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श्वेताम्बर कर्मसाहित्य दिगम्बर ‘पंचसंग्रह
[०-५० परमानन्द शास्त्री ]
चसंग्रह
इस समय मेरे सामने उपस्थित है। इस ग्रंथमें बंध नेताम्बर सम्प्रदायमें 'कर्मप्रकृति' ग्रंथके कर्ता कथनकी प्रधानता होनेसे इसका नाम 'बध शतक' भी
प्राचार्य शिवशर्म माने जाते है और आपको रूढ हो गया है। परन्तु इस शतक प्रकरणकी रचनाका पूर्वधर भी बताया जाता है । श्राप कर्म साहित्यके विशेषज्ञ
सामञ्जस्य 'कर्मप्रकृति' के साहित्य आदिके साथ ठीक होते हुए अन्य सिद्धान्त श्रादि विषयों में भी अच्छी
नहीं बैठता । जो गम्भीरता और सूत्र-कथन-शैली कर्मयोग्यता रखते थे। श्रापका समय यद्यपि पूरी तौरसे
प्रकृति में है वह इस शतक प्रकरण में उपलब्ध नहीं होती, निीत नहीं है, फिर भी संभवतः विक्रमकी श्वीं शता
और इससे इसके शिव-शमकर्तृक होने में संदेह होता ब्दी अनुमानित किया जाता है । कर्मप्रकृति' ग्रन्थके
है। ऐसा मालूम होता है कि यह शतक' प्रकरण किसी अवलोकन करनेसे अापकी विद्वत्ताका यथेष्ट परिचय
अन्य के द्वारा ही संग्रह किया गया है । इसके शुरुमें
मगलाचरण और ग्रंथप्रतिज्ञाकी जो गाथा पाई जाती है मिल जाता है। इस ग्रंथकी रचना सुमम्बद्ध है और
वह इम प्रकार हैप्रतिपाद्य विषयके अच्छे प्रतिपादनको लिये हुए है । इसमें जिस रूपसे बध-उदय, उदीरणा, सक्रमण और
भरहन्ते भगवन्ते अणुत्तरपरकमे पथमिजयं। उपशम श्रादिका वर्णन दिया है वैमा सूत्रबद्ध,
बंधसयगे निबद्ध संग्रह मिणमो पबक्खामि ॥ संक्षिप्त कथन अन्य श्वताम्बरीय कर्म ग्रन्थों में बहुत ही
इस गाथामें अणुत्तर पराक्रम वाले अरहंत भगवान् कम देखनेमें आता है। इन्हीं प्राचार्य-द्वारा संकलित को नमस्कार करके बधशतकमे निबद्ध इम संग्रहको एक 'शतक' नामका प्रकरण भी कहा जाता है जो कहनेकी प्रतिज्ञा की गई है, इससे इस ग्रंथके एक संग्रह
__--- -...- ग्रंथ होने में तो कोई संदेह मालूम नहीं होता। परन्तु प्राचार्य मनधारी हेमचन्द्र जो इस शतक प्रक- ... .. रखके टीकाकार है उन्होंने इस ग्रंथ की गाथासंख्या संख्या मंगलाचरखकी गाथा सहित 1.होती हैं। १..बतलाई है जैसा कि उनके निम्न वाक्योंसे स्पा यदि मंगलाचरणकी गाथाको मुखग्रंयकीन मानी जावे है “श्री शिवराम सूरिभिः संचिसतरं सुखावो तो भी गायाभोंकी संख्या १.. रोती है जिसका
गापाशतपरिमाणनिष्प पथार्थनामकं शतकाव्यं 'गाथाशत परिमाणनिष्प वाले बाल्यके साथ विरोध प्रकरणमभ्यधाबीति"। जबकि इस प्रकरणकी गाथा होता है।