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बनेकान्त
बिसाल, वीर विवि सं०१५॥
तो यह कि कपिल दर्शन अधिकांशमें चैतन्यवादी लेने ही से जगत विकाशन कार्य सम्भव हो सकता है और जैन-दर्शन विशेषरूपमें जड़वादी है। है। सांख्य दर्शनकी मालोचना करने वाले के हृदयमें पहले ही यह उदय होगा कि प्रकृति का स्वरूप क्या प्रकृतिमे पैदा होने वाले, तत्व समूहोंमें पहले है ? वह जड़ है या चैतन्य ? स्वभावतः प्रकृति तत्त्व, महतत्त्व-बुद्धितत्व हैं । ये जड परमाणु सम्पूर्णरूपमें जड़ है, यह नहीं कहा जा सकता। पत्थर या किसी प्रकारके जड पदार्थ नहीं हैं, जिम जड़-पदार्थ कहते हैं; साधारणतः वह प्रकृति बल्कि ये एक अध्यात्म पदार्थ हैं, अहङ्कार कहलाने की विकृत क्रियाका ही शेष परिणाम हुआ करता वाला दूसरा तत्व भी अध्यात्म पदार्थ ही है, तो फिर प्रकृति क्या है ? भिन्नभावापन्न गुण है, उसके बाद इन्द्रिय, पंचतन्मात्रा, इसी प्रकार समूहोंकी साम्यावस्था ही प्रकृतिका स्वरूप है। क्रमशः महाभूतोंकी सृष्टि देखनेमें आती है। यदि सांख्य दर्शनमें अस्पष्टरूपमे प्रकृतिके ये ही लक्षण प्रकृतिको सम्पूर्ण जड प्रकृति ही स्वीकार कर लिया बतलाये हैं। इन्द्रिय-गोचर जड़-पदार्थ विभिन्न जाय, तो प्रकृनिकी यह विश्व सृष्टि-क्रिया एक बे भाव वाले तीन गुणोंकी साम्यावस्था नहीं है। मतलब और समझमें न आनेवाला विषय बन यह तो सहज ही में समझमें आने वाली बात है। जाता है । महतत्व और अहकार अध्यात्म पदार्थ बहुमें जो कि एक है, वह नाना प्रकारके गुण पर्या- हैं, कपिलके मतसं ही स्पष्ट है कि कार्य और योंमें रहकर भी जब कि अपने एकत्वकी रक्षा कारण एक ही स्वभावके पदार्थ हैं। ऐसी दशामें करने में समर्थ है, वह अवश्य ही कोई जड पदार्थ पैदा हो चुकने वाले तत्व समूहों की तरह प्रसव न होकर कोई अध्यात्म पदार्थ होगा, यह सभी करने वाली प्रकृतिको अध्यात्म पदार्थ कहना कोई समझ सकते हैं, भूयो दर्शन या नत्व विचारमं युक्तिहीन बात नहीं हो सकती। यदि सचमुच भी यह सिद्ध होने योग्य बात है । ऐसी दशामें प्रकृति सम्पुर्णतः जड स्वभाव वाली है, तो जडविभिन्न भाषापम त्रिगुणात्मक प्रकृति के द्वारा यदि स्वभाव व पंचतन्मात्राके पैदा होनेके पहले क्यों जगद्विवर्त-क्रिया सम्पन्न होती है ऐसा स्वीकार और कैसे दो अध्यात्म पदार्थोंका समुद्भव होता कर लिया जाय, तो प्रकृतिको एक अध्यात्म है, यह समझके बाहरकी बात है। पदार्थ मानना ही पड़ता है, और भिन्न२ तीनों गुणें को उमी अध्यात्म पदार्थ प्रकृतिके स्वात्मविकाशके हो यदि प्रकृतिको अध्यात्म पदार्थ अनुमान तीन प्रकार भी मानना पड़ता है, । यदि प्रकृतिको कर लिया जाय, तो सभी बातें सुगम हो जाती हैं स्वभावतःएकान्त भिन्न तीन गुणोंका अचेतन संघर्ष इसमें कोई भी मन्देह नहीं। प्रकृति बीजरूपी मात्र विवेचन किया जाय तो प्रकृति के द्वारा किमी चित्पदार्थ है.इसके पूर्णरूपसे विकसित या विकाशभी पदार्थका पैदा होना संभव नहीं होता । सुतरां प्राप्त होनकी दशा में सबमं पहले भात्मज्ञाम और प्रकृतिको अध्यात्म पदार्थके रूपमें स्वीकार कर सत्यज्ञानकी भावश्यकता होती है। बुद्धितत्व और