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________________ वर्ष, नियम साहित्य-परिचय और समालोचन अनवाद, व्याख्यान तथा कोष्टको श्रादिकी रचना-द्वारा जी गाँधी जीको जो भारी परिश्रम करना पड़ा है उसके स्पष्टीकरण किया गया है। एक विषयको एक ही स्थान लिये श्राप विशेष धन्यवादके पात्र हैं। आपने इसके पर जाने के लिये अनेक गाथाओंका सार एक लिये व शीतल प्रसादजीका बहुत आभार माना है दम दिया गया है। और इसी प्रकार अनेक और यहाँ तक लिखा है कि इसमें जो कुछ भी अच्छी गाथाश्रांक विषयको मिला कर एक ही कोष्टक भी बात है उस सबका श्रेय उक्त ब्रह्मचारीनीको है। करना पड़ा है। गाथाश्रीको क्रमशः अनुवाद पूर्वक अनः ब्रह्माचारी शीतलप्रसाद जी भी ऐसे सत्कार्य में महसाथ साथ देने पर ऐसा करने में दिक्कत होती थी, इम योग देने के कारण खासतौरसे धन्यवादके पात्र है। कठिनाईको दूर करने के लिये सब गाथाश्रीको क्रम ग्रन्थमें एक छोटामा (५ पष्ठका ) शब्दकोश भी पूर्वक अधिकार-विभाग-सहित एक साथ (१० ४६६ से लगा हुआ है, जिसम दो भाग है. पहलेमें कुछ शब्दों ५१२ तक) अलग दे दिया है। कोष्टकोके निर्माणसे का अर्थ मराठी भाषामें दिया है और दूसरेमें कुछ शब्दों विषयको समझने ग्रहण करने में पाठकों तथा विद्या- के अर्थ के लिये उन गाथाओंके नम्बर सामने लिखे हैं थियोको आसानी हो गई है। इस मंस्करणमें संदृष्टि जिनमें उनका अर्थ दिया है। साथ ही २१ पेजकी' आदिको लिये हुए २४५ कोष्टक दिये गये हैं, कोष्टकोंका विस्तृत विषय सूची भी लगी हुई है जिसमें ग्रंथके ४०० निर्माण बड़े अच्छे ढंगमे किया गया है और उनमें विषयोंका उल्लेख है, दोनों ही उपयोगी है। इनके श्रविषय दर्पणकी तरह प्रायः साफ़ झलकता है। जहां तिरिक्त ६ पेजका शुद्धिपत्र और ३ पेजका “मी काय कोटककी किमी विषयको विशेष स्पष्ट करनेको जरूरत केले" नामका अनुवादकीय वक्तव्य भी है। इस वक्तव्य पड़ी है वहाँ उसका वह स्पष्टीकरण भी नीचे दे दिया में मूल ग्रंथका निर्माणकाल ईसाकी आठवीं शताब्दी गया है। इस तरह इम अथको परिश्रमके माथ बहुत बतला दिया गया है, जो किमी मूलका परिणाम जान उपयोगी बनाया गया है। जो लोग मराठी नहीं जानते पड़ता है, क्योंकि जिन चामुण्डराय के समय में हम वे भी इम ग्रथके कोष्टकों परसे बहुत कुछ लाभ उठा अथकी रचना हुई है उनका समय ईमाकी दमवीं शतामकते हैं। ब्दी है-उन्होंने शक सम्वत् ६०० (ई. १७८ ) में इम ग्रंथको लिखकर तैयार करने में ७|| वर्षका 'चामुण्णराय पुराणकी रचना ममात की है। ममय लगा है, जिममें पं. टोडरमल जी की भाषा टीका ग्रंथम गाथाश्रीको जो एक मामिलाकर Runnऔर श्री केशववर्णी तथा अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ___ing matter के तौरपर-छापा गया है वह कुछ को संस्कृत टीकाका ७० शीतलप्रमाद जी से अध्ययन ठीक मालम नहीं हुआ। प्रत्येक गाथाको दो पक्तियों में काल भी शामिल है। अध्ययन कालके साथ माथ ही छापना अच्छा रहता-थोड़े ही कागजका फर्क पड़ता। भाषान्तर (अनवाद) का कार्य भी होता रहा है। गाथाश्रोंकी एक अनुक्रमणिका भी यदि ग्रंथमें लगादी ता. २० जुलाई सन् १९२६ मे कार्य प्रारम्भ होकर जाती तो और अच्छा होता । अस्तु । २२ फरवरी सन् १९३७ को समाप्त हुआ है । इम ग्रन्थकी छपाई मफाई और काग़ज़ मब ठीक है संस्करण के तैयार करने में वकील श्री नेमिचंद बालचद्र और वह मत्र प्रकारसे मग्रह करने के योग्य है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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