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[फाल्गुन, वीरनिर्वाह सं०२५५
श्रीमान दानवीर जैन समाज भूषण स्वर्गीय सेठ । पृथ्वी सुरम्य जिसने गज मोतियोंसे । स्वानाप्रसादजी, कलकत्ताकी धर्मपत्नी सेठानी साहिबा ऐसा मगेन्द्र तक चोट करे न उस्पै, के अार्थिक सहयोगसे यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। तेरे पदाद्रि जिसका शुभ आसरा है।
आपने इसका परा व्यय 'श्री वीर पुस्तक माला' लोहा मंडी ागराको, जिसका यह ग्रन्थ द्वितीय पुष्प है, .
इन दोनों अनुवादोंकी मूलके साथ तुलना करनेसे प्रदान किया है। और इस तरह एक ग्रंथमालाको अपना यह स्पष्ट जाना जाता है कि गिरिधर शर्माका अनवाद कार्य चलाने में मदद की है, जिनके लिये श्राप धन्यवाद मूलके बहुत अनुकूल तथा भावपूर्ण है। दूसरे पद्योंके, के पात्र हैं।आपके दो छोटे छोटे पुत्रोका चित्र पस्तक में अनुवादकी तुलना परसे भी ऐसा ही नतीजा निकलता देखकर समाजके हितार्थ लाखों रुपये खर्च करनेवाले
है और खूबी यह है कि यह अनुवाद भी उसी छंदमें सेठ साहबके असमय वियोगकी स्मति नाज्ञा होकर किया गया है जिसमें कि मूलस्तोत्र निबद्ध है और
श्रा से बहुत वर्ष पहले वीरनिर्वाण संवत् २४५१ मे दुःख होता है और इन बच्चोंके चिरायु होने आदिके लिये अनायास ही हृदयसे श्राशीर्वाद निकल पड़ता है।
__ मेरी भावनाके साथ छपकर बम्बईसे प्रकाशित भी हो पुस्तक छपाई, सफाई तथा गेट-अपकी दृष्टिमे मी
चुका है । ऐसी हालतमें प्रस्तुत पुस्तककी 'दो शब्द'
नामकी प्रस्तावनामें साहित्य रत्न पं. भंवरलाल भहने अच्छी है और सर्व साधारणके पढ़ने तथा संग्रह करनेके योग्य है।
अपने पितामहकी इम कृतिका कीर्तन करते हुए और
इस प्रकाण्ड विद्वत्ता तथा कुशल काव्यज्ञानका फल (४) श्री आदिनाथ स्तोत्र ( समश्लोकी पद्या
बतलाते हुए जो यह कल्पना की है कि समश्लोकी नुवादसे युक्त)--अनुवादक, स्व. पं. लक्ष्मणजी
अनुवादकी कठिनाई के कारण ऐम अनुवादको असंभव अमरजी भह गरोठ । प्रकाशक, सेठ हज़ारीलाल जी
समझकर ही अब तक इस काव्य के समश्लोकी अनुवाद हरसुखजी जैन, सुसारी ( इन्दौर)। पृष्ठ संख्या, ३४ । न किये गये होंगे, वह निःसार जान पड़ती है । अस्तु, मूल्य, नित्य पाठ ।
यह पुस्तक जैन महिलादर्शके १८वें वर्ष के ग्राहकोंको यह प्रसिद्ध भक्तामर स्तोत्रका उमी छंदमें रचित
श्री. सौ. नाथीबाई जी धर्मपत्नी सेठ हरसुखजी रोडमल हिन्दी पद्यानुवाद है । मूलकी तरह अनुवादका भी एक
जी सुमारीकी ओरस भेटस्वरूप वितरित हुई है। एक ही पद्य है---मूलका संस्कृत पद्य ऊपर और उसके नीचे अनुयादका पद्य दिया है। अनुवाद साधारण है
(५) गोम्मटसार कर्मकांड-(मराठी सस्करण)
मूल लेखक, प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती । और कहीं कहीं बहुत कुछ अस्पष्ट जान पड़ता हैमूलके प्राशयका पूर्ण रूपसे व्य जक एवं प्रभावक नहीं
अनुवादक और प्रकाशक श्री नेमचन्द बालचन्द गांधी
वकील, धाराशिव । बड़ा साइज पृष्ठ संख्या ५२४ मूल्य है। नमूने के तौर पर 'मिन्नेभकुम्भ' नामक ३६पद्यका अनुवाद इस प्रकार है--
सजिल्द का ५) रु.।
यह ग्रन्थ हिन्दी अनुवादादिके साथ अनेक बार शार्दूल जो द्विरद मस्तकम गिराके,
प्रकाशित हो चुका है और जैन समाजका कर्म साहित्य भूभाग भूषित करे गज मौक्तिकोंको।
विषयक एक प्रधान प्रथ है। अभी तक मराठी भाषामें सो भी प्रहार करदे यदि पाश्रितों पे,
इसका कोई अनुवाद नहीं हुअा था। इसका यह मराठी होता समर्थ न कदापि त्रिलोकमें भी॥
संस्करण अपनी खास विशेषता रखता है। इसम मूल उक्त पद्यका जो अनुवाद कविवर पं० गिरधर शर्मा ग्रन्थकी गाथाओंके साथमें क्रमशः अनवाद देनेकी जी ने किया है वह निम्न प्रकार है--
पद्धतिको नहीं अपनाया गया है, बल्कि गाथा अथवा नाना करीन्द्रदलकुम्भ विदारके की, गाथाम्रोंके नम्बर देकर उनके विषयका यथावश्यकता