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परवार मातिइवितास पर
प्रकाश
शाले पाहारदानदानेश्वर सिंघई सहमवतस्य भार्या नहीं रह जाता कि पौरपट्ट या पौरपाटा परवारोका ही अलसिरिकृतिसमुत्पन्न अर्जुन..."
पर्यायवाची है। उक्त लेलोंमें 'पौरपाट' * साप 'अशाखा लगमग इसी समयका एक और सेल मानपुरा लिखा गया है और कि माउसखा परवार ही होते (चंदेरी) षोडशकारण यंत्र पर खुदा दुमा देखियेहै। इससे सिद्ध होता है कि पौरपाट' शब्द परवार' . १६८२ मार्गसिर वदि रखो म० ललितकीर्तिजातिके ही लिये प्रयुक्त किया गया है। पट्टे म० भी धर्मकीर्ति गुरुपदेशात् परवार धनामूर सा.
अब एक और लेखाश देखिये जो पपौराजीके हठोले भार्या दमा (या) पुत्र दयाल भार्या केशरि भौहिरके मन्दिरके दक्षिण पावके मन्दिरकी एक मोजे गरीबे भालदास भायां सुभा......" प्रतिमा पर खुदा है।
यह यन्त्र भी उन्ही मट्टारक धर्मकीर्तिके उपदेशसे ..........."संवत् १७१८ वर्षे फाल्गुने मासे कृष्णपक्षे स्थापित हुआ है जिन्होंने यजोनको पूर्वोक्त प्रतिमाको ........""भीमलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंद. प्रतिष्ठित कराया था । पर उसमें तो 'पौरपट्ट' खुदा है कुन्दाचार्यान्वये महारक श्री ६ धर्मकीर्तिदेवास्तपढे और इसमें 'परवार' । इससे मी यह स्पष्ट होता है कि भट्टारक भी ६ पद्मकीर्तिदेवास्तपट्टे महारक भी ६ पौरपट्ट और परवार एक ही है और यह लेख लिखनेसकलकीर्तिरुपदेशेनेयं प्रतिष्ठाकृता तद्गुरुरायोपाध्याय वालेकी इच्छा पर था कि वह चाहे पौरपट्ट या पौरपाट नेमिचन्द्रः पौरपट्टे अष्टशाखाभये धनामूले कासिम्ल लिखे और चाहे परवार । अर्थात् परवार शब्द ही गोत्रे साहु अधार भार्या लालमती............ संस्कृत लेखोंमें 'पौरपद्ध' बन जाता था। ___एक और लेख यूबोन जीकी एक प्रतिमा पर इस
परवार और पोरवाड़ प्रकार है
अब हमें यह देखना चाहिये कि इस 'पौरपाट' "सं० (१६) ५ माघ सुदी ५ भी मूलसंघे या 'पोरवाट' के सम्बन्धमें अन्यत्र भी कुछ जानकारी कुंदकुन्दाचार्यान्वये भ. यशकीर्ति पट्टेम० भी ललित- मिलतारपा नहा। यह साचत हा हमारा ध्यान सबस
मिलती है या नहीं। यह सोचते ही हमारा ध्यान सबसे कीर्ति पट्टे भ० श्री धर्मकीर्ति उपदेशात पौरपदे बितिरा- पहले नाम साम्य के कारण वैश्योंकी एक और प्रसिद्ध मूर गोहिल गोत्र साधु दीन मार्या........."
जाति पोरवाड़की ओर जाता है, जिसकी पावादी इस तरह के और भी अनेक लेख है जिनमें मर दक्षिण मारवाड़, सिरोही राज्य और गुजरातमें काफी और गोत्र भी दिये हैं। इससे इस विषय में कोई सन्द तादादमें है। कुछ लेखों और ग्रंथोंमें इसे भी परवार
- जातिके समान पोरवाट मा पौरपाठ कहा गया है सामधारहीशका सं.1... एक
पापा'पाठ' और 'पा' पा 'पाक' शब्द सवितपुरके मेनपावके पति व पावसापकी पासवस्व मूतिपर चुका है। उसमें महारतोंकी पर-
मौगोविक नामों साव विभागके वर्ष में प्रयुक होते
पासेही पारदोबासाहै। इसके लिये म्पा मोबहीदी और गोजप।लि सोस...रावासनियास पाक पौरपायाखायो विवा।
सी. पी एस बरार, पृ. २४और का