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वर्ष, किरण . ]
भारतीय दर्शनमें जैन-दर्शन का स्थान
पूर्णताका अनन्त आदर्श शुद्ध और पवित्र परमा- णुओंका अनादि और अनन्त होना नहीं स्वीकार स्मा हैं, उसी अनन्त पवित्र और पूर्ण परमात्माकं किया। दिक्, काल और परमाणुओंकी प्रकृति बद्धजीव एकाग्र चित्तसे ध्यान करे । परमात्माके और लक्षण अलग अलग होते हुए भी वे समी सम्मुख होनेमें ही जीवोंकी उमनि होती है. पर- उसी एक अद्वीतीय विश्वप्रधानके विकार हैं, यह मात्माकी भावनासे हृदयां निर्मल ज्ञान और बंधे धारणा अनुभवगम्य न होते हुये भी सांख्य और हुए जीव एक नवीन प्राण और नये तेजको प्राप्त योगमतके अनुसार तत्वक रूपमें मानी गई है। होते हैं । जैन और पातञ्जल उभय दर्शन इसी वशेषिकदर्शनमें भी परमाणु दिक् और सिद्धान्तको मानने वाले हैं।
कालका अनादि और अनन्तत्व म्वीकार किया ___ अब यहाँ कणादके बताये हुए वैशेषिकदर्शन गया है। की बात आती है। वैशेषिकदर्शनका स्थान यों प्रत्यक्षवादी चार्वाक मतके अनुसार कदाचित दिखलाया जा सकता है-पात्मा या परुष जो दिक् कालादिका स्वभाव निर्णय अनावश्यक
समझ कर उसके प्रति उपेक्षाकी दृष्टि को गई कुछ भी अलग है. वही सर्वप्रासी प्रकृतिके अन्त
है। दिक , कालादि हम लोगोंकी दृष्टिमें सत्य गेत है, यही मांख्य और यागदर्शनका सूक्ष्म
प्रतीत होते हुए भी, शून्यवाद। वौद्ध उसे अवस्तुके अभिप्राय है। उनके मतानुसार सत् पदार्थमात्र
आख्या ही देते आ रहे हैं। वेदान्तका सिद्धान्त विश्वप्रधानकं बीजरूपमें वर्तमान थे, इसीलिये
___ भी प्रायः इसी प्रकारका है। सांख्य और योगके कपिल और पतचलने आकाश. काल और परमाणुक तत्वनिणयमें विशेष ध्यान नहीं दिया।
मतानुसार विक , काल ये अज्ञेय प्रकृतिके अन्दर
ही छिपे हुए, माने जाते हैं। केवलमात्र कणाद उनके कथनानुसार यह सब प्रकृतिका विकृतरूप
के मतमें ही दिक् काल और परमाणु-समूहोंका है. किन्तु ऐसी धारणा कोइ सहज बात नहीं है ।
नित्यत्व, सत्ता और स्वतन्त्रता म्वीकृत हुई है। साधारण मनुष्यकी दृष्टि दिक, काल, परमाणु जैनदर्शनमे भी, ठीक उसी प्रकार जैसे कि सभी अनादि हैं और स्वतन्त्र सत् पदार्थ हैं। वैशेषिकदर्शनमें, उन सबोंके अनादि और जर्मनदार्शनिक काण्टेका कहना है कि दिक् और अनन्तत्वको स्वीकार किया गया है । सुयुक्तिवादक काल मनके संस्कारमात्र हैं, किन्तु जहाँतक ये उपादेय फलममूह भारतीय-दशनोंके अङ्गीभूत अनुमान है, इस मतकी उन्होंने आद्योपान्त रक्षा विषय है। . नहीं कर पाई । मनसं दिक्-कालकी सत्ता न्यायदर्शनमें प्रायः युक्तियोंके प्रयोगसे ही पृथक् है । जहाँ तहाँ काण्टने भी यही बात कही काम लिया गया है। तकविद्याकी जटिल है। साथ हा डिमाकिटाससं लेकर आजकलक
नियमावलि इसी दर्शनके अन्तर्गत है। हेतुज्ञानादि
विषय गौतमदर्शन में विस्तृत रूपसे विशेष रूपसे वैज्ञानिक तक भी परमाणुओंके अनादित्व और
वर्णन किये गये है। संसारके दार्शनिक तत्वसमूहों अनन्तत्वको स्वीकार करते आये हैं। किन्तु
। किन्तु का समृद्ध-भण्डार जैन दर्शन ही है । तर्क कपिल पार पतञ्जलने दिक्, काल और परमा- तत्वादि भी इभी दर्शन में विशेषरूपसे