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[बैसाख, बीरनिवare
___सोरठिया परवार
स्का । पर इससे यह पता लगता है कि महा-कौशलमें 'सोरठिया पोरवाई' नामकी जाति गुजराती है।
जबलपुर, नरसिंगपुर, सिवनी प्रादिकी तरफ परवार दो सोरठमें बसनेके कारण इसका यह नाम पड़ा है। इस स्थानास जाकर
स्थानोंसे जाकर आबाद हुए है। जो सीधे बुन्देलखंउसे जातिमें जैन और बेष्णव दोनों धर्मों के अनुयायी हैं।
अाये घे बुन्देलखंडी और जो गढ़ा (मबलपुरके पास) इन्हें परवारोंकी एक खाँप बतलाया है और इस तरफ
से आये वे गढ़ावाले। गढ़ा पहले समृद्धिशाली नगर ये पोरवाङ ही माने जाते हैं, इससे भी परवार और
था। उसके उजड़ जाने पर इन्हें नीचे की तरफ आना पोरवाड़ पर्यायवाची मालूम होते हैं।
पड़ा होगा।
___ 'बुन्देलखंडी' और 'गढ़ायाले' यह भेद परवारोंकी जाँगड़ा परवार
पड़ौसिन गहोई जातिमें भी है। वैश्य होनेके कारण यह . अब शेष रहे 'गांगज' सो मेरा ख्याल है कि जाति भी साथ साथ ही नई जगहोंमें श्राबाद हुई होगी। लिखने वाले की भूलसे यह नाम अशुद्ध लिखा गया है। गहोइयोंमें इन दोनों दलोंमें बेटी व्यवहार तक बन्द हो सभवतः यह 'जाँगढ़' होगा जो 'जाँगड़ा पोरवाड़ों' के गया था जो बड़े आन्दोलनके बाद अब जारी हुश्रा लिए प्रयुक्त हुआ है।
जाँगड़ा पोरवाड़ बैष्णव और जैन दोनों हैं। परवालें और पोरपाड़ोंके पाकी उपभेद चम्बल नदीकी कायामें रमपुरा, मन्दसोर मालवा परवाराका सान खॉप ऊपर पतलाई जा चुकी हैं। तका होल्कर राज्यमें वैष्णव जाँगड़ा और बड़वाझ उनमेंसे दोसखे छहसखे समास होकर दो खाँपे अठ नीमाड़के आसपास तथा कुछ बरारम जैन जाँगझ
सग्या और चौसना रह मई है । चौसखे भी अब अठरहते हैं जो सिर्फ दिगम्बर सम्प्रदायके ही अनुयायी हैं।
सम्वों में मिल रहे हैं । तारनपंथी समैया उपजातिका जोधपुर राज्यका उत्तरी भाग जिसमें नागौर आदि जिक ऊपर किया जा चुका है। इसका सम्बन्ध भी परगने हैं 'जांगल देश' कहलाता था। शायद इमी
अब परमारोंसे होने लगा है और अब सिर्फ एक रन्थके कारण ये जाँगड़ा कहलाये होंगे और मेवाइसे निकल
रूपमें ही इसका अस्तित्व रह गया है। फार पहले उधर बसे होंगे।
• श्री मणिबाल बकोर माई ग्यासके पास संवत् इनका रहन-सहन और आचार-विचार परवार १७० के पास पास का लिखा हुमा एक पाना है जातिसं बहुत कुछ मिलता-जुलता है। दूसरोंके हाथमे जिसमें राजौर जातिके । बड़ी सखा, २ बाहुली सला, स्वाने-पीनेका इन्हें भी बड़ा परहेज है। रंगरूपमें भी ये ५ चढसखा, "विसखा और रामसल ये पाँच परवारोंके समान है।
अन्तमद बतलाये हैं। 'जैन-सम्प्रवास-शिवा' के अनुः
सार इस जाति का उत्पत्ति-स्थान 'रामपुर' बतलाया बुन्देलखण्डी और गढ़ासल है। क्या पूर्वकाल में परवार मातिसे इस जातिका भी 'परवारोंका सबसे पिछला मेद बुन्देलखंडी और अब सम्बन्ध पाक 'पुर'काही दसरा नाम 'शबगढ़ावाल है जो पृथक् जातिके रूपमें परिशत न हो पुर महो?