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वीर निवाब सं.२०५०
ही नहीं । श्रोसवाल आदि कुछ जातियां ऐसी हैं १० खोइल (जैतल ) जिनके गोत्र ग्रामों या पेशो प्रादिके नामसे पड़े है और ११ माडिल्ल (कासव ) बहुतोंके ऐसे अद्भुत हैं कि उनके विषयमें कुछ कल्पना १२ फागुल्ल (सिंगल)
सिहल ही नहीं हो सकती। उनकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें तरह ऊपरकी सूची में परवारोंके और गहोइयोंके नौ गोत्र तरह की कथायें भी गढ़ ली गई हैं।
बिलकुल एक जैसे है और अग्रवालोंके चार गोत मिलते परवारोंके गोत्र और उनका अन्य जातियोंके हुए हैं।
गहोहयोंके परवारोंके ही समान बारह गोत्र हैं परंतु गोत्रोंसे मिलान
अग्रवालोंके अठारह गोत्र है। हमारा अनुमान है कि परवारोंके गोत्र गोत्रकृत्
गहोई कौन हैं ? मा वंशकृत् पुरुषोंके ही नामसे प्रारम्भ हुए होंगे और
अग्रवालोंका थोड़ा परिचय ऊपर दिया जा चुका उनकी परम्परा बहुत पुरानी होनी चाहिए।
है। अब हम परवारोंके अतिशय सामीप्यके कारण परवारों के बारह गोत या गोत्र हैं। इनमेसे कुछ गहोइयोंका थोड़ा परिचय देना ज़रूरी समझते हैं । गोत्र गहोइयों और अग्रवाल आदि जातियों जैसे हैं।
संस्कृत लेखोंमें गहोई बशको 'गृहपति-वंश' लिखा इसका कारण शायद यह हो कि मूलमें ये एक ही रही गया है। गृहपतिसे गहवइ और फिर गहोई हो गया हो और आगे चलकर अलग हो गई हों। जो गोत्र है। बौद्ध ग्रंथोम गृहपति शब्द बहुत जगह वैश्यके मिलते नहीं है, भिन्न हैं, वे शायद अलग होने के बादके
अर्थमें आता है * | हमारा ख्याल है कि जिस समय
वैश्योंमें भेद नहीं हुए थे, आम तौरसे सभी वैश्य लोग आगे हम परवार, गहोई और अग्रवाल जातिके
गहवई कहलाते होंगे, पीछे जातियोंके बनने पर एक गोत्र दे रहे हैं
समूह गहवई या गहोई ही कहलाता रहा, उमने अपना परवार गहोई
अग्रवाल नाम नहीं बदला जब कि दूसरे समूह नगर स्थानादिके
नामोंसे आपको परिचित कराने लगे। १ गोहिल्ल गांगल
गोभिल
गहोइयोंका बुंदेलखण्डमें प्रवेश २ गोहल्ल गोइल, गोयल या गोल गोयल ३ बाछल्ल वाछिल
वत्सिल
गहोई जातिके पटिया एक दन्तकथा कहा करते हैं ४ कासिल
कि पवाया या पद्मावती नगरीके कई द्वार थे।
कासिल काछिल
एक दिन अम्बिका देवी एक द्वार छक कर लेटी ५वासिल वासिल ६ भारिख भारल या भाल
* देखो महाबोधिसमा द्वारा प्रकाशित दीपनि७कोछल्ल कोछिल
काय पृ.१५, १४३, १५४ १०५ । पउमचरिय (२०. ८वामल्ल बादल
११) में गृहस्थ, गृही, संसारीके अर्थमें भी 'गाई' कोइल कोइल, कोहिल
शब्द पाया है।
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