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________________ PL-PIP .yie] तामिक जैनसाहित्य • उन देशास सम्बन्ध पालो कि विदेशों मौदाने शिवायो नामको यातका FFसम्मिलित हैं जिन्होंने मिसाभामें अपना संदेशगमममणाजौबारामावा मिल कालोग सा नादिया वह संस्कृति महीकि धीमत रूप उदाहरण है। जानकार हमके काली "संहलमाया भी। अमियकामारंभिक विकास्कीबातचीत शाली होने सूचित Fधार्मिक साहित्य प्राय प्राकृत भाषा में है जो किया किजिनकी कन्या कोतमायालयोगी, मसात्कालिक जनताको बोलवालकी भी यह किन्तुं शोकमान्य बहामा तीन Fiveपष्ट है कि इस दार दिमागमायक्मे महिनात्मका प्रतिकार किया मिना मिस हिसारे समायी धार्मिक सिद्धान्तको जनता में प्रकाशित करनेकामही हैं, क्योंकिवह दूसरे पक्ष में पुनले गये साथ हम प्रचलित भाषांकी बनाया है। . हैं चिन्तन्याहानियागाकि मार्मिक लिमिii... अब-हम उपमिकोलमैं प्रवेश करते हैं तबामाताको होते हुस सीजनविकसैिनिक दृष्टि 1. हम कुरु चालीय प्रज्ञा लियाकारण और यह संबंध नाँकानीका है। इस इस पूर्वीय आर्योंकी आत्म विद्यारूपी दो विपरीत बासकोटमकरसाहाकि नयनर जनपने पक्ष संस्कृतियों के सपने पुनार संपादेिखते हैं। उपनिपारिसर्जनानीका था तबाताबो सलाम कार्योमें पद सम्बन्धी अध्यामबादाविशेषकर कहाशत्रियोगिमाहिएतकिर जाते है यह ना स्थार्थ FYसेविंत्रित हैम कुक पाकाल देसी विधान इन नहीं होगा कि पूर्वीय आर्य लोक जो मक विधिके I विमरेशों दरबार में प्रामक्रियाकानीमज्ञान विरोधी तथा नमिनको तापकीरा पत्रिका, थे, में प्रवेश निमित्त प्रतीक्षा करते हुए देखे जाते हैं F अहिंसा सिद्धान्तमेरिकासकारो औससे उपनिषदकालीगणपसा असे माथाको बताता हो योनियोंके पूर्वज हास्यासम्मकलसमग IE'जनन्य होनालियाको पनिश्चम मौसमझौतासा नसरि सकेगौच मलेसिंचापक वा अतितीनिमित्त या वक्ते हुपमणो ने हैं। शाकया निपौवामाके हममें कीर चनियाद्वारा HF PITR प्रकारको समन्वयात्मक भावनीको बोतको संचालित दूरी विचारणामयालीले भने से VIEरामाजीक मानीत होते हैं औरापूर्वी या विन पिस किया तमं धुत या ग्रीकर उनके जिमखास माहवल्का संभवताक हो मोवाका यशाम स शसे कसे मानवम औरतायलाई पुरातनयज्ञलाया जाता है जिसने प्राचीन भारतीय संस्कृति Fगावधि मूलीसितिमिषित किए नई स्थानमा के निर्माण पूर्ण कार्य किया और वो मकुछ होकस्थिति वाली सोविकारखी गईयापौराणिहिन्दुस्तकहाशियाटों की गतस्मानियाकमावान शाम सापक उमापासेमायें समानिक लोक सहिष्णु Pिामानालयामीको समगीने में विधियोको अवतारको सममें शामिल लिसो मन्दिर मिर मर्गक विकासमबनानाको कामना की शादी को यह मितापरि विकानोनिहितीमा माहोगसिपाईकोबा शिकवितका
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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