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________________ [चैत्र, बीर-निर्वाण ०२४१५ 'सार्थकर, देव, नारकी भोर भोगमिया प्रचंड प्रमाको श्रादि लेकर ये ही सब सात नरक भूमियां वणित बाबुबाले होते है। हैं। यह सूत्र उमास्वाति-तत्त्वार्थसूत्रके तृतीय अध्यायके अकालमरणके द्वारा बड श्रायुका बीचमें खण्डित प्रथम सूत्रके मूल आशयके साथ मिलता-जुलता है। न होना 'अखण्डायु' कहलाता है। तीर्थंकरों आदिका उसमें 'धनाम्बुवाताकासप्रतिक्षाः' और 'अयोग्य' पदों अकालमरण नहीं होता-बाा निमित्तोंको पाकर उनका के द्वारा इन नरकभूमियोंके सम्बन्धमें कुछ विशिष्ट आयु छिदता-भिदता अथवा परिवर्तनीय नहीं होता- एवं स्पष्ट कथन और भी किया है। वे कालक्रमसे अपनी पूरी ही बद्धायुका भोग करते तासु नारकाः सपंचदुःखाः ॥२॥ है । दूसरे मनुष्य-तिर्यंचोंके अखण्डायु होनेका नियम उन सातों भूमियोंमें मारकी जीव रहते है और नहीं वे अखण्डायु हो भी सकते हैं और नहीं भी। वे पंच प्रकारके दुःखोंसे युक्त होते हैं। यह सूत्र उमास्वातिके भोपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येय नारकी जीव स्वसंक्लेशपरिणामज, क्षेत्रस्वभावज, वर्णयुगोऽमपपत्यायुषः' इस ५३वें सूत्रकी अपेक्षा बहुत परस्परोदीरित और असुरोदीरित श्रादि अनेक प्रकारके कुछ सरल स्पष्ट तथा अल्पाक्षरी है, इसमें उक्त सूत्र- दुःखोंसे निरन्तर पीडित रहते हैं। यहाँ उन सब दुःखों जैसी जटिलता नहीं है। को पांच भेदोंमें सीमित किया गया है, जिनके स्पष्ट इति श्रीप्रभाचंद्रविरचिते तत्वार्थसूत्रे द्विती- नाम नहीं मालूम हो सके । उमास्वातिके प्रायः २ से ५ योध्यायः ॥०॥ तकके सूत्रोंका श्राशय इममें संनिहित जान पड़ता है। 'इस प्रकामी प्रभाग-विरचित तत्वार्यसूत्रमें जम्बूद्वीपलवणोदादयोऽसंख्येयद्वीपोदधयः ॥३॥ दूसरा अध्याप समास हुमा । 'जम्बूद्वीप और बबबोदधिको मादि लेकर मसं मात हीप समुद्र है।' तीसरा अध्याय ___ यह सूत्र और उमास्वातिका "जम्बूद्वीपखवणोदा दयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः' यह सूत्र नं०७ दोनों रत्नप्रभायाः सप्तभूमयः ॥१॥ एक ही श्राशयको लिये हुए हैं। एकमें द्वीप-समुद्रोंक। 'लप्रमा चादि सात भूमिया है।' 'गुमनामानः' विशेषण है तो दूसरेमें 'असंख्येव' विशेयहाँ 'आदि' शब्दसे शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पण है। पप्रभा, धूमप्रभा, तम प्रभा, महातमःप्रभा इन छह तन्मध्ये लक्षयोजनप्रमः सचूतिको मेरुः ॥ ४॥ ममियोंका संग्रह किया गया है; क्योंकि भागममें रल- उन दीप-समुद्रोंके मध्यमें बास योजन प्रमाण श्वेताम्बरीच सूत्रपाठमें 'औपपातिकचरमवेहो- वादा पूलिका सहित मेक (पर्वत) है ।' समपुरुषा" ऐसा पाठ है जिसके बारा सभी चरम शरीरी उमास्वातिने 'तन्मध्ये मेनामिवृ'तो' इत्यादि सबा उत्तम पुल्लोंको प्रखरखा पसबाया है। उसमें सूत्रके द्वारा मेरुपर्वतको नाभिकी तरह मध्यस्थित बतमीबह दितीय अध्यापका अन्तिम सूत्र है परन्तु इसका लाते हुये उसका कोई परिमाण न देकर जम्बूद्वीपको लक्ष योजन प्रमाण विस्तार वाला बतलाया है, जब कि
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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