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अनेकान्त
[चैत्र, वीर-निर्माण सं०२४१६
मुझे मषित किया गया है कि पाठ्यक्रममें निर्धारित बानने योग्य खास खास प्राचार्योंके जीवन चरित्रोंका पुस्तकोंकी तीन तीन प्रतियां भी सम्मेलन कार्यालय में भी इसमें समावेश है। एवं तीनों संप्रदायोंके समाचार मिक्वाइयेगा । क्योंकि इन पुस्तकोंकी जोर परतावा पत्रोंका पठन की भावश्यक माना गया है, इससे परीक्षा समिति करेगी। विना पुस्तकोंके देखे परीक्षा- परस्परकी स्थिति एवं भावनामों का शान भी पात्रोंको समिति पाठयक्रममें स्थान नहीं दे सकेगी । अतः जिन हो सकेगा । आशा है कि विद्वान् महानुभाव इस प्रकाशकोंकी पुस्तकें पाव्यकममें निर्धारित हों उन्हें रष्टिकोण का विचार करते हुए अपना संशोधन और सूचना पर उनकी तीन तीन प्रतियां शीघ्र भेजने अपनी बहु मूल्य सम्मति निम्न पते पर ।। मई तक श्रीक्षण करनी चाहिये । पुस्तकें मध्यमा और दर्शन- भेजनेकी कृपा करेंगे, जिससे कि मईके अंतिम सप्ताह रल पातु मरन-पत्रकी भेजना होंगी।
तक सम्मेलन-कार्यालयमें पाब्यामकी अन्तिम रूपरेखा _ 'पाठ्यक्रम सरल और महत्वपूर्ण हो,' यही एक भेजी जा सके।
टिकोण एक्खा गया है। क्योंकि मध्यमामें जैनएनके साथ अन्य दो विषय और भी रहेंगे। अतः पता-रतनलाल संघवी, पो० छोटी सादड़ी (मेवाद) सरल होने पर ही जैन छात्र एवं अन्य जैनेतर छात्र इस
वाया नीमच। और पाकर्षित हो सकेंगे। अन्यथा जटिल होनेकी दशामें यह प्रयास और ध्येय व्यर्थ ही सिद्ध होगा।
पाठ्य-क्रम मध्यमा परीक्षा यह स्पष्ट ही है कि यदि जैन दर्शनका पाठ्यक्रम बटित
प्रथम प्रश्नपत्र होगा तो पात्र इसे न चुन कर किसी अन्य वैकल्पिक पाठ्य ग्रंथ-1 कर्म-ग्रंथ पला भाग भूमिका सविषय का चुनाव कर मेंगे । इस लिये सरलता किन्तु हित (गाथाएं कंठस्थ नहीं) पं० सुखलालजी कृत मा. महत्याका याब रख करके ही यह पाठ्यक्रम बनाया गरा वाला। गया है। इसी प्रकार इसमें श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों २ जैन-सिद्धान्त प्रवेशिका ( प्रथम अध्याय और सके ग्रंथोंको स्थान दिया गया है, जिससे कि यह प्रश्न ३०८ मे ३३६ तक छोड़कर) पं० गोपालदासजी एक पदीय न होकर सार्वदेशिक जैन-दर्शनका प्रति- बरैया कृत। निधित्व करता है। इससे परस्परमें सांप्रदायिक भाव- सहायक ग्रन्थ- श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र मानों के स्थान पर एक ही बैनत्वकी भावनाओंका (बैरिस्टर चम्पतरायजी कृत) हिन्दी अनुवाद । पाचोंमें प्रसार होगा तथा कटुताके स्थान पर मातृत्व २ पुरुषार्थ सिद्धयुपाय (श्री अमृतचंद्र स्वामी) भावना और विशालताका फैलाव होगा। हिन्दी अनुवाद-श्री नाथरामजी प्रेमीवाला ।
इस पाठ्यक्रममें जैन दर्शन-सम्मत तत्ववाद, अन्य- ३ स्थाबाद भौर सप्तभंगीका साधारण भावश्यक बाद, गुरुस्थानवाव, कर्मवाद, भहिंसावाद, रत्नत्रयवाद, ज्ञान । प्रमाण-नववाद, स्याद्वाद आदि मावि मूलभूत सिद्धान्तों अंकोंका क्रम-पाव्य ग्रंथ .. अंक और सहा
पावश्यक और महत्वपूर्ण विवेचन भागया है। पक ग्रंथ ३० अंक ।