SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [बैसाख, पीरनिर्वावसं.१५ पादिक हारा सिदमेद साब-कि- इति मी हत्यमाचंद्राचार्यविरचिते तत्व , सारे सूत्रे दशमोध्यायः ॥१०॥ यहाँ 'पादि' शब्दसे उन प्रगमोदित काल, गति, इति बिनकरिपसूत्रो समान लिंग, तीर्थ, प्रत्येकचोधित, पुदबोधित, शान, अवगाह- इस प्रकार हमाचप्राचार्य विरचित तवार्य ना, अन्तर, संख्या और अपबहुत्व भेदोका सपा सार सूत्र में दसवां अध्याय पूर्व हुमा।' किया गया है जिनके द्वारा सिद्धोंमें नयविषक्षासे विक- इस प्रकार निगरपी सूत्र समा हुमा ।' स किया जाता है-कुनै भेदरूप माना जाता है- पीरसेवा-मन्दिर, सरसापा, ता. 20-1-100. और जिनका उल्लेख उमास्वातिने अपने क्षेत्रकालगति... मुपासाबासूबमें किया है । और स्वार्थ सिद्धिकारादिने मिनका विशेष विवेचन किया है। विविरचिते। विवकरपी सूत्र परमाणु ! (रच-श्री चैनसुखदास न्यायती] अजब हैं तेरे सब व्यापार ! तू भनित्य नौ नित्य कशित्। स्पर्श इय-रस-गन्ध-रूप-मय कभी न मिलता तुझसे सञ्चित् विश्वोदय भी लयका प्रालय बन जाता जब स्कन्ध बन्ध-मय का अनन्त परिवर्तन, फिर भी हो जाता सविकार। रहता है अविकार । प्रादि-मध्य-अवसान न होता शाङ्कर-छिद्र सहित बतलाते फिर भी तू षट्कोण कहाता छिद्र रहित सब दर्शन गाते हैं साँख्य पतन्जलिकी तन्मात्रा तुझे बताते विधि-विधानमें ४ तु त्वन्मय संसार । श्रादि-अन्तका द्वार । V यह अनन्त रचना सब तेरी सर्व तन्त्र-सिद्धान्त बनाते x विश्व-प्रकृति है तेरी घेरी तुझे तत्वषेचां बतलाते Y जल-चल-घरज-चन्द्र आदिमें विविध क्रिया-गतिका प्राश्रय तू तेरा ही विस्तार। अपपवि का है सार ।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy