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परवार नाविक तिहास पर जय प्रकाश
हाँ पस्वासेंमें रस्से भी हैं जो 'विनकया' कहलाते च्यातियोंके समान बीसा और दस्सा ये दो मुख्य भेद हैं। उनमें भी नये और पुराने से दो भेद हैं। पुराने और हैं। प्राचीच लेखोंमें 'वहतमखा' और 'लघुथाखा' बिनेकया वैसे ही है जैसे श्रीमाली, हुमड़ आदि जाति- नामसे इनका उल्लेख मिलता है। परन्तु दस्सा कहला योंमें दस्सा है, अर्थात् उनमे विधवा-विवाह नहीं होता कर भी इनमें विधवा-विवाहकी चाल नहीं है और
और पहले कभी हुआ था, इसका भी कोई प्रमाण नहीं पहले भी थी, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है। मिला। नये विनज्यों से भी इनका कोई सम्बन्ध नहीं धर्मों के कारण पड़े हुए पोरवाड़ोंके उक्त भेदोंके है। पुराने विनेकया कहीं २ अपनेको 'जैसवार' दो दो भेद और है, जैन और वैष्णव । जैनोंमें भी भी कहलाने लगे हैं, पर वास्तवमें जैमवारोंसे उनका मूर्तिपजक और स्थानकवासी है। कोई सम्बन्ध नहीं है । एक दल ऐमा भी है जो अपने- इनके सिवाय सरती, खंभाती, कपड़वं नी, अहमदाको चौसखा परवार कहता है । जान पड़ता है कि बादी, मांगरोली, भावनगरी, कच्छी आदि स्थानीय पचायत्ती दंड विधानको मस्ती और प्रायश्चिच देकर भेद हो गये हैं और इससे बेटी व्यवहार में बड़ी मुसी. शुद्ध करनेकी बंदी ही विनैकयों की उत्पत्ति के लिये जिम्मे बतें खड़ी हो गई है। क्योंकि ये सब अपने अपने वार है । पुराने विनैकयोंके विषयमें तो हमारा ख्याल स्थानीय गिरोहोंमें ही विवाह-सम्बन्ध करते हैं। है कि किसी समय किसी हुकुम-उदूली श्रादिके अप- ऐसा जान पड़ता है कि पोरवाड़ जाति पहले दिगगधमें ही ये अलग किये गये होंगे और फिर अल- कई प्रबन्धों और पुस्तकों में लिखा है कि माबू मख्यक होने के कारण लाचारीसे इन्हें अपने मूर गोत्रों के संसार प्रसिद्ध जैनमन्दिर बनवानेवाले महामात्य को अलग रख देना पड़ा होगा।
वस्तुपाज-तेजपानकी माता बान-विधवा थीं। ये दोनों पोरवाड़ोंके तीन भेद हैं शुद्ध पोवाड़, सोरठिया
पुत्र उन पुनर्विवाहसे प्राप्त हुए थे। इस बातको कोई पोरवाड़, और कंडुल या कपोल ।।
जानता न था। पुत्रोंकी बोरसे एकवार तमाम वैश्य फिर इन सबमें गुजरात और राजपूतानेकी अन्य जातियोंको महाभोज दिया जा रहा था कि यह बात
दिगम्बर जैन डिरेक्टरी ( सन् 1)के किसी जानकारकी तरफसे प्रकट कर दी गई। तब वो अनुसार विनैकेया परवारोंकी संख्या ३६५ और लोग भोज में शामिल रहे वे दस्सा कहलाये और जो चौसलोंकी १७.थी।
उठकर चले गये वे बीसा । कहा जाता है कि उसी ततो राजप्रसादासमीपपुरनिवासतो वणिजः समय तमाम जाति में दस्सा-वीसा की ये दो दो तर्ने प्राग्वाटनाममो वः । तेनं भेदत्रयम् । पादौ शुद्ध हो गई। प्राकाराः। रितीपा:पुराएंगता । केचित्सौराष्ट्रप्राग्वाहा। ताम्बर जैन डिरेक्टरीके अनुसार बीसा पोरतपशिधाः दुत महास्थान विवामिताऽपि कोन मायाको संख्या १०० और इस्मा पोवादोंकी १२. प्राग्वाटा वभवः।
का भी भोर सम्बई महातेको सर की सवारी -भीमावीमोनो शातिभेद के .. पेनका मत गबनाके अनुसार वैष्णव पोस्वाबोंकी संसा मोकालो ।
• की। सोरलिया वैचाइनसे बयान