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अनेकान्त
[फाल्गुन वीर-निर्वाण सं० २४
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महापुरुष थे; किन्तु फिर भी जिस प्रकार शानल नन्दन करते हुए दीन वचनोंमें प्रार्थना करो कि हम शृगाल है के पाल्हादक बनमें भी दावानल सुलग जाता है, में गिर नहीं । बाचालदूतकी दर्पपूर्ण कटुक्तियों पर कुलही चरित्र नायकके भी उदार एवं शीतल हृदयभ क्रोध- पातको उत्तेजनात्मक रोष हो पाया और क्रोधसे दांतों म्वाला प्रज्वलित हो उठी। मोहकी माया या प्रबल दाग श्रोष्ठको दबाता हुआ बोल उठा कि "अरे मूर्ख हुआ करती है; शिष्य मोह और बौद्ध-मदान्धनाने गम- दून! ओ, हमें उस उद्धत प्रतिवादीका निमन्त्रण उजवल सुधाकरकी सुमधुर सुधाको विकराल : साकार है । हे अभिमानी सन्देश वाहक ! उस धृष्ट विषम विषके रूपमें परिणत कर दिया। हरिभद्र सूरि प्रतिवादीको माथमें यह शर्त भी कह देना कि जो पराउठे और वेग पूर्वक वायुको चालसं चलते हुए चौमो नित होगा; उमे प्राण दण्ड दिया जावेगा। यह शर्त से बदला लेने के लिये राजा सूरपालकी सभा में पहुंचे। स्वीकार हो तो हम वाद-विवादमें सम्मिलिन हो सकते राजाको तदनुरूप आशीर्वाद दिया और परम हमकी है; अन्यथा नहीं"। दूतने तत्काल उत्तर दिया कि रक्षाके लिये भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दिया; "पराजितको जलते हुए तेलके कड़ाहेमें कूदना होगा; एवं बौद्धोंसे वाद विवाद कर प्रतिशोधकी प्रज्वन्निन यही प्राण-दंडकी रूप रेखा होगी। यदि आपको पूरा २ विकराल ज्वालाको शांत करनेकी अपनी अभिलाषा आत्म विश्वास हो कि मैं ही विजयी होऊँगा; तो ही प्रकट की। राजाने नम्रता पूर्वक निवेदन किया कि श्रापको वाद-विवाद के क्षेत्रमें उतरना चाहिये, अन्यथा बौद्ध प्रतिवादी तो अनेक है और आप केवल एक ही पराजयके भीषण कलक के साथ प्राणोस हाथ धोना है, अतः यह सामञ्जस्य कैसे हो सकेगा ? हरिभद्रसरिने पड़ेगा और साथ साथ बौद्ध शासनके सौभाग्य भोको सिंहवत् निर्भयता पूर्वक उत्तर दिया कि अाप भी भीषण धक्का लगेगा; एवं बौद्ध-शासन-प्रभावना पर निधित् रहें। मैं अकेला ही उन प्रतिवादी रूप हाथियों कलक-मुद्राकी अमिट छाप लग जायगी"। इन वचनों के समूहमें सिंहवत् पराक्रमी सिंह होऊँगा । हम पर राना से कुलपतिको मार्मिक आघात पहुँचा और चोट खाये ने एक बाचाल किन्तु बुद्धिमान दूतको बौद्ध कुलपति हुए मर्पकी भांति दूनको भर्त्सना देता हुआ बोला कि के समीप शास्त्रार्थका निमन्त्रण स्वीकार करने के लिये "हे मूर्खाधिराज ! हमारी चिन्ता न कर और अधिक भेग । सन्देश वाहकने जाकर कठोर भाषामें गर्जना प्रलाप मत कर | जा; हम शास्त्रार्थ के लिये आते हैं; की कि "हे यौद्ध-शिरोमणि तर्क-पंचानन" आप अपनेको राजास कह देना कि मब व्यवस्था करे, किसी बातकी न्याय वन-सिंह समझ बैठे हो; किन्तु अभी तक प्रति.. त्रुटि नहीं होने पावे।" वादी मतंगज स्वछंदता पूर्वक विचरण कर रहे हैं; उन- विवाद-सभाकी सर्व प्रकारेणपूरी व्यवस्था की गई। का दमन क्यों नहीं करते हो? ऐसा ही कोई दुर्दमनीय सभापति, सभ्य, मध्यस्थ, दर्शक और भोताओंसे सारी असंगज राजा सूरपालकी राज-सभामें पाया हुआ है; सभा सुशोभित होने लगी। समय होते ही राजाभी उसने प्रतिमालपत् ललकारा है कि यदि अपनी मान. उपस्थित हुआ। प्राण-घातक शर्त के कारण प्रत्येक मर्यादाकी रक्षा करना चाहते हो तो विवादात्मक युद्ध- भक्तिके हृदय में उत्सुकता और म्याकुलताका माधर्य नमें ग्रामो; अन्यथा बौद्ध धर्मकी पराजय स्वीकार जनक संमिभय था। संपूर्ण समामें सूची मेव नीर