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परवार जातिके विकास पर
प्रकाया
हुई थी। नगरको स्त्रियाँ उनको परवा किये बिना ऊपर• स्पष्ट प्रमाण है कि वर्तमान सरावगी गहोइयोंके - से निकल गई, परन्तु पटियोंके पूर्वज बीघा-पाडेकी श्रावक या जैन थे। पत्नी सम्मानपूर्वक बचकर निकली, इससे प्रसन्न होकर झाँसी, चिरगाँव आदिमें परवारों और गहोरयों में अम्बिकाने पाड़ेजीको स्वप्नमें कहा कि मैं अन्य स्त्रियों- पकी रसोईका व्यवहार अब तक है, यह भी इस बातका की अशिष्टताके कारण हम नगरीको नष्ट करने वाली सुबूत है कि पूर्वकालमें इन दोनों जातियोंमें पानता हूँ, तुमसे जितनी दूर भागा जा सके भाग जाओ। थी और इन दोनोंका मूल स्रोत एक ही होगा । पत्री
आखिर पांडेजी अपने म्यारह शिष्यों के साथ भाग वति नगरीसे गहोइयोंके निकलनेकी दन्तकथा भी इस निकले। आगे उन्हीकी सन्तान गहोई हुए और पड़ेि बातको प्रष्ट करती है। जी की सन्तान पटिया । इस कथासे यह मालूम होता है परवारों, गहोइयों और अग्रवाल के गोतोको समर कि परवारों के समान गहोई भी पद्मावती छोड़कर नता इस बातका भी संकेत करती है कि पर्वमें वैश्य बुन्देलखंडकी तरफ श्राबाद हुए थे और इन दोनों जाति एक ही थी और ये सब भेद 'स्थानस्थितिवि जातियोंका बहुत पुराना सम्बंध है।
पतः' बहुत बादमें हुए हैं। समस्त वैश्य जातियोंकी मौलिक एकता
परवारोंके मूर गहोई और परवार जातिके नौ गोत्र एकसे होना ऊपर जो बारह गोत्र बतलाये गये हैं, उनके बहुत अर्थपर्ण है । हमारं बहुतसे पाठक शायद यह न बारह बारह मूर बतलाये जाते हैं । इस तरह सब मिला जानते होगे कि पूर्वकालमें गहोई भाई भी "जैनधर्मके कर १४४ मूर है। अनुयायी थे । इस जातिके बनाये हुए कई जैन मंदि- गोत-मरोका मिलान किये बिना परवारोंमें कोई रोका पता लगा है । इसके सिवाय गहोइयोंका एक विवाह सम्बन्ध नहीं होता है, फिर भी दुर्भाग्य देखिए मूर या आँकना 'सरावगी' नामका है, जो इस बातका कि इन मूर-गोतोंकी एक भी प्रामाणिक सूची उनके
, पास नहीं है । एक तो उनके नाम ही अतिशय अपभ्रष्ट * प्रहार क्षेत्र (टीकमगढ़से १० मील पूर्व) में
__ होगये है और दूमरे जो मूर एक सूचीमें एक गोत्रके श्रीशान्तिनाथकी तिमाके पासन पर एक लेख वि० सं०१२३०का है। उसमें 'ग्रहपतिवंशसरोहसहनरश्मि'
अन्तर्गत है, वही दूमरी सूचीमें दूसरे गोत्रमें गिना गया (गहोई वंश रूपी कमलके सूर्य) देवपाखका वर्णन है ।
है। किसी गोत्रके मूर बाहरसे कम हैं और किसी जिन्होंने बाणपुर (महारके मोब) में सावन ज्यादा । डावडिम, रकिया, पद्मावती, कुत्रा, मास, नामका जैनमन्दिर बनवाया था और फिर जिनके खा
खौना श्रादि मूर ऐसे हैं जो दो दो गोतोंमें आते हैं..। उत्सम पुरुषोंमेंसे एकने यह शान्तिनापका मन्दिर पन हमारे सामने इस समय मूर-गोतोंकी चार वाया और प्रतिष्ठा कमाई । पह लेख मो० हीराक्षाला सूचियां है एक बैनमित्रके पौष सुवी । सं० अंक जैन द्वारा नागरी प्रचारिणी-पत्रिका प्रकाशित हो में प्रकाशित पं० सम्बप्रसाद शास्त्रीकी भेजी हुई, दूसरी धुका है।
दो मित्र सूचियाँ मापदीसंसबैममिर्च में