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व, किरण ]
प्रभाचयका तत्वार्यसूत्र
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यहाँ जम्बू द्वीपका कोई परिमाण न देकर मेरुका ही शन्दसे आगमवर्णित सिंधु, रोहित, रोहितास्या, हरित, परिमाण दिया है। जम्बद्वीप और मेरुपर्वत दोनों ही हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, एक एक लाख योजनके हैं।
रूप्यकूला,रक्ता, रक्तोदा, इन ११ नदियोंका संग्रह किया हिमवत्प्रमुखाः षट्कुलनगाः ॥ ५॥ गया है। उमास्वातिने अपने 'गंगासिंधु' प्रादि सूत्र 'हिमवान्को मदिखेकर पट मुलाया है। नं० २०1 में इन सबका नामोल्लेख-पूर्वक संग्रह किया
यहां छहकी संख्याका निर्देश करनेसे 'प्रमुख' है। इसीसे वह सूत्र बड़ा हो गया है। शब्दके द्वारा महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी भरतादीनि वर्षाणि ॥९॥ शिखरी इन पांच कुलाचलोंका संग्रह किया गया है, भरत भावि क्षेत्र है।' क्योंकि श्रागममें हिमवान्-सहित छह पर्वतोंका वर्णन यहां 'पादि' शब्दसे हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, है जो जम्बुद्धीपादिकमें स्थित हैं । उमास्वातिने ११वें हैरण्यवत और ऐरावत नामके छह क्षेत्रोंका संग्रह किया सूत्रमें उन सबका नाम-सहित मंग्रह किया है। गया है। षट् कुलाचलोंसे विभाजित होनेके कारण जम्बू
तेषु पद्मादयो हदाः॥६॥ द्वीपके क्षेत्रोंकी संख्या सात होती है। यह सूत्र और __ 'उन मुलाचखों पर 'पद्म' भादि वह है। उमास्वातिका १० वा ('भरतहमवत हरिषिदेवरम्पकार
यहां 'श्रादि' शब्दसे महापद्म, तिगिंछ, केसरी यवतेरावतवाः त्राणि') सूत्र एक ही प्राशयके हैं। महापण्डरीक और पुण्डरीक नामके पांच द्रोंका सग्रह त्रिविधा भोगभूमयः ॥१०॥ किया गया है, जो शेष महाहिमवान् श्रादि कुलाचलो 'भोग भूमिया तीन प्रकारकी होती है।' पर स्थित है । और जिनका उमास्वातिने अपने १४ वे यहाँ जघन्य, मध्यम और उत्चम ऐसे तीन प्रकार 'पचमहापा' श्रादि सूत्रमें उल्लेख किया है। की भोगमियोंका निर्देश है। हैमवत-हरण्यवत क्षेत्रों
___ तन्मध्ये भ्यादयो देव्यः ॥ ७॥ में जघन्य भोगभूमि, हरि-रम्यकक्षेत्रोंमें मध्यमभोगभूमि 'उन ग्रहों के मध्यमें भी मावि देवियां रहती है।' और विदेहक्षेत्र स्थित देवकुरु-उत्तरकुरुमें उत्तमकर्म
यहां 'आदि' शब्दसे आगम-वर्णित ही, पति, भूमिकी व्यवस्था है। उमास्वातिके तत्त्वार्यसूत्रमें यद्यपि कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी नामकी पांच देवियोंका संग्रह इस प्रकारका कोई स्वतन्त्र सूत्र नहीं है परन्तु उसके किया गया है, जिन्हें उमास्वातिने अपने १६ वें सत्रमें एकदित्रिपश्योपम' श्रादि सूत्र नं० १६ और 'योचराः' द्रह स्थित कमलोंमें निवास करने वाली बतलाया है। नामके सूत्र नं० २०० में यह सब प्राशय संनिहित है। तेभ्योक गंगादयश्चतुर्दशमहानद्यः ।। ८ । भरतैरावतेषु षट्कालाः ॥१२॥
'उन (मदों) से गंगाविक महा नदियां निक- 'भरत और ऐरावत नामके पत्रों में यह काल पर्वते लती है। यहां १४ की संख्याके निर्देशके साथ 'आदि' -
श्वेताम्बरीय सूत्रपाठमें यह सूत्र ही नहीं है। तस्माद् ।
• श्वेताम्बरीय सूत्रपामें ये दोनों ही सूत्र नहीं है।