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________________ नेपाल .. . [साब, बीरवि बनरी और तनीदार चोली परवार स्त्रियोजी ही विथे. तीसरा लेख मानपुरा (चंदेरी) की एक प्रतिमाका पसा थी, जो पड़ोसी जातियोंमें नहीं थी और यदि थी तो है-- इन्हीके अनुकरण पर। __ "संवत् १३४५ आषाढ़ मुदि २ दुधौ (ब) भी मूल परवार जाति बाहरसे पाकर बसी है, इसके अन्य संघे भट्टारक श्रीरलकीर्तिदेवाः पौरपाटान्वये साधुदा हद प्रमास इसी लेखमें अन्यत्र मिलेंगे। मार्यावानी सुतश्च सौ प्रणमति नित्यं ।" परवार जातिका प्राचीन नाम इसमें भी मूर्ति प्रतिष्ठित करनेवाले पौरपाट अन्वयके हैं। । अब देखना चाहिए कि प्राचीन लेखोंमें इस जाति ___स्पष्ट मालूम होता है कि इन लेखोंमें 'पौरपाट' का नाम किस रूपमें मिलता है। मेरे सम्मुख परवारों या 'पौरपद' शब्द परवारों के लिए ही आया है क्योंकि बारा प्रतिष्ठित प्रतिमाओं और मन्दिरोंके जो थोड़ेसे लेख इन प्रांतोंमें जैनियोंमें परवार लोग ही ज्यादा है। फिर है, उनमें से सबसे पहला लेख अतिशय क्षेत्र ‘पचराई। भी अगर इस पर शंका की जाय कि पौरपाया पौरके शांतिनाथके मन्दिरका है जो वि० सं० ११२२ का पाट वंश परवार ही है, इसका क्या प्रमाण ? तो इसके है। उसका यह अंश देखिए लिए चन्देरीकी श्री ऋषभदेवजीकी मूर्तिका यह लेख पौरपरहान्वये राखे साधनाम्ना महेश्वरः । देखिए-- महेश्वररेष विव्यातस्तत्सुता परम) संशक संवत् ११०३४ वर्षे माघ सुदी ६ बुधौ (धे) अर्थात् पौरपट वंशमें महेश्वरके समान साहु महे- मूलसंघे भट्टारक श्री पद्मनन्दिदेव-शिष्य-देवेन्द्रकीर्ति श्वर थे जिनका पुत्र ध (म) नाम का था। पौरपाट अष्टशाखा श्राम्नाय सं० थपऊ भार्या पु तत्पुत्र दूसरा लेख चदेरीके मन्दिरकी पार्श्वनाथकी प्रतिमा सं० कालि भार्या श्रामिणि तत्पुत्र सं० जैसिंघ भार्या पर इस तरह है:-- महासिरि तत्पुत्र सं..............." "संवत् १२५२ फाल्गुन सुदि १२ सोमे पौरपाटा- इसी तरह का लेख देवगढ़ में है जिसका एक न्वये साधु यशहद रुद्रपाल साधु नाल भार्यायनि...... अश ही यहाँ दिया जाता है - पुत्र सोलू मीनू प्रणमति नित्यम् ।" "संवत् १४६३ शाके १३५८ वर्षे वैशाख बदि साहु सोलु भीमने स० १२५२ में यह प्रतिमा प्रति . ५ गुरौ दिने मूलनक्षत्रे श्री मूलसंघे बलात्कारगणे " सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रहित की थी और वे पौरपाट अन्वय या वंशके थे। देवा तन्छिष्य वादिवादीन्द्रभट्टारक श्री पदमनन्दिदेवा. पास पचराई वीर्षकी रिपोर्ट में छपा है। इस छिष्य श्री देवेन्द्रकीर्तिदेवाः पौरपाटान्यवे अष्टबर्दिया बार बारदासबीबी०ए० टीकमगढ़ने कपा ..- . . ... ... . . . . करके मेरे पास भेव विषा है। उसके नीचे रुपा है, यह संक्त शायर प्रतिलिपि करने 'पुरातत्वविमाग ग्वाविपरसे प्राप्य'। इस निबन्यके वाले ने गलत पर विषा है, ऐसा जान पाता है। अन्य प्रतिमा-सा भी उतना सा की पासेही हदेव हमें बाबू बाबूरामजी लि. की ग्राम पर है। जोंकी कापी सापवानीसे नहीं की गई पासे प्राहा है । इसकी जा पहुवती मार भी अमरना है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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