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________________ अनेकान्त [चैत्र, वीर-निर्वाण सं०२४१॥ उठने शुरू होते हैं । क्या दुःखी जीवन ही जीवन है ? तन्द्रा और म को अपनाया, माम-मैथुन-मदिराको क्या मरणशील जीवन जीवन है ? यदि यह नहीं ग्रहण किया । अनेक आमोद-प्रमोद, हँसी-मज़ाकके तो जीवन क्या है ? उद्देश क्या है ! फिर वही तर्क उपाय निकाले । अनेक खेल कूद और व्यसन ईजाद वितर्क, फिर वही मीमांसा दुहरानी शुरू होती हैं। किये, परन्तु दुःखने साथ न छोड़ा। प्रश्न हल करनेका विफल साधन: यह देख उद्योग मार्ग पर अधिक जोर दिया। जीवने इन प्रश्नोंको हल करनेके लिये बुद्धि-ज्ञान १ अनेक उद्योग धन्धे, अनेक काम काज अनेक व्यवसाय से बहुत काम लिया, उसके पर्याप्त साधनों पर-इन्द्रिय बनाये । इनमें उपयुक्त रहना ज़रूरी माना गया, बेकार और मन पर बहुत विश्वास किया, इन्हें अनेक प्रकार रहनेसे बेगारमें लगे रहना भला समझा गया; परन्तु उपयोगमें लाकर जीवन तथ्य जानने की कोशिश की. दुःखका अन्त न हुश्रा। परन्तु इन्होंने हमेशा एक ही उत्तर दिया कि 'लौकिक इसपर मनुष्यने विचारा कि सुख दुःख काल्पनिक जीवन ही जीवन है, शरीर ही श्रात्मा है, भोग रस ही नहीं हैं। दुःख भुलाने से नहीं भुलाया जा सकता सुख है, धन धान्य ही सम्पदा है, नाम ही वैभव है, और सुग्व कल्पना करने से सिद्ध नही हो सकता। यह रूप ही सुन्दरता है; भौतिक बल ही बल है, सन्तति ही वास्तविक है, परन्तु यह अपने श्राधीन नहीं, बाह्य लोक के आधीन है, जगतकी प्राकृतिक शक्तियों के आधीन अमरता है। इन्हें ही बनाये रखने, इन्हें ही सुदृढ़ है, शक्तियोंके अधिष्टाता देवी-देवताओंके आधीन है। बलवती करने, इन्हें ही सौम्यसुन्दर बनानेका प्रयत्न करना चाहिये । जीवनका मार्ग प्रवृत्ति मार्ग है;प्रकृति के देवी देवता महा बलवान हैं, अजयी हैं, अपनी मर्जीके नियमानुसार कर्म करते हुये, भोगरस लेते हुये विचरना मालिक हैं । इनका अनुग्रह हासिल करनेके लिये इन्हें ही जीवन-पथ है । और सुखदुःख ? सुखदुःख स्वयं कोई पूजा-प्रार्थना, स्तुति-वंदना, यज्ञ-होम से सन्तुष्ट करना चीज़ नहीं है, यह सब वाह्य जगतके श्राधीन हैं। इसीकी चाहिये । यह सोच मनुष्यने याज्ञिक मार्गको ग्रहण कल्पनामें रहते हैं, इसे दुःखदायी कल्पित करनेसे किया, परन्तु इष्ट फलकी सिद्धि न हुई । जगत ज्योंका दुःख और सुखदायी कल्पित करनेसे सुख पैदा होता । त्यो अन्ध, स्वच्छन्द, विवेक हीन बना रहा । वह है। अतः दुःखदायी पहलको भुलाने और सखदायी उपामक और निन्दकमें, अच्छे और बुरेमें कोई भेद पहलमें मग्न रहने का अभ्यास करना चाहिये ।' न कर सका, उसका उपकार है तो सबके लिये, उसका इस बुद्धि अनुसार दुःखको भुलाने और सुखको अनुभव करने के लिये जीवने क्या कुछ नहीं किया। ____ तब मनुष्य ने इन मार्गोको निरर्थक मान स्वावलअनेक पहलू बदले, अनेक मार्ग ग्रहण किये; परन्तु कुछ ___म्बनका श्राश्रय लिया। पूजा-प्रार्थनाको छोड़ जगतभी न हुश्रा, प्रश्न ज्योंके त्यो खड़े रहे ! शक्तियोंको बलपूर्वक अपने वश करनेका इरादा किया। शुरू शुरू में तान्त्रिक मार्गको श्राजमाया। देवी जीपनके विफल मार्गः देवताओंको विजय करने के लिये अनेक मन्त्र, तन्त्र, जीवने अज्ञान मार्गका आश्रय लिया। निद्रा, यन्त्र ईजाद किये । शरीरको दृढ़ बलिष्ठ करने के लिये,
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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