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________________ व, नियम तामिल भाषाका नसाहित्य जैनधर्म गुरुओंका संगम था, जिसने बहुत करके से संबंध रखने वाली प्राकृत भाषा उल्लेख उस नमूनेके अनुसार वैदिक पक्षको अपने साहि- करने का अवसर मिला था। तामिल व्याकरणमें त्यिक संगमकी कथा कलिकाका मागसप्रशासन प्र में इसका दिखाया । संगम् शब्दमे प्राचीन तामिल वासिनोकामालेख होनालीशेप महत्व की बात है । कारण अपरिचित होना ही उसकी बादकी उत्पत्तिको इसमें प्राकृत साहित्यका आदि प्रवेश एवं तामिल बताता है। उसके उत्तेजक कारण संगम नामधारी देशमें प्राकृत भापो लोगोंक गमनका ज्ञान होता साहित्य पर. लक्षित विचारको लादनका प्रयत्न एक है। इससे संबंधित एक बात और है कि कुछ प्रकारसे ज्वलंत और मिथ्या विषमतापूर्ण है। (१)" - संगम संग्रहोंसे नामांकित ग्रंथों में 'वाद विका __इसमें मैं जिस बातको जोड़ना चाहता हूँ वह त्तल' या सरलेखनाका वर्णन या जाता है । इम, है द्राविड़ संघका आस्तित्व जिसे दूसरे शब्दोंमें 'वादविकत्तल' का कुछ सजाओंने पालन किया मूल संघ भी कहते हैं और जो ईसासे १० वर्ष था और जिनका. अनुकरण उनके मित्रोंने किया पूर्व उस दक्षिण पाटलिपुत्रमें था । जो कुडेलोर था। जैनियोंसे सबंधित एक प्रधान धार्मिक क्रिया. अहातेका वर्तमान तिरुप्पाप्पुलियर ममझा जाता को सल्लेखना कहते है। जब कोई व्यक्ति रोग या है। इस द्राविड़ संघ के अधिनायक महान जैना. कष्ट से पीड़ित है और वह यह जानता है, कि मृत्यू चार्य श्री कुंदकुंद थे, जो सम्पूर्ण भारतवर्ष के द्वारा ममीप है और शरीरको औपधि देनमे काल व्यय अत्यन्त पज्य माने जाते हैं वज्र नन्दि द्वारा तामिल करना व्यर्थ है, नब वह अपने अवशिष्ट जीवनको नाडूमें तामिल संगमकं पुनरुद्धारका प्रयत्न श्री कुंद- ध्यान तथा प्राथनाम व्यतीत करनेका निश्चय कुंदाचार्यसे सबंधित आदि मूलसंघकी अवनतिको करता है वह मरण पर्यन्त श्राहार एवं औषधि बताता है। यह बात उन शोध खोजके विद्यार्थियोंकी स्वीकार नहीं करता। इस. क्रियाको 'सल्लखना' सूचनार्थ लिखी जाती है, जिनकी तामिल देशीय कहते हैं। सबने प्राचीन तामिल संग्रहोंने इसका नियों के प्रभाव-विषयक इतिहास में विशप रुचि हो। उल्लेख पाया जाता है । यहाँ इसे 'वादविकावल' ..इस प्रसंगी दूसरी मनोरंजक तथा उल्लेख- के नाममे कहा है । इसका महत्व याप बिल्कुल नीय बात प्राकृत भाषा और उसकी सब देशोंमें स्पष्ट है किन्तु इस शब्दकं उद्भव के विपयमें प्रचार की है। अगस्त्य कृत महान व्याकरण शाम्न . तनिक मन्दह है । जैनियोंने नामिल भाषामें जिस *. साहित्यका निर्माण किया और जिसके मार्थ का अवशिष्ट अंश समझे जाने वाले सूत्रों के संग्रह हमारा माज्ञान सम्बन्ध है रमका उल्लेख न करते में उत्तर प्रतिकी भाषाओं-संस्कृत भाषाओं पर हुए भी, ये सब बातें मिलकर हमें बलान- यह एक अध्याय है । उममें संस्कृत और अपभ्रंश विश्वास करने के लिये प्रवृत्त करती हैं कि, उपलब्ध भाषाका . उल्लेख करनेके अन्तर मब देशोंमें प्राचीनतम तामिल माहित्यम भी जैनियोंके प्रभाव " मूचक चिन्ह पाये जाते हैं। क्रमशः प्रचूलित पाइतम् नामकी भाषाका वर्णन है । हमें । पहले उत्तरके विचारशील नेताओं में विशेष रीति - जैन एण्टाके में प्रकाशिन अंग्रेजो लेख का अनुवाद । i'.EDIT - ttamat- ---- - --
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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