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ॐ अहम
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नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् ।
परमागमस्य बीजं भुवनैकगर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-बीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० बो० न० ४८, न्यदेहली
चैत्र-पूर्णिमा, वीरनिर्वाण मं० २४६६, विक्रम सं० १९६७
वर्ष ३ ।
उमारस्वाति-स्मरणा तत्त्वार्थमूत्र-कर्तारमुमास्वाति-मुनीश्वरम । श्रुतकालदेशीयं वन्देऽहं गुण मन्दिरम ॥
-नगरनाल्लुक शिलालेख नं०४६ तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता उन उमास्वानि मुनीश्वर की मैं वन्दना करता हूँ-उनके श्रीचरणोंमें नतमस्तक होता है-जो गुणोंक मन्दिर थ और करीब करीब श्रुतकेवली थे ।
श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमागोचरणोधताना पाथेयमध्ये भवति प्रजानाम॥
-श्रवणबेलगोन शिलालेख नं०1०५ श्रीमान् उमास्वाति वे मुनीन्द्र हैं जिन्होंने उस तत्त्वार्थमूत्रको प्रकट किया है जो कि मुक्तिमार्ग पर चलने को उद्यमी प्रजाजनों के लिये मूल्यवान पाथेय (कलेवा) के ममान है-मोक्षमार्ग पर चलने के लिये कमर कसे हुओं की आवश्यकताको पूरा करता हुआ उन्हें चलने में ममर्थ बनाने वाला है।
अभू दुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी । सूत्रीकृतं येनजिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुङ्गवेन ॥ स प्राणिसंरक्षणसावधानो बभार योगी किल गृध्रपक्षाम् । तदा प्रभृत्येव बुधा यमाहुराचार्यशब्दोत्तरगृपिन्छ । .
-अबबबेलगोब शिक्षालेखनं. १०८ उन (श्री कुन्दकुन्दाचार्य) के पवित्र बंशमें वे उमास्वाति मुनि हुए है जो संपूर्ण पदार्थोंके जानने वाले घे, मनिपुंगव थे और जिन्होंने जिनदेव-प्रणीत आगमके संपर्ण अर्थममूहकी सूत्ररूपमे रचना की है। वे प्राणियों की रक्षामें बड़े सावधान थे और इसके लिये उन्होंने एक बार पिंछी के रूप में गृध्र के परोको धारण किया था, उस पक्त से बुध-जन श्रापको 'गृध्रपिञ्चबाचार्य' कहने लगे थे।