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[वैसाख, बोरविवार
रहता है, जिसमें प्रतिमा स्थापित करने वालों और पटियों के कागज-पत्रोंका चन्वेषण-प्राचीन जनसाचार्यका उमेख अवश्य रहता है। उसमें संघ, कालमें बंशावलियों और कुलोंका इतिहास भाट-चारण गमा गच्छ, और जाति गोत्रादि भी लिखे रहते हैं। लोग रस्खा करते थे। प्रत्येक घरस इ. व्याह शादीके नवी-दसवीं शताब्दिसे इधरके ऐसे हजारों लेख संग्रह मौकों पर और दूसरे शुभ कार्यों पर बन्धी हुई दक्षिणा किए जा सकते हैं। कहीं कहीं उस समयके राजाओंका मिला करती थी। उसके बदलेमें वे लोग पीढ़ी दर सीमालेख मिल जाता है। मध्यकालीन इतिहास पर पीढ़ी यह काम किया करते थे। बुन्देलखण्ड में इन्हें इन लेखोंसे बहुत प्रकाश पड़ सकता है। इन लेखोंके 'पटिया' कहते हैं। वंशावलीको पट्टावली भी कहते प्रकाशित हो जाने पर वर्तमान सभी जातियोंका इवि- है। इन पट्टावलियोंके कारण ही शायद इनका नाम हास लिखा जा सकेगा, उन जातियोंका भी पता लगेगा 'पटिया' प्रसिद्ध हुआ है । इन लोगोंका अब पानेके जो पहिले जैन धर्म धारण करती थीं परन्तु अब छोड़ समान सम्मान नहीं रहा, इनको दक्षिणा भी लोग बैठी हैइससे जैनाचार्योंकी भी गणमाच्छादि-सहित नहीं देते, इसलिए अब यह जाति नष्ट प्राय है। गहोई एक सिलसिलेवार सूची समय-क्रमसे तैयार हो जायगी और परवार दोनों जातियोंके 'पटिया' हैं जिनमेंमें जो जैन साहित्य के इतिहासके लिए भी अत्यन्त उप- गहोइयोंके पटिये अब भी अपने पेशेसे किसी कदर योगी सिद्ध होगी।
चिपटे हुए हैं। बन्धुवर सियारामशरण गुप्त के पत्र इनके लेखोंके समक्ष होने पर हम बड़ी श्रामानीसे से मालम हुआ कि गहोई जाति के पटिया कहते हैं कि बतला सकेंगे कि जातियोंका अस्तित्व कबसे है। इन- उनके पास 'गृहपतिवशपुराण' है जिसमें गहोइयाँका का विकास और विस्तार किस क्रमसे हुश्रा, अठसखा, इतिहास है परवारजातिके पटियोंका भी अभीतक अस्तित्व चौसखा दो सखा श्रादि भेद कब हुए, अमली गोत्र- है। बहुत सभव है कि उनके पास परवार वशके मम्बन्धम मूर आदि क्या थे, उनमें प्रसिद्ध और प्रभावशाली भी कोई पुस्तक हो । उनके पासके कागज़ पत्रो और परुष कौन कौन हए और किस किस जाति की बस्ती पुरानी बहियोंकी छानबीन करनी चाहिए। उनके पामस किन किन प्रांतोंमें और कब तक थी।
और कुछ नहीं तो पुरानी वशावलियाँ, किवदन्तियाँ और ये लेस शुरूसे लेकर अब तक के संगृहीत किए मूर-गोत्रावलियाँ सग्रह की जा मकती हैं। मूगें और जाने चाहिए और सभी जातियों के होने चाहिएँ । इस खेड़ोंके सम्बन्धकी जानकारी भी उनसे मिल सकती है। कार्य में अन्य सब जातियोंका सहयोग भी वांछनीय
विविध सामग्री-अनेक भारतीय और यरोपियन
लेखकोंने जातियोंके सम्बन्धमें बीसों ग्रन्थ लिखे है, जो ३ लेख और दान-पत्रादि संग्रह-प्रतिमाश्रति अग्रेजीम हैं । मर्दुशुमारीकी रिपोटोंमें भी जाति भेद अतिरिक्त मन्दिरोंको दिए हुए दानोंके भी सैकड़ों लेख सम्बन्धी अध्याय रहते हैं. इसके सिवाय प्रत्येक जिले मिलते बहतसे इन्डियन एण्टिक्वेरी, एपिमाफिआइ के गजेटियरोंमें भी वहाँकी जातियों के विषयमें साधारण डिया आदिमें प्रकाशित हो चुके हैं। वे सब भी संग्रह मा इतिहास और किंवदन्तियाँ लिखी रहती हैं, ये मब किये जाने चाहिए।
पुस्तके सग्रह की जानी चाहिए। हिन्दीमें प्रथक प्रथक ४ प्रन्थ-प्रशस्तियाँ और लिपि कराने वालोंकी जातियों पर और समग्र जातियों पर अनेक पुस्तकें प्रशस्तियाँ-प्रत्येक प्रन्थके अन्तमें जो लेखकोंकी लिखी गई है। कुछ पुराण भी उपयोगी हो सकते है! और ग्रन्थ लिखने वालोंकी प्रशस्तियाँ रहती हैं, उनमें इतिहासके अन्य ग्रन्थोंका संग्रह तो होना ही चाहिए। भी जातियोंका तथा दूसरी बातोंका परिचय रहता है। उनकी चर्चा करनेकी ज़रूरत नहीं। इन सबका संग्रह भी बहुत उपयोगी होगा।