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वर्ष ३, किरण
प्रभाचन्द्रका तत्वार्थ सूत्र
वाले अगले पाँच सूत्र नहीं दिये। सातवाँ अध्याय
मैञ्यादयश्चतस्रः ॥४॥ हिमादिपंचविरतिबन॥१॥
'मैत्री प्रादि चार भावनाएँ और है।' 'हिसादिपंचकसे विरक्त (निवृत्त) होना व्रत है।' यहाँ 'आदि' शब्दसे अागमनिर्दिष्ट प्रमोद, कारुण्य
हिमा, असत्य, चौर्य, अब्रह्म और परिग्रह ये पच और माध्यस्थ्य नामकी तीन भावनात्रोंका संग्रह किया पाप कहलाते हैं । इनसे निवृत्त होना ही 'बा' है, और गया है। मैत्री महित ये ही चार प्रसिद्ध भावनाएँ हैं। इमीलिये व्रतके अहिमा, मत्य, अचार्य, ब्रह्मचर्य
उमास्वातिने 'मैत्रीप्रमोद नामक सूत्र में इन चारोंका और अपरिग्रह ऐसे पाँच भेद हैं । यह सूत्र और उमा
नाम सहित संग्रह किया है। स्वातिका 'हिमानृतस्तेयाब्रह्म परिग्रहेभ्यो विरतिर्बनं'
श्रमणानामष्टाविंशतिर्मूलगुणाः॥५॥ सूत्र दोनो एक ही टाइप और प्राशयक है । उभास्वाति
'श्रमणों के अट्ठाइस मूलगुण है।' ने प्रसिद्ध पाँचो पापांक नाम दिये हैं. यहाँ हिमाके माथ
इम श्राशयका कोई सुत्र उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्र शेषका 'श्रादि' शब्दके द्वारा मंग्रह किया गया है। मनही है। हमम जैन माधुओंके मूल गुणोंकी जो २८ महाऽणु* भदेन तद्विविधं ॥२॥
मंख्या दी है उममें मूलाचारादि प्राचीन दिगम्बर ग्रंथों 'वह व्रत (व्रतसमूह) महाव्रत और अणुवतके के कथनानुमार अहिमादि पंच महाव्रत, ईर्यादि पंच भेदमे दो प्रकारका है।'
मिनिया, पाँचो इन्द्रियोंका निरोध, सामायिकादि छह यह मूत्र उमाम्बानिक दूसरे मृत्र 'देशसर्वनोऽणु- अावश्यक क्रियाएँ, अस्नान, भशयन, केशलोंच, अचेमहनी' के समकक्ष है और उसी अाशयको निपे हुए लत्व ( नमत्व ), एकभुक्ति, ऊर्ध्वभुक्ति ( खड़े होकर है । इसके और पर्व मूत्र के अनुसार महानी नया ठा. भोजन करना) और अदन्नघर्पण नामके गुणोंका समागुवतीकी मख्या पाँच पाँच होती है। नहाया॑य भावनाः पंचविंशतिः ॥ ३॥
___ श्रावकाणामणौ ॥६॥ 'उन (व्रतों) की दृढ़ताके लिये पश्चीम भावनाएं हैं। 'श्रावकोंके मूलगुण पाठ हैं।'
यह सूत्र उमाम्बानिक 'नस्थैर्यार्थ भावनाः पंच अाठ मूल गुणांके नामोंमें यद्यपि श्राचार्यों में कुछ पंच' सूत्र (न० ३) के समकक्ष है और उमीके अाशय मत भेद पाया जाता है, जिमके लिये लेखकका लिग्वा का किये हुए है। वहाँ प्रत्येक व्रतको पाँच पोच भाव- या 'जैनाचार्योंका शामन-भेद' नामका ग्रंथ देग्वना नाएँ बनलाई है, नब यहा उन सबकी एकत्र सरव्या चाहिये । परन्न यहाँ चूंकि व्रती श्रावकोंका अधिकार है पच्चीम दे दी है । दिगम्बर पाठानुमार उमास्वातिक इमलिये अाठ मूलगुणों में स्वामी ममन्तभद्र-प्रतिपादित अगले पांच सूत्रोंमें उनके नाम भी दिये हैं, परन्तु यहाँ आँच गुणवतों और मद्य-माँस-मधुके त्यागको लेना संख्याके निर्देशसे उनका संकेतमात्र किया गया है। चाहिये । इम श्राशयका भी कोई सूत्र उमास्वातिके श्वेताम्बर सूत्रपाठमें भी ऐसा ही किया गया है--नामों- तत्त्वार्थसूत्र में नहीं है।
भवणा | मूलगुणा।