SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभाचन्द्रका तपार्थसूत्र 'पहले दो (भात, रोह) ध्यान संसार कारण कुल समकक्ष है। दोनों एक ही नाशयको लिये हुए 'दूसरे दो (पम्प, एक) मोपके कारण है।' अशेषकर्मक्षये मोक्षः ॥३॥ उमास्वातिने इन दोनों सूत्रोंके स्थान पर परे मोप- 'सब कर्माका भय होने पर मोच होता है।' हेतु' नामका एक ही सूत्र रक्खा है और उसके द्वारा इस सूत्रके स्थान पर उमास्वातिका दूसरा सूत्र दुसरे दो ध्यानोंको मोक्षका हेतु बतलाया है, जिसकी 'बन्धहत्वभावनिर्जराभ्यां चरस्मकर्मविप्रमोसमोर सामर्थ्यसे पहले दो ध्यान स्वतः ही संसारके हेतु हो है, जिसमें 'बन्धहेत्वमावनिर्जराम्या' यह कारण जाते हैं । यहाँ स्पष्टतया ससार और मोक्षके हेतुअोंका निर्देशात्मक पद अधिक है । और उसके द्वारा यह अलग अलग निर्देश कर दिया है। सूचित किया गया है कि अशेष कोका विनास बन्धक पुलाकाद्या: पचनिन्थाः ॥ ७॥ हेतुओंके अभाव और संचित कोंकी निर्जरासे होता है। 'पुखाक मादि पाँच निर्ग्रन्थ हैं।' तत अव गच्छत्या लोकांतात ॥३॥ यहाँ पाँचकी संख्याके निर्देशपूर्वक 'पादि' शब्द ___'तत्पश्चात ( मोरके अन्तर) मुक्त जीव बोकके से पागमप्रसिद्ध बकुश, कुशील निम्रन्थ और स्नातक अन्त तक गमन करता है।' नामके चार निम्रन्योंका संग्रह किया गया है । उमा ____ यह सूत्र उमास्वातिके पांचवें सूत्र सदनन्तर मुख्य स्वातिने 'पुजाक-बय-कुशीन-निम्रन्थ-स्मासका निर्म गच्छत्याखोकान्तात्'के बिल्कुल समकक्ष है तथा एकान्याः' इस सूत्रमें पाँचोंका स्पष्ट नामोल्लेख किया है। र्थक है और उससे तीन अक्षर कम है। इति वृहत्समाचन्द्रविरचिते तत्वार्थसूत्र नव- ततो न गमनं धर्मास्तिकायाभावात् ॥ ४॥ मोध्याय ॥ ९॥ 'लोकके अन्तिम भागके परे मनोको गमन नहीं इस प्रकार ग्रहामा चन्द्रविरचित कार्यमूवमें है. क्योंकि वहां धर्मास्तिकायका प्रभाव है।' नवाँ अन्याय समास हुआ। यह सूत्र उमास्वातिके धर्मास्तिकायाभावाच' सत्रके समकद है -मात्र 'ततो न गमनम्' पदोंकी विशेषताको दसवां अध्याय लिये हुए है, जो अर्थको स्पष्ट करते हैं। मोहक्षये पातित्रयापनोदाकवलं ॥ १ ॥ क्षेत्रादिसिद्धभेदाः माध्याः ॥५॥ 'मोहबीय कर्मका पप होने पर तीन पातिया श्वे. सूत्र पाठमें यह सूत्र दो सूत्रों में विभक्त है। को ज्ञानावरण दर्शनावरब, अन्तराप-के विनाशसे इसका पहला पद दूसरा सूत्र और शेष दो पद 'विप्रकेवल ज्ञान होता है। मोहो' के स्थान पर 'क्षयो' पदकी तबदीलीके साथ यह सूत्र उमास्वातिके 'मोहमपात शानदर्शना- तीसरा सूत्र है। वरणासरावाच केवलम्' इस प्रथम सूत्रके बिल चा
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy