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________________ वर्ष ३, विव] दर्शनोंको मास्तिकता और नास्तिकताका माधार इन दोनों विरुद्ध मनोवृत्तियोंने भापसमें बहुत कुछ विचार करने वा भास्तिक-नास्तिक अत्यन्त उग्ररूप धारण कर दार्शनिक-जगत् , और कहे जानेवाले दर्शनोंकी विवेचनामोंकी जानकारी माथ ही साधारण जनताको भी दो भागोंमें करनेके बाद, मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ, कि विभक्त कर दिया । एक भागको आस्तिक और किसी पदार्थके अस्तित्व के स्वीकार करनेसे पादूसरे भागको नास्तिक कहते हैं, दोनों एक दूसरे स्तिक, तथा उसी पदार्थके न माननेसे दर्शन नाके दुश्मन हैं । हमें उस बुनियाद-आधारको स्तिक कहलाये। किसीने ईश्वर, प्रमा, खुदाको ढूंढ़ निकालना है, जिसके बल पर इन विरोधि- जगतका बनानेवाला स्वीकार करने, किसीने वेदमनोवृत्तियोंका बीज बोया गया, और जिसका प्रमाण. किसीने मदृष्ट-पुण्य-पाप, और किसीने परिणाम हमेशा दुखद तथा कटु ही रहा । अपने परलोकका अस्तित्व माननेवाले दर्शनको मास्तिक अगुओंके फुसलावमें आकर साधारण जनता घोषित किया। और जिनने इनके माननेसे इंकार भी इन मनोवृत्तिोंके प्रवाहमे बहनेसे अपने किया उन्हें नास्तिक घोषित किया गया। ऊपर आपको न रोक मकी । इस विरोधन इतना जोर लिखी आस्तिक नास्तिक मान्यतामोंके विषय में पकड़ा कि आये दिन धर्मके नामपर मानवताका यहाँ पर कुछ विवेचन करना मावश्यक है; जिस. खले आम गला घोंटा गया, इस भावनाने मानव- से विषयका स्पष्टीकरण हो जाये और मास्तिकता समाजको टुकड़े टुकड़े विभक्त कर दिया, जिससे तथा नास्तिकताकी भी जानकारी सरलतासे हो उनकी वा उनके देशकी अपार क्षति हुई। इस जाय। युगमे भी कभी कभी ये हत्यारी भावनाएं जाग ईश्वरवादी दाशनिक-जिन दर्शनों में ईश्वरको उठती हैं, जिमसे राजनैतिक आन्दोलनको भी जगतका कर्ता-हर्ता माना गया है-जैन-दर्शन, इसका कट परिणाम भुगतना ही पड़ता है। इस बौद्धदर्शन और चार्वाक दर्शनको ईश्वर न माननेके समय तो हमें ऐसी दशा उत्पन्न कर देना चाहिये, कारण नास्तिक घोषित करते आये हैं। यह ठीक जिससे सभी दार्शनिक वा जनसाधारण एक है, कि जैनदर्शन ईश्वर नहीं मानता, पर ईश्वरादूसरेको अपना भाई समझकर देशोद्धार आदि स्तित्व मिद्ध होनेसे पहले उसे नास्तिक कहना कार्यों में कन्धामे कन्धा जुटाकर आगे बढ़ते जावें। उचित न होगा, युक्तिके बलपर यदि ईश्वर सिद्ध इसके लिये पक्षपात वा अपनं कुलधर्मका मोह होजाय तो जैनदर्शनको नास्तिक ही नहीं, और जो छोड़कर युक्ति-अविरुद्ध दर्शनकी मास्तिकता और कुछ चाहें कहें । हाँ, तो यहाँ पर ईश्वरके विषयमें नास्तिकता पर हमें विचार कर लेना चाहिये, विवेचना की जाती है। कतिपय ईश्वरवादी व्यर्थ दूसरोंको नास्तिक कह कर, उन्हें दुःखित दार्शनिकोंका अभिमतहे कि इस युगसे बहुत पहले करने और भड़कानेसे क्या लाभ १ इन्हीं दुर्भाव- इस दुनियाँका कोई पता न था, केवल ईश्वर ही नामोंने तो भारतको गारत कर दिया; अब तो मौजूद था। एक समय ईश्वरको यद्यपि यह परिसम्हलें। पूर्ण था-एकसे अनेक होने वा सृष्टि रचना करने
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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