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________________ (बैसाख, पीर विm जैसे "करनवेल (जबलपुरके निकट) के एक शिलाभीमानी उसपाखारप पौरवासारच नाया। लेखमें प्रसंगवशात् मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा (सपाल, . दिवा गुराः मोवावे.बायुक्रवासिया।। बैरिमिह और विजयसिंहका वर्णन आया है जिसमें वायुपुतर उनको 'प्राग्वाट' का राजा कहा है। अतएव 'प्राग्वाट' . इसमे वायुक्ट अर्थात् वायड (पाटणके समीप ) मेवाइका ही दूसरा नाम रोना चाहिए । संस्कृत-शिलामें रहने वाली वैश्य-जातियोंके नाम बतलाए है-- लेखों तथा पुस्तकोंमें 'पोरवाई महाजनोंके लिए भीमाली, उसपाल (पोसवाल), पौरवाड़ ( पोरवाड़), 'प्राग्वाट' नामक प्रयोग मिलता है और वे लोग अपना नागर दिक्पाल (डीसावाल या दीसावाल ), गुर्जर निकास - मेवाड़के 'पुर' नामक कस्बेसे बबलाते हैं और मोद। जिसस सम्भव है कि प्राग्वाट देशके नाम पर वे अपनेयह बात विद्वानोंने मान ली है कि गुजरातकी को प्राग्वाट वशी कहते रहे हो।" 'पोस्वाट' जाति पोरवाढ़ ही है, वहांके पोरवाड़ भी हम विभिन्न प्रतिमा-लेखोंसे ऊपर सिद्ध कर चुके हैं अपनेको 'पोरपाट' या 'पोरवाट' मानते हैं। कि 'परवार' शब्दमें जो 'यार' प्रत्यय है वह 'वाट' या ऐसो दशामें यदि यह अनुमान किया जाय कि पार्ट' शब्दसे बना है जिसका प्रचलित अर्थ होता है पोरवाद और परवार मूलमें एक ही थे तो वह प्रत्युक्त रहनेवाले' । इस तरह 'पौरपाट' शब्दका अर्थ 'पोरके न होगा । और यह सिद्ध हो जाने पर कि 'पोरवाई' रानेवाले' होता है। मेरे ख्यालसे इसी पुर नामम और 'परवार' एक ही हैं, 'पोरवाड़ी का इतिहाम एक पौर' बन गया है और परवार और पोरवाड़ लोग मूलतरह से परवारों का ही इतिहास हो जाता है और में इसी 'पुर' के रहनेवाले थे। 'पौरपाट' का अर्थ पोरवाड़ोंकी उत्पत्ति जहाँसे हुई है वहात ही परवारोंकी 'पुरकी तरफने भी लिया जा सकता है । 'पुर' गाँव उत्पत्ति सिद्ध हो जाती है। अब हम यह देग्वेग कि जिसका कि ऊपर जिक्र है, अब भी मेवाड़में भीलवाड़े विद्वानोंका पोरवाड़ोंकी उत्पत्ति के विषयमें क्या कहना के पास एक कस्वा है जो किसी ममय बड़ा नगर था। कभी कभी शब्दोंके दुहरे रूप भी बना लिये जाते परकारों और पोरवाड़ोंका मूल स्थान है जैसे 'नीति' शब्दसे 'नैतिकता' । 'नीति' से 'नैतिक' पोवाड़ोंका पुराना नाम 'पौरपाट' पोरवाट' और बना और फिर उसमें भी 'ता' जोड़कर 'नैतिकता' प्राग्वाट मिलता है। इस सम्बन्धमें सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ बनाया गया यद्यपि 'नीति' और 'नैतिकता' के अर्थ महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचन्द श्रोझा अपने एक ही हैं। इसी तरह मालूम होता है 'पुर' से भी 'राजपूतानेका इतिहास' की पहिली जिल्दमें लिखने 'पौर' बनाकर उममें 'वाट' या 'पाट' लगा लिया गया जबकि पुराने 'वाट' यापाटलगा देनेसे भी . या व श्री विमला बोरलाई न्यास काम चल सकता था। विलित बीमातीमोनासादि नामक: Y परं यदि बुर का पैर में कर मीधा ही उसमें परसे लिया गया है। 'वाट' या 'पाट' प्रत्यय कोई दें तो पुरवास 'पुरकर . nn
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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