण त्याग किया तथा शेष परन्तु हमारे प्रयोजनके लिए इतना ही पर्याप्त है लोग तामिल देशकी ओर चले गए । इन बातोंको यदि हम यह स्थिर करने में समर्थ होते हैं कि, पौर्वात्य विद्वान् स्पष्टतया स्वीकार करते हैं, किन्तु ईसासे ४०० वर्ष पूर्वसे भी पहले दक्षिणमें जैनधर्म जैमा मैंने अन्यत्र कहा है,यह जैनियोंका दक्षिणकी का प्रवेश होना चाहिये । यह विचार तामिल ओर प्रथम प्रस्थान नहीं समझना चाहिये । यही विद्वानोंकी विद्वत्तापूर्ण शोधसं प्राप्त परिणामोंके बात तर्क संगत प्रतीत होती है कि, दक्षिणकी ओर अनुरूप है । श्री शिवराज पिल्ले "आदिम तामिइस आशासे गमन हुआ होगा कि सहस्रों साधुओं लोंके इतिहास में आदि तामिलवासियोंके सम्बन्ध को, बंधुत्व भावपूर्ण जातिके द्वारा हार्दिक स्वागत में लिखते हैंप्राप्त होगा। खारवेलकं हाथीगुफा वाले शिलालेख जमा कि मैं अन्यत्र बता चुका हूँ, आर्य में यह बात स्पष्ट होती है कि सम्राट् खारवेलके लोगोंके संपर्कमें आने के पूर्व द्रावेड़ लोग विशेषकर राज्याभिषेकके समय पांड्य नरेशने कई जहाज भौतिक मभ्यताके निर्माण करने, वैयक्तिक एवं भरकर उपहार भजे थे । खारवेल प्रमुख जैन- मामाजिक जीवनको अनेक सुविधाओंको प्राप्त सम्राट थे और पाड्यनरेश उसी धमके अनुयायी करने में लगे हुए थे, इसलिए स्वभावतः उनकी। थे; ये बातें तामिल-साहित्यके शिलालेखसे स्पष्ट जीवनियोंने भौतिक रंग स्वीकार किया और वे होती हैं। तामिल ग्रंथ 'नालिदियर" के सम्बन्धमें उस रूपमें तत्कालीन साहित्यमें प्रतिविम्बित हुई यह कहा जाता है कि, उत्तरमें दुष्कालके कारण धार्मिक भावना उस समय अविद्यमान थी और अष्ट सहस्र जैन साधु पांड्यदेशमें पाए थे, वहाँ वह उनमें पीछे उत्पन्न हुई थी। सब बातों एवं
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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