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________________ व, किरण हरिय-रि कि प्रतिमाके कपठ-स्थानपर इन्होंने तीन रेखाएँ खींच की ओर प्रस्थान कर दिया। माक्रमणकारियोंके समीप दी; जिससे कि यह प्रतिमा जिन की नहीं रहकर बौद्धकी आते ही हंस उनसे अभिमन्युकी तरह युद्ध करता गुमा बन गई और तदनुसार उसपर पैर रखकर ये दोनों भी वहीं वीर-गतिको प्राप्त होगया । आगे बढ़ गये। रेखा-प्रक्रियासे कुलपतिको विश्वास हो परमहंसका वाद विवाद भोर अवसान गया कि ये दोनों नवीन ब्रह्मचारी ही जैन है । “जैन है" परमहंस वहाँसे शीघ्रगतिसे भागता हुआ राजा ऐसा शात होते ही प्रतिशोधकी और प्रतिहिंसाकी भयंकर सूरपालकी राज-सभामें पहुंचा और सारा वृत्तान्त क ज्वाला प्रज्वलित हो उठी और मृत्यु दण्ड देना ही सुनाया। राजाने शरणागतको अभयदान दिया। तत्पकुलपतिको उचित दण्ड ज्ञात हुआ । हंस और परमहंस भात हंसको मारकर वे आक्रमणकारी भी सूरपालकी को जब ऐसे भयंकर दण्ड-विधानके समाचार सुनाई पड़े तो वे यहाँसे गुप्त रीतिसे भाग निकले। कुलपतिको सभामें पहुंचे और परमहंसकी माँगणी की। सूरपालने देनेसे इकार कर दिया। सेनाकी टुकड़ीके अध्यक्षने उनके भागनेके समाचारसे प्रचंड क्रोध पाया और उसने तत्काल विद्यापीठमें उपस्थित किसी बौद्ध-राजाकी अनेक प्रकारके भय बतलाये, किन्तु सरपाल अचल रहा। अंतमें यह निभय हुआ कि परमहंसके साथ सेनाके कुछ सैनिकोंको उन्हें पकड़कर लानेका कठोर बौद्धोका वाद विषाद हो और यदि परमहंस पराजित हो आदेश दिया। जाय तो उसे बौदोंको सौंप दिया जाय। तदनुसार इस आदेश- पालक सेनाके कुछ पदाति और अश्वा प्राणघातक परीक्षामें भी परमहंस स्वर्णवत् प्रामाणिक रोही उनका पीछा करनेके लिये चल पड़े और जब यह । बात हंस और परमहंसको पीछेकी ओर मुड़कर देखनेपर ठहरा और विजयी हुआ। आक्रमणकारी अपना सा सात हुई तो हंसने परमहंसको कहा कि देखो! अब मुँह लिये हुए लौट गये। परमहंस सूरपालके प्रति अपनी रानी करिन हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता दुमा वहाँसे चल दिया । तुम तो सामने दिखलाई पड़नेवाले इस नगरमें चले तेज़ गतिसे चलता हुआ और अनेक कठिनाइयों पर जाम्रो और यहाँके राजा सूरपालको संपूर्ण वृत्तान्तसे । विजय प्राप्त करता हुमा अन्तमें परमहंस अपने गुरु हरिभद्रसूरिके समीप पहुँचा। सारा इतिहास करणाअवगत करके इसकी सहायतासे गुरुजी (हरिभद्र सुरि जनक भाषामें बतलाया और गुरु-प्राशाकी अवहेलना जी) के पास चले जाना । सारा वृत्तान्त उनकी सेवामें करनेके लिये अपनी बोरसे एवं बड़े भाई इसकी बोरसे सविनय निवेदन करना और प्राशाकी अवहेलना करने क्षमा मांगते हुए देव दुर्विपाकसे वार्तालाप करते हुए से प्राप्त पापके लिये प्रायबित करना; एवं मेरी ओरसे भी भाग-अक्शा के लिये चमा मांगते हुए निवेदन ही तत्काल स्वर्गवासी होगया। करना किस तो धर्मकी रक्षा करते हुए बीर-गतिको बौदोंके पति हरिभद्रसारिका अपएर प्रकोप प्राप्त होगया है। परमास पो माई की इस कमा-रस- हरिमन सरिको इस प्रकार बीब-कात्यों और पुरापूर्व वातसे विहल हो उठा, किन्तु मयानक स्थिति और चारोका शान होते ही भयंकर कोषका समुद्र उमड़ समय देखकर बडे भाईको भद्धा पूर्वक प्रामकर नगर भाया । यति हरिमा परि एक योगी और प्राध्यामिक
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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