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________________ प्रभाचन्द्रका तत्वार्थसूत्र [सम्पादकीय (गत किरणसे मागे) छठा अध्याय यहाँ 'श्रादि' शब्दसे असातावेदनीयके श्रासवहेतु श्रोंमें शोक,ताप, श्राक्रन्दन,वध, परिदेवनका और साता त्रिकरणः कर्म योगः ॥१॥ वेदनीयके हेतुश्रों में दान, सरागसंयम, क्षमा, शौचादि'तीन करोंसे (मन वचन-कापसे) की जाने वाली का संग्रह किया गया है । उमास्वातिके दो सूत्र नं०११, क्रियाको योग कहते हैं।' १२ का जो श्राशय है वही इसका समझना चाहिये। प्रशस्ताप्रशस्ती ॥२॥ यहाँ सूचनारूपसे बहुत ही संक्षिप्त कथन किया गया है। पुण्यपापयोः [हेतु] ॥३॥ केवल्यादिविवादो (धवर्णवादो!) दर्शनमोहस्य. 'पोग प्रशस्त अप्रशस्त दो हैं।' केवखी भादिका विद्याप (अपवाद!)-उन्हें झूठे 'प्रशस्त योग पुरयका भप्रशस्त योग पापका दोष लगाना-दर्शनमोहका हेतु है। (मानव.) हेतु है। ___यहाँ 'आदि' शब्दके द्वारा श्रुत, संघ, धर्म और उमास्वातिके 'शुभः पुण्यस्याऽशुभः पापस्य' सूत्रका देवके अवर्णवादका भी संग्रह किया गया है। यह सूत्र अथवा श्वे. मान्यताके अनुसार 'शुभः पुण्यस्य', 'प्र. उसी श्राशयको लिये हुए जान पड़ता है जो उमास्वातिके शुभः पापस्य' सूत्रोंका जो श्राशय है वही इन सूत्रोंका 'केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो वर्शनमोहस्य सूत्रका है। कषायजनिततीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥७॥ गुरुनिन्दवादयो ज्ञानदर्शनावरणया:* ॥४|| ___ 'कषायसे उत्पन्न हुमा तीन परिणाम चारित्रमोह 'गुरुनिन्हव (गुरुका छिपाना) मादि ज्ञानावरणदर्शनावरणके हेतु हैं।' यह सूत्र और उमास्वातिका 'कषायोदयात्तीब' यहाँ 'श्रादि' शब्दसे मात्सर्य, अन्तराय, आसादन नामका सूत्र प्रायः एक ही है-मात्र उत्पात्' और उपघात श्रादि उन हेतुओंका ग्रहण करना चाहिये जो कै। - यहाँ मूल पुस्तकमें नं०७ श्रागममें वर्णित हैं, और जिनका उमास्वातिने 'तत्प्रदोष- दिया है जो गलत है। क्योंकि इससे पहिजे 'चतुर्विनिन्हव' नामके सूत्रमें उल्लेख किया है। शतिकामदेवाः' नामका एक सूत्र पुनः गलतीसे नं. दुःखात्यनुकंपाचा असातासातयोः ॥५॥ ६ पर लिखा गया था, जिसे निकाल देनेका संकेत किया हुमा है; परन्तु उसे निकालने पर आगेके नम्बरोंको 'दुख प्रावि असाताके, प्रत्यनुकम्पा पादि साताके बदलना चाहिये था जिन्हें नहीं बदला । इसलिये इस अध्यायके अगले सब नम्बर प्रन्यप्रतिमें एक एककी •परणादयः ।। It पाः साता। वृद्धिको लिए हुए है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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