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भारतीय वनों में जैव-दामका स्थान
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कि संसारके क्षणिक सुख-शान्तिको त्याग करते इन सबोंकी सत्ता मानी जाती है। बौखोंका कहना हुये कठोर संयममय शुख जीवन व्यतीत करनेके है कि निर्वाण लाभ होते ही जीवशून्यमें विलीन फलस्वरूप मोक्ष लाभ होता है, भारतीय प्रत्येक हो जाता है, किन्तु जैन मतके अनुसार मुखजीव दर्शनको यही राय है, इसमें सन्देह नहीं, पर का अस्तित्व घिर-आनन्दमय है और वही सका प्रत्येक दर्शन एक दूसरेसे तस्वतः भिन्न ही है। सबा अस्तित्व हुआ करता है। यहां तक कि बौद्ध जैसे कि उत्तर तथा दक्षिण मेरुमंडल परस्पर दर्शनका कर्म भी जैनदर्शनके कर्मसे मिना वाविभिन्न हैं उसी तरह प्रीक देशीय सिमिक सम्प्र- चक ही हुवा करता है। दायके मूलसूत्र साईरेनके सम्प्रदायके मूलसूत्रोंसे पृथक् थे। फिर भी कोई दिन ऐसा था जबकि
___ उपर्युक कारणोंसे ही हम जैनधर्मको बौद्धदोनों सम्प्रदाय वालोंने सर्वत्यागको ही अपनी धर्मकी एक शाखा मानने के लिये तैय्यार नहीं हैं। अपनी पादर्श नीति मान रक्खा था। ऐसी दशामें
बौद्धदर्शनकी अपेक्षा वो सांख्यदर्शनके साथ जैन
च भाचारोंकी विभिन्नताको लक्ष्यमें रखते हुये, जैन
, दर्शनका निकट सम्बन्ध अधिक रूपमें प्रतीत होता
राम और बौद्ध धर्मको अपृथक् समझ लेना समीचीन
. है। सांख्य और जैनदर्शन दोनों ही वेदान्तके नहीं होगा। वायरूपमें जैन तथा बौद्धधर्ममें जो अब
अद्वैतवादको त्याग करते हुये, आत्माके बहुल्यको कुछ भी समता पाई जाती है उससे वे एक दूसरे.
स्वीकार करते हैं। ये उभय दर्शन जीवातिरिक्त से उत्पन्न हुये हैं, ऐसा कभी प्रमाणित नहीं होता। 4
अजीव सत्वके पक्षमें पाये जाते हैं। फिर भी इन हाँ, यदि यह कहा जाय कि वैदिक सम्प्रदायके उभय दर्शनों में से कौनसा दर्शन किससे निकला निष्ठर क्रिया कलापोंके विरुद्ध उठ खडे होनेवाले है अथवा मूलतः इन दोनोंमें कहाँ समता है, यह युक्तिवाद ही इनके उत्पत्तिके एकमात्र कारण बतलाना कठिन होगा। साधारणतः यही देखने में वो अनुचित न होगा।
आता है, कि सांख्य और जनदर्शनमें बहुत कुछ
स्मता है, पर हैं ये दोनों ही एक दूसरेसे पूर्ण जैन तथा बौद्ध धर्मके तत्वोंकी यदि ठीक ठीक विमिना मालोचना की जाय तो यह स्पष्ट रूपमें प्रकट सबसे पहले यही देखनेमें आता है कि सांख्य. होजायगा कि ये दोनों धर्म एक दूसरेसे पूर्णतया दर्शनमें अजीव-तत्त्व या प्रकृति एक ही है, किन्तु पृषक है। बौदोंका कहना है कि शून्य ही एकमात्र जैन-दर्शनने पजीव-तस्वकी पांच संस्थायें की हैं तत्व है। जैनोंके मतानुसार सत्पदार्थ है एवं और उन पांच अजीवोंमें पुद्गनाख्य अजीब उसकी संख्यायें अगणित हैं। बौखमतके अनुसार असंख्यरूपमें विद्यमान हैं। अब इससे यही स्पष्ट मात्माका कोई भस्त्वित्व नहीं है, परमाणुका भी होता है कि सास्य दो तत्वोंको ही मानता है, पर कोई मस्तित्व नहीं, दिक्, काल, धर्म (गति) ये जैन बहु-तस्वोंका मानने वाला है और भी इन कुछ भी नहीं हैं, ईश्वर नहीं है, किन्तु नोंके मसमें दोनों दर्शनों में बहुतसे भेद हैं। सबसे बड़ा मैद