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________________ अनेकान्त.. [ज्येष्ठ, भाषाढ़, बीर-निर्वाध सं०२४१५ उपदेश वे क्षत्रियवीर देते थे जो धनुष बाण लेकर उनकी रुचिके अनुसार भोजन कराया गया, भ्रमण करते थे और जिनका समाम संबंधी कार्यों कारण वे पके शाकाहारी नहीं थे । यह बातें से विशेष संबंध रहा करता था। अहिंसा सिद्धान्तका महत्व तथा उसकी प्रबलताको यह विषय प्रज्ञात है कि उनका अहिंसासे संबंध स्पष्टतया बताती हैं । ये बातें तामिल साहित्यमें भी कैसे हुआ, किन्तु यह बात सन्देह रहित है कि वे भली भाँति प्रति-विम्बित होती हैं, जब कि जैन लोग भहिंसा-सिद्धान्तके संस्थापक थे । ये क्षत्रिय दक्षिणकी ओर गये थे और उनने तामिल साहित्य नेता जहाँ कहीं जाते थे अपने साथ मूल अहिंसा के निर्माणमें भाग लिया था। प्रारंभिक जैनियोंने धर्मको ले जाते थे, पशु-बलिके विरुद्ध प्रचार अपने धर्म प्रचारका कार्य किया होगा, और करते थे तथा शाकाहारको प्रचलित करते थे। इसलिये वे देशके आदमनिवासियोंके माथ इन बातोंको भारतीय इतिहास के प्रत्येक अभ्यता निःसकोच भावसे मिले होंगे । आदिमानवामियों को स्वीकार करना चाहिये । यह बात भवभूतिके के साथ उनकी मैत्रीसे यह बात भी प्रगट होनी नाटक, उत्तर राम-चरित्रमे बाल्मिीकि-बाश्रमकं है। एक दृश्यमें वर्णित है। जनक और वशिष्ठ अतिथि जिन देशवासियोंके विरुद्ध आर्य लोगोंको के रूपमें आश्रम पहुँचते हैं । जब जनकका अति- संग्राम करना पड़ा था, वे दस्यू कहे जाते थे । थि सत्कार किया जाता है तब उन्हें शुद्ध शाकाहार यद्यपि अन्यत्र उनका निंदापूर्ण शब्दोंमें वर्णन कराया जाता है, आश्रम स्वच्छ और पवित्र किया किया गया है, किन्तु उनका जैन साहित्यमें कुछ जाता है किन्तु जब आश्रममें वशिष्ठ पाते हैं तब सम्मानके साथ वर्णन है । इसका एक उदाहरण एक मोटा गो-वत्स मारा जाता है । आश्रमका यह है कि वाल्मीकि रामायणमें जो बंदर और एक विद्यार्थी व्यंग्यके रूपमें अपने साथीसं पूछता राक्षसके रूपमें अलंकृत किए गए हैं, वे जैन रामाहै कि, क्या कोई व्याघ्र आश्रममें आया था । यणमें विद्याधर बताए गए हैं। जैनसाहित्यसे यह दूसरा छात्र वशिष्ठका अपमान पूर्ण शब्दोंमें बात भी नष्ट होती है कि आर्य वंशीय वीर उल्लेख करनेके कारण उसे भला बुरा कहता है। क्षत्रिय विद्याधरोंके यहाँकी राजकुमारियोंके साथ प्रथम विद्यार्थी क्षमा मांगता हुमा अपनी बातका स्वतंत्रतापूर्वक विवाह करते थे । इस प्रकारको इस प्रकार स्पष्टीकरण करता है कि मुझे ऐसा वैवाहिक मैत्री बहुत करके राजनैतिक एवं यौद्धिक अनुमान करना पड़ा कि आश्रममें कोई व्याघ्र कारणोंसे की जाती थी। इसने अहिंसा सिद्धान्त जैसा मांसाहारी जानवर अवश्य पाया होगा, को देशके मूल निवासियोंमें प्रचारित करनेका द्वार कारण एक मोटा ताजा गोवत्स गायब हो गया खोल दिया होगा। उत्तरसे तामिल देशकी ओर है। इस पर वह विद्यार्थी यह स्पष्ट करता है कि प्रस्थान करने एवं वहाँ अहिंसा पर स्थित अपनी राजऋषि तो पके शाकाहारी हैं अतः उनका उसी संस्कृतिका प्रचार करने में इस प्रकारके कारणकी प्रकार सत्कार होना चाहिये था किन्तु पशिष्ठको कल्पना करनी पड़ी होगी। कट्टर (वैदिक) मार्योंका
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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