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________________ भनेकान्त (साय, वीर निगाव सं०१५ इस बातका पता लगाने की भी कभी कोशिश नहीं की ही इनका नाम करण हुआ होगा । पावती, सकेसुर, मई है कि इस समय इन १४ मूरोंमें से कितने जीते बड़ेरिया, डेरिया, बैसाखिया, बहुरिया आदि मूरोंमें अगते हैं और कितनोका नाम शेष हो चुका है। ग्रामों या नगरोका प्रामास मिलता भी है। परवारोंके मूर और गहोइयोंके प्रकने इस समय इस विषयमें इससे और अधिक कुछ मी गहोइयोंमें भी मूर है, परन्तु उन्हें वे प्राँकने कहते . नहीं कहा जा सकता कि गोत्र प्रख्यात पुरुषों के नामसे स्थापित हुए हैं, और मूर गावों या खेड़ोंके नामसे । है। कहा तो यह जाता है कि प्रत्येक गोतके का बह , गोत्र और मूरोंके विषय में हमें यही मालूम होता है। मिला कर ७२ ऑक्ने है, परन्तु अब इनका परिवार । बढ़ कर सौके पास पहुंच गया है। इन आँकनीकी पोरवाड़ोंके गोत सूची देखनेसे मालूम होता है कि खेड़ों या गाँवोंके चूंकि परवार और पोरवाह हमारे ख्यालसे एक ही नामांसे इनका नामकरण हुआ होगा जैसे बड़ेरिया, है इसलिये हम पोरवाड़ोंके गोत्रों की भी यहाँ चर्चा कर मसिया, नगरिया, बजरंगढ़िया प्रादि । कुछ बाँकने देना चाहते हैं । पोरवाड़ोंके चौबीस गोत्र बतलाये जाते पेशोंके कारण भी बने हुए जान पाते हैं जैसे सोनी, है परन्तु उनमें गोत्र-परम्परा एक तरहसे नष्ट हो संधी प्रादि। गई है। जो चौबीस नाम मिलते हैं वे पुस्तकोंमें ही 'मर' का शुद्ध रूप 'मूल' होता है। मूरको एक लिखे हैं उनका कोई उपयोग नहीं होता है। गुजरातकी रूढ़ शब्द ही मानना पड़ता है जो गोत्रोंके अन्तर्गत तो प्रायः सभी जातियोंने अपने गोत भुला दिये हैं । वेदोंको बतलाता है और शायद उनसे मल गोत्रोंका यहाँ तक कि मारवाड़में जिन श्रोसवालों श्रीमालोंमें ही दोष होता है। किसी मूरमें पेशेकी गन्ध नहीं गोत्रोंका व्यवहार अब भी होता है, वे ही श्रोसवाल, मिलता श्रीमाल गुजरातमें श्राकर गोत्रोको बिलकुल ही भूल ...मूरोंके जो अपभ्रष्ट नाम हमे इस समय उपलब्ध म च चके हैं । इमी तरह पद्मावती पोरवाड़ोंमें भी गोत्र नहीं रहे है । कमसे कम उनका उपयोग नहीं किया जाता है, उनसे उनकी उत्पत्ति बिठाना कठिन है। यही ख्याल होता है कि गहोरयोंके समान म्बेड़ों या गांवों के नामोंमे माटर मोतीबाजी की मेवी हुई, और चौथी बा. क्या परिवार क्षत्रिय थे ? ममदासबी बी. ए हारा भेजी हुई सो डेबसौ वर्ष . वर्तमानकी अनेक वैश्य जातियाँ अपनेको क्षत्रिय हो तसिसित पिपसी सूीमें दो गोतोंमें तेरह * चौधरी, बा, धनदार, रतनावत, तेरी में न्यारह पाल, एक में इस और एकमें नौ धन्यौत, ६ मनावर्या, • बकरा, भावल्या, ' कामल्या, . सेठिया, अधिया, १२ वरवरस, जो गहोई पन्धु' के दिसम्बर को भूत, 11 फरक्या, १५ जमेपर्या, ।। मंडावर्या, बोलपमें श्रीयुत का वीसका विस्तृत स . मुनियां, बॉटचा, गलिया, २० मेसोटा विसमें प्रत्येक गोतकेयरनों पर विचार किया गया है। नवेपा, २९ वामगर, २३ मेहता २० बरख्या । --------- -----
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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