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________________ जित..] परवार जातिके इतिहास पर प्रकाश १०.१कारे इसकी समृद्धिकी अत्यन्त प्रशंसा की गई मतलब पद्मावती पोरवाइसे है जो इस समय एक है। उसे ऊँचे गगनचुंबी भवनोंसे सुशोभित अनुपम जुदी जाति है + । परवारों से दूर पंड जानेके कारण नगर बतलाया है, जिसके राज मार्गामें बड़े बड़े घोड़े ही कालान्तरमें इसका परवार सम्बन्ध टूट गया होगा। दौड़ते हैं, और जिसकी दीवारें चमकती हुई, स्वच्छ, पद्मावती पोरवादोंमें जिस तरह 'पवि' हुआ करते शुभ्र और प्राकारासे बाते करती हैं। उसी तरह परवारों में भी हैं । पहिले शायद इनसे ___ ग्वालियर राज्यका 'पदम पाँया' नामक स्थान वही काम लिया जाता था, जो अन्य जैनेतर जातियों में प्राचीन पद्मावतीके स्थान पर बसा हुआ है। यह बहुत ब्राह्मणोंसे लिया जाता है। समय तक नाग-राजाओंकी राजधानी रही है। परवारोंके मूल-गोत्रोंमें भी 'बामा' गोत्रका एक 'पद्मावती पोरवाई' परवारोंकी ही एक शाखा है, मूर 'पद्मावती' नामका है। जान पड़ता है इस मूर इस बातका प्रमाण पं० बखतराम जी कृत 'बुद्धिविलास' .. के लोग ही दूर चले जाने पर एक स्वतंत्र जातिके रूप नामक ग्रंथके 'भावकोत्पत्ति-प्रकरण' में भी मिलता है* में परिणत होगए होंगे । जो थोड़े लोग परवारोंके साथ सात सांप परमार व्हावे, रह गये, वे पद्मावती मूर वाले कहलाते हैं। जैसा कि तिनके तुमको नाम सुनाई। ऊपर कहा है यह नाम पद्मावती नगरीके नामसे ही मससा फुनि चौसक्खा, पड़ा होगा। सेर सक्ला नि है दो सक्ला । सोरठिया पर गांगज बानो, जातियोंके इतिहासमें ऐसी बहुत-सी जातियाँ है जो पहले एक बड़ी जातिके अन्तर्भूत गोत्र रूपमें थी और पदमावतिया ससम जामौ । अर्थात् परवार सात खाँपके -१ अठसखा. फिर पछि एक अलग जाति बन गई। २ चौसखा ३ छहसखा, ४ दो मखा, ५ सोरठिया, + दि.जैन डिरेक्टरीके अनुसार पावती पोर६ गांगज ७ और पदमावतिया। इनमें से पहले चार वादोंकी जन संख्या थी। इनका एक बया तो परवारोंके प्रसिद्ध भेद है ही जिनमें से अब केवल सौ दो सौ वर्ष पहले शायद बघेरवालोंके ही साथ अठसखा और चौसखा रह गये हैं और पदमावतियासे बरारमें जा बसा था जो भाषा वेष भादिमें विलकुल झिांसी-आगरा बाइन पर देवरा स्टेशनसे दूरपर दक्षिणी हो गया है। इससे उत्तरभारत पाखोंका इनके ग्वालियर राज्यमें। साय विवाह-सम्बन्ध टूट गया था, जो अब जारी किया * इसे मेरे मित्र वाल्या नेमिनाथ पामखने बहुत गया है। बरस पहिले वारसी डाउनके जैन मन्दिरसे लेकर भेजा हमारे गांवमें एक पारे परिवार है, अमरावती था। उस समय मैंने एक मोट भी बनवितेपी (भाग में भी एक पड़ेि हैं। अन्यत्र भी इनके घर होंगे। (क-२) में प्रकाशित किया था। इस समय एक सूचीमें कासा गोमा भूर भी पनाती पा मन्य मेरे सम्मुख नहीं है। इसलिए नहीं मिला है। कोश गोरके एक सूरका नाम 'मयावती सकता कि अन्य किस समयका बना हुआ है। बिम' भी है। गई।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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