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________________ श्व [बैसाख, पीरनिवाब सं. प्रवृत्ति राजस्थानी और मारवाड़ी लोगोंमें है उतनी जी ने और 'जैन-सम्प्रदाय-शिक्षा' के लेखक यति और किसीमें नहीं। श्रीपालजीने पोरवाड़ोंका मूल-स्थान 'पारेवा' या 'पाग' पोरवाड़ोंकी उत्पत्तिके संबंपकी कथाएँ और नगर बतलाया है मगर वह कहाँ पर है इसका कुछ गलत धारणाएँ पता नहीं दिया। संभव यही है कि 'पुर' सबका हो माग्वाट और पौरवाड़ोंकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें बिगड़कर 'पारा' या 'पारेवा' बन गया हो। नेक कल्पित कथाये 'श्रीमालीपुराण' और 'विमल- मेवाइसे बाहर फैलाब प्रबन्ध' आदि अन्योंमें मिलती है । परन्तु वे सब शब्दों- जातियों के एक स्थानसे दूसरे स्थानको जाने के के अर्थ परसे ही गढ़ी गई जान पड़ती हैं। जब लोग अनेक कारण होते हैं। उनमें मुख्य है आर्थिक कारण। किसी जातिके मूल इतिहासको भूल जाते हैं, तब कुछ असर प्राचीन समृद्ध नगर राजनीतिक उथलपुने कुछ कहने के लिए संभव असंभव कथायें रच डालते थलोंसे, आक्रमणकारियोंके उपद्रवोंसे और प्रकृति-प्रकोप है। उन्हें क्या पता कि मेवाड़का एक नाम 'प्राग्वाट' से उजड़ जाते हैं। जहाँ जीविकाके साधन नहीं रहते मी था और वहाँ कोई 'पुर' नामक नगर था। उदा- तब जातियाँ वहाँसे उठ कर दूसरे समृदिशाली नगरों या प्रान्तोंमें चली जाती है। वर्तमान स्थानकी अपेक्षा जब लक्ष्मीजीको भीमाल नगरको समृद्धिकी चिंता दूसरे स्थानोंमें लामकी अधिक प्राशासे मी गमन होता हुई, तब विष्णु भगवानने उनके मनकी बात जानकर है। अक्सर प्रतापी राजा नये नगर बसाते हैं और उनमें १० हजार यणिकोंको भीमाल नगरमें दाखिल किया। पुरुषार्थियोंको बुलाकर बसाते हैं। ऐसे ही किसी कारण तब उनमें से जो पूर्व दिशामें बसे, वे प्राग्वाट कहलाये। से पोड़वाड़ या परवार जातिने मेवाड़से बाहर कदम 'प्राम्' का अर्थ पूर्व होता है और वाटका दिशा, स्थान रखा होगा । जहाँ जहाँ जाकर ये बसे वहाँ वहाँ प्रादि । बस शब्दार्थ से ही कथा बन गई। इन्होंने अपना परिचय प्राग्वाट या पोरवाड़ विशेषणके गरज यह कि इस तरहको कथानों पर विश्वास साथ दिया और तमीसे ये इस नामसे प्रसिद्ध हुए। नहीं करना चाहिए । प्रायः सभी जातियों के सम्बन्धमें पचावती-पुरवार परवारों की एक शाखा इस तरहकी अद्भुत अद्भुत कथायें प्रचलित है। ऐसा जान पड़ता है कि प्राग्वाटों या पबाड़ोंका 'महाजन-वंश मुक्तावली' के लेखक यति रामलाल एक दल पद्मावती नगरीमें भी आकर बसा था । पीछे बुन वा मोबाची राज्यवंशके विषय में भी । र जब यह महानगरी उजड़ हो गई, और इस कारण उसे वहाँसे अन्यत्र जाना पड़ा तब उस दलका नाम पद्माऐसी ही एकच्या शब्द परसे गढ़ी गई है। पुल वती पोरवाड़' या 'पद्मावती पुरषार' हुआ । सबसे चौखुल्य पर सकता है और बुलुकका पर्व पद्मावती किसी समय बड़ी ही समृद्धिशाली नगरी होता है, मुमद। प्रशाली वे पाकिसी देशवाने भर पानी पर निशा दिलास सीसे चौबुल. : थी। खजुराहाके एक शिलालेखमें ! जो ईस्वी सन् उत्पादोगया। देखो इपिस पnि
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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