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परबार बातिके इतिहास पर एक प्रकास
बतलाती है। यह सभव भी है । जैमा कि प्रारम्भमें वीर मन्त्री और सेनापति हुए हैं, जिससे यदि पोरवादीलिखा जा चुका है, बहुतसी वैश्य जातियां प्राचीन को क्षत्रिय कहा जाय तो अनुचित न होगा। गणों या संपोंकी अवशेष हैं और वे गण 'वार्ता- पोरवाड़ और परवार मूलमें एक ही है यह ऊपर शस्त्रोपजीवी' थे अर्थात् कृषि, गोपालन, वाणिज्य और सिद्ध किया जा चुका है। परन्तु परवारोंका इतिहास शस्त्र उनकी जीविकाके साधन थे। गणराज्य नष्ट हो अभी तक अन्धकारमें ही है। हम सिर्फ मंषु चौधरी जाने पर यह स्वामाविक है कि उन्हें शस्त्र छोड़ देने नामक परवार वीरको ही जानते हैं जिन्होंने नागपुरके पड़े और केवल कपि, गोपालन और वाणिज्य हो उन- भोसला राजाको श्रोरसे उड़ीसा पर चढ़ाई की थी और की जीविकाके साधन रह गये। कालान्तरमें अहिंसा जिनके वंशके लोग अब भी कटकमें रहते है।। की भावना तीव्र होने पर खेती करना भी उन्होंने छोड़
परवारों के इतिहासकी सामग्री दिया, जिसके साथ साथ गोपालन भी चला गया और तब उनकी केवल वाणिज्यवृत्ति रह गई ।
लेख समाप्त करने के पहले मैं अपने पाठकों के
समक्ष यह निवेदन कर देना चाहता हूँ कि साधन इसके सिवाय इतिहासके विद्यार्थी जानते हैं कि
सामग्रीकी कमीसे यह लेख जैसा चाहिये वैसा नहीं प्रख्यात गुसवंश मूलमें वैश्य ही था जिसमें समुद्रगुप्त,
लिखा जा सका। मित्रोंका अत्यन्त प्राग्रह न होता तो चंद्रगुस जैसे महान् सबाट हुए हैं । सम्राट हर्ष वर्धन भी
शायद मैं इसके लिखनेकी कोशिश भी न करता । वैश्य वंशके ही थे। ऐसी दशामें बहुतमी वैश्य जातियाँ
लिखते समय जिन जिन साधन-सामग्रियोंकी कमी यदि अपनेको क्षत्रियोंका वंशज कहती हैं, तो कुछ अनुचित नहीं है । वृत्तियाँ तो सदा ही बदलती रही है।
महसूस हुई, उनका उल्लेख भी मैं इसलिए यहाँ कर प्राग्वाटों या पोरवाड़ोंमें तेरहवीं सदी तक बड़े २
देना चाहता हूँ कि परवार-समाज यदि वास्तवमें
अपना प्रामाणिक इतिहास तैयार करना चाहती है योद्धानोका पता लगता है। प्राचीन कालमें इस जाति
तो इस ओर ध्यान दे और इस सामग्रीको लेखकोंके को 'प्रकटमल्ल' का विरुद मिला हुआ था। पाटण
लिये सुलभ कर दे। नरेश भीमदेव सोलंकी (ई० स० १०२२-१०६२) के प्रसिद्ध सेनापति विमलशाह पोरवाड़ ही थे जिन्हें
१ मूर-गोतावलीका शुद्ध पाठ-इस समय मूर द्वादशसुर त्राणछत्रोत्पाटक ( बारह सलतानोंका की गोतोंके जो पाठ मिलते हैं वे बहुत ही प्रष्ट है उनमें छीनने वाला ) कहा जाता था और जो श्रावके परस्पर विरोध भी है। इसलिए जरूरी है कि पुराने २
मसरा जगह जगहसे खोजकर संग्रह प्रसिद्ध श्रादिनाथके मन्दिर के निर्माता थे। इसी तरह लिख हुए मकसरा' जगह जगहस खाजकर संग्रह
आबके जगत् प्रसिद्ध जैनमन्दिरोंके निर्माता वस्तुपाल किए जाँय और फिर उन सबका मिलान करके किसी तेजपाल (वि० सं० १२८८) भी पोरवाड़ ही थे, जो इतिहासा विद्वान्से एक शुद्ध पाठ तैयार कराया महाराजा वीरधवल बाघेलाके मन्त्री और सेनापति जाय । थे। ये जैसे वीर थे वैसे ही दाता और धर्मोद्योतक थे। २ प्रतिमा--लेख-संग्रह-प्रायः प्रत्येक पातु. इनके बादमें भी पोरवाड़ोंमें अनेक राजनीतिज्ञ और पाषाणकी प्रतिमाओं के मासन पर कुछ न कुछ लेख