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________________ . .नेमात . . . .[पेड, पापा, बीर-निर्वास स्वासव स्थापन माना चाहता है। ऐसे ही दुःख... मार्ग निकाल लेता है, वह मार्ग पर चलकर सदाके. स्वर्व अनिष्ट नहीं; अविध का उत्पादक नहीं, यह लिये कृतकृस्प हो जाता है, पूर्ण हो जाता है, ममयवो अनिष्टकी चेतावनी है, जो प्राणोंको मेंच सेंच सुखका स्वामी हो जाता है । परन्तु जो दुखकी कर, हृदयको मसल मसल कर, मनको उपना कटुतासे डर कर चभे हुए शूलको तनस नहीं । पुथल कर निरन्तर मूलभाषामें पुकारता रहा. निकालता भीतर बैठे हुए रोगके कारणोंका बहिहै-"उठो, जागो, होशियार हो, यह जीवन इष्ट कार नहीं करता, वह निरन्तर दुःखका भोग जीवन नहीं। यह जीवनकी रुग्ण दशा है, वैभाविक करता रहता है। दशा है, पन्ध दशा है।" यह तो अनिष्ट निरोधका जो दुःख से डर कर दुःखका साक्षात् करना उद्यम है । जो यथा तथा जीवनको अनिष्टसे नहीं चाहता, उसके अनुभवोंसे प्रयोग करना नहीं निकाल कर इसमें स्थापन करना चाहता है। चाहता, उसकी सुझाई हुई समस्याओंको हल इसीलिये संसारके. सब ही महापुरुषोंने,. करना नहीं चाहता, उसके जन्म देने वाले कारणों जिन्होंने सत्य का दर्शन किया है। जिन्होंने अपने पर-उसका अन्त करने वाले उपायों पर विचार जीवन को अमर किया है, जिन्होंने अपने भादर्श करना नहीं चाहता, जो धर्म-मार्ग पर चल कर से विश्व हित के लिये धर्ममार्गको कायम किया है, उन कारणोंका मृलोच्छेद करना नहीं चाहता, जो इस दुःखानुभूतिको अपनाया है, इसके मानोकमें केवल दुःखानुभूतिको भुलानेकी चेष्टामें लगा है रहकर अन्तःशक्तियोंको भगाया है इसे श्रेयस और वह मूढ़ अपनी ठगाईसे खुद ठगा जाता है, कल्याणकारी का है । बार बार जन्म-मरण करता हुमा दुःखसे खेद जो दुःखसे अधीर नहीं होता, इससे मुँह नहीं खिम होता है। छुपाता, जो इसे सचे मित्र के समान अपनाता है, यदि जीवन और जगत्के रहस्योंको समझना इसके मनुभावों के साथ प्रयोग करता है, इसकी है, लोक और परलोकके मार्गोको जानना है तो पासको सुनता है, इसके पीछे पीछे बनता है, आत्माको प्रयोगक्षेत्र बनाओ, दुःख-अनुभवोंको वह जीवन-शत्रुपोंको पका लेता है, वह जन्ममरण प्रयोगके विषय बनामो, इनका मथन और मनन के रोगका विधान कर लेता है, वह दुःखसे सुखका करनेके लिये प्रात्मचिन्तवनसे काम लो। 8 (1) जैसे कमलका मूल पंको छुपा है, बसन्तका मूल हिममें छुपा है, ऐसे ही. धर्मका.मूल दुःख में छुपा है। () स्पति (O Blessed are the boor m spirit for ther पानीपत, ता. २६-५-१९४०" is the erdigdom of tičavert. Bleskied are they that thoinior hillsransfornet.in D i alist.Mathem.site:
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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