________________
बनेकान्त
[चत्र, बीर-निर्वाण सं०१६
पर किसी समय युगपत् हो सकते हैं। इससे दो तीन नामका सूत्र एक ही अर्थक वाचक है। सानोंका भी एक साथ होना ध्वनित होता है। दो एक
सद्विविधः ॥३॥ साथ होंगे तो मति, भुत होंगे, और तोन होंगे तो मति, वा (उपयोग) दो प्रकारका होता है।' भुत, अवधि अथवा मति, श्रुत और मनः पर्यय होंगे। यहां दोकी संख्याका निर्देश करनेसे उपयोगके एक शान केबलशान ही होता है---उसके साथमें श्रागमकथित दो मूल भेदोका संग्रह किया गया हैदूसरे ज्ञान नहीं रहते। यह सत्र उमास्वातिके एकादी- उत्तर भेदोंका वैमा कोई निर्देश नहीं किया जैसा कि नि माज्यानि बुगपदेस्मिनाचतुर्थः' इस सत्रके उमास्वाति के “सद्विविधोऽचतुर्भेदः" इस सूत्र न०६ समकक्ष है और इसी-जैसे आशयको लिये हुए है। में पाया जाता है । परन्तु इसकी शब्द-रचना कुछ सन्दिग्धसी जान पड़ती द्वींद्रियादयस्त्रसाः ॥४॥ है। संभव है 'एकवचत्वारि' के स्थान पर 'एकत्रैक द्वीन्द्रियादिक जीव वस हैं।' द्वित्रिचत्वारिं' ऐसा पाठ हो।
यहा 'श्रादि' शब्दसे त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय तथा इति श्री बृहत्प्रभाचन्द्रविरचिते तत्वार्थसूत्रे संजी-असज्ञीके भेदरूप पंचेन्द्रिय जीवोंके ग्रहणका प्रथमोध्यायः ॥१॥
निर्देश है । यह सूत्र और उमास्वातिका १४ वा सत्र _ 'इस प्रकार श्री बृहत् प्रभाचा-विरचित तत्वार्थ- अक्षरशः एक ही हैं। सूत्रमें पहला अध्याप समाप्त हुभा ।'
शेषाः स्थावराः ॥५॥ दूसरा अध्याय
'शेष (एकेन्द्रिय) जीव स्थावर है।' जीवस्य पंचभावाः ॥१॥
उमास्वातिके दिगम्बरीय मूत्रपाठके 'पृथिव्यपते. 'जीवके पंचभाव होते हैं।'
जोवायुवनस्पतयः स्थावराः' सत्र नं०१३ का जो प्राशय यहाँ पाँचकी सख्याका निर्देश करनेमे जीवके
है वही इम मत्रका है । और इमलिए स्थावर जीव पृथिवी आगम-कथित औपशमिक, दायिक, क्षायोपशमिक,
आदिके भेदसे पांच प्रकारके हैं।
द्रव्यभावभेदादिद्रियं द्विप्रकारं ॥ ६॥ श्रौदयिक और पारिणामिक, ऐसे पांच भावोंका संग्रह
'दन्य और भावके भेदसे इन्द्रिय दो प्रकार है।' किया गया है । उमास्वातिके दूमरे अध्यायका "श्रौप
इम सूत्रमं यद्यपि उमास्वातिके "द्विविधानि' १६, शमिकक्षायिको" आदि प्रथम.सूत्र भी जीवके भावोका द्योतक है। उसमें पांचोंके नाम दिये हैं, जिससे वह द्धि । बड़ा सूत्र हो गया है । आशय दोनोंका प्रायः एक ही श्वेताम्बरीय सत्रपाठमें १४वें सत्रका रूप 'तेनोवायू
द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः' ऐमा दिया है; क्योकि श्वेताउपयोगस्तल्लक्षणं ।। १॥ म्बरीय भाई अग्नि और वायुकायके जीवोंको भी त्रस 'जीवका लक्षण उपयोग है।'
जीव मानते हैं। यह सूत्र और उमास्वातिका 'उपयोगो नणं' पा