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परका जीवन-मान
अन्दर बैठ निर्वात हो ज्ञान-दीपक जगाना होगा। दर्शन सम्यक शान, सम्यक चारित्रका मार्ग है। शान प्रकाशको उसीके देखनेमें लगाना होगा। जिसके यह है वह विधिनिषेधात्मक सिद्धि मार्ग, जो गहरेसे लिये यह सब देखना जानना है-ट्रंदना मालना है। गहरे बैठे हुये संस्कारोंको निर्माण कर विध्वंस कर उसीकी भावनाओंको सुनना और समझना होगा। देता है। जो सोई हुई श्रात्म-शक्तियोंको जगा देवा जिसके लिये यह सब उद्यम है-पुरुषार्थ है । जो निर- है, उन्हें भावनासे निकाल साक्षात् भाव बना देता है। न्तर पुकारता रहता है "मैं अजर हूँ-अमर हूँ, तैजस- यह मार्ग बहुत कठिन है। इसके लिये अनेक प्राकज्योतिमान् हूँ, सुन्दर-मधुर हूँ, महान् और सम्पूर्ण तिक और मानुषिक विपदाओं और करतानोको सहन
करना पड़ता है, अनेक शारीरिक और मानसिक त्रुटिसमस्त लक्ष्योंको त्याग इसी भावनामयी जीवनको यो एवं बाधाओंसे लड़ना पड़ता है। यह मार्ग परिअपना लक्ष्य बनाना होगा। इसे ध्रुव-समान दृष्टिमें पहोंसे पूर्ण है। इसके लिये अदमनीय उत्साह, सत्या. समाना होगा । अपनेको निश्चय-पूर्वक विश्वास कराना ग्रह और साहसकी जरूरत है । यह मार्ग कठिन ही नहीं होगा । "सोऽहं, सोऽहं", मैं वही हूँ, मैं वही हूँ। लम्बा भी बहुत है। इसके लिये दोर्ष पुरुषार्थ और भेणी
समस्त विद्वानोंको छोड़ शानको इसी अमृतमयी बद्ध अभ्यासकी जरूरत है। इसे अभ्यस्त करनेके लिये जीवनकी ओर ध्यान देना होगा । इसे स्पष्ट और पुष्ट इस मार्ग पर निरन्तर चलते रहना होगा। सोते-जागते, करना होगा। अन्दर ही अन्दर देखना और जानना चलते-फिरते, खाते-पीते, उठते-बैठते, हर समय इस होगा । 'सोऽहं मोऽहं ।'
पर चलते रहना होगा । विचार है तो 'सोऽहे', पालाप समस्त रूढ़ीक भावों और बंधनोंसे हटा ममत्वको इसी है तो 'सोऽहं', प्राचार है तो 'सोऽहं । इस मार्गको लक्ष्यमें श्रामक्त करना होगा। इसीके पीछे २ चलना जीवन तन्तुषोंमें रमा देना होगा। यहां तक रमाना होगा, इमीके समरसमें डूबना होगा। हर समय अनुभव होगा कि यह मार्ग जीवनमें उतर पाये, जीवनमें समा करना होगा। 'मोऽहं सोऽहं ।'
जाये । साक्षात् जीवन बन जाये। यहां तक कि 'मैं' यह मार्ग श्रात्म-श्रद्धा, श्रात्म-विद्या, श्रात्मचर्याका और 'वह' का भेद भी विलय हो जाये । केवल वह ही मार्ग है। यह मार्ग सत्यपारमिता, प्रज्ञापारमिता,शील- वह रह जाता है। पारमिताका मार्ग है। यह मार्ग आत्म निश्चित, यह मार्ग किसी बाह्य विधि विधान, क्रिया काण्ड, अात्मबोध, आत्मस्थितिका मार्ग है।। यह मार्ग सम्यक- परिग्रह आडम्बरमें नहीं रहता; यह किसी भाषा, पालाप
ग्रन्थमें नहीं रहता, यह किमी सामायिक प्रथा, संस्था. प्रश्न उप०१-१०.५-३, मुण्ड उप०३-1-५,'
व्यवस्थामें नहीं रहता, यह किसी पूजा-प्रार्थना, स्तुति1-1-11,' कैवस्य उप.-१.
वन्दनामें नहीं रहता। यह मार्ग साध्य के समान ही नदीध निकाय-दूसरा सुत्त, कटा सुत्त, १०वाँ सुत्त, अलौकिक और गढ़ है, साध्यके साथ ही प्रास्माकी
श्वौ सुत्त । बाठी संहिता-पच्याप ।
• स्वार्थाधिगमसूत्र १-१, रत्वकररावकाचार,