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________________ अनेकान्त [वैसाख, वीर-निर्वाण सं० २४६६. - आलोचित हुए हैं । अतः इस विषयमें जैन और जिस प्रकार उपनिषदोंकी उत्पत्ति मानी जाती है, भ्यायदर्शनमें बहुत कुछ समता पाई जाती ठीक उसी प्रकार वेदशासन ओर कर्मकाण्डोंके है। किन्तु यदि यह कहा जाय कि न्यायदर्शनके विरुद्ध जैन तथा बौद्धदर्शनकी उत्पत्ति मानना अध्ययन करलेने पर जैनदर्शनकं अध्ययनकी चाहिये। हुएनसङ्गने जिन कारणों में जैनधर्मको आवश्यकता ही नहीं, तो यह एक बहुत बड़ी भूल बौद्ध धर्म अन्सर्गत माना है, वे यहाँ स्पष्टरूप से की बात होगी। कारण, ये दोनों दर्शन बहुत प्रगट हो रहे हैं। वे जिस समय यहाँ आये थे अंशोंमें मिलते-जुलते हुए भी एक दूसरेसे उस समय भारतवर्षमें बौद्धधर्म प्रबल हो सम्पूर्णतया पृथक पृथक हैं। म्याद्वाद और रहा था । हम लोगोंने पहले भी कहा है कि सप्ताङ्गीनय नामक प्रसिद्ध युक्तिवाद गौतमदर्शनमें अहिंसा और त्याग ये दोनों बौद्ध धर्मके मुख्य नहीं है, वह जैनदर्शनका ही गौरव है, इस बातको उपदेश हैं, वैदिक क्रिया कलापोंके विरुद्ध बौद्धोंका मानना ही पड़ेगा। जो युद्ध हो रहा था, उसमें आत्मरक्षा तथा आक्रमणके लिये अहिंसा और त्याग ये ही दो भारतीय दर्शन समूहों में जैन दर्शनका क्या प्रधान अस्त्र थे । और अवैदिक सम्प्रदायमात्र स्थान है। यह उपर्युक्त वर्णनसे वहुत कुछ स्पष्ट हो अहिंसा और त्यागकं पक्षपात में थे । वैदिक जाता है। बहुतोंका मत है कि जैनमत बौद्धमतके सार हिमालि पलक नाशशील मख अन्तर्गत है । लासेन और वेबर ने जैन धर्मकी प्राप्तिकं लिये ही अनुष्ठित हुआ करते थे। जैन सत्ताको म्वतन्त्ररूप से स्वीकार नहीं किया । यहाँ धर्मको भी वेदका शामन अमान्य था। जहाँतक तक कि ईसवी सन्कं सप्तम शताब्दीकं व्यक्ति अनुमान है, त्याग और अहिंसाको जैन समाजमें हुएनसङ्गने भी जैनधर्मको बोद्ध धर्मकी एक शाखा इमीलिये इतना ऊँचा म्थान दिया गया है। कदामात्र ही माना है । वीलर और जैकोषीक मता- चित इसी दृष्टिस बाहरी रूपमें जैनधर्म तथा नुसार जैनधर्म एक स्वतन्त्र धर्म है. और बौद्ध धर्म- बौद्ध धर्म एकसे प्रतीत होते थे, क्योंकि दोनों ही के पहले भी यह मत वर्तमान था ऐसा स्पष्टरूप वंदविधिको न माननेवाले तथा सन्न्यास और से स्वीकार किया गया है। कुछ भी हो हम लोग अहिंसाकं पक्षपाती थे। ऐसी दशामें शहरीरूपको इस पुराने तत्वकं विषय में किसी प्रकारका विवाद देवकर यदि कोई विदेशी पर्यटक इन दोनों धर्मोको नहीं करना चाहते, यह तो हम पहले ही कह चुके एकही वस्तु समझले तो इस विषयमें कोई हैं कि हम लोगोंका यह दृढ़ विश्वास है कि बोद्ध आश्चर्यकी बात न होगी। पर इससे यह प्रमातथा जैन धर्म उनके उस समय के प्रवर्तकगणाके णित नहीं होता कि ये दोनों धर्म तत्वत: एकही बहुत पहले ही से वतमान थे। बौद्धमत बुद्धदेवस हैं । इन दोनों धर्मोके प्राचार-समूह प्रायः एकसे उत्पन्न नहीं, उसी प्रकार जैनमत भी बर्द्धमानके होते हुये भी तत्वतः वे एक दूमरे से पूर्ण भिन्न द्वारा ही नहीं उत्पन्न हुआ। प्रविवादोंके कारण हो सकते हैं। दृष्टान्तके रूपमें कहा जा सकता है
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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