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हरिभद्र-सूरि
[.. रतनबाब संघवी, न्यायतीर्थ-विशारद]
(गत किरण से आगे)
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जीवन-सामग्री और तत्मीमांसा और कवि कल्पनोंके सहारे ही तथा कथित इतिहासोंकी भारतीय साहित्यकारोंके पवित्र इतिहासमें यह एक रचना करनी पड़ी। वर्तमान कालीन इतिहासकारोंको
दु:खद घटना है कि उनका विश्वनीय और भी उन्हीं तथा कथित इतिहासों, उपलब्ध कृतियों, और वास्तविक जीवन-चरित्र नहींके बराबर ही मिलता है। अस्तव्यस्तरूपमे पाये जानेवाले उद्धरणोंके आधारसे ही इसका कारण यही है कि प्राचीन कालमें अात्मकथा चरित्र चित्रण करना पड़ रहा है। लिखनेकी प्रणाली नहीं थी, और श्रात्मश्लाघासे दूर रहने चरित्रनायक हरिभद्र सूरिकी जीवन-सामग्री भी की इच्छाके कारण अपने सम्बन्धमें अपने ग्रन्थों में भी उपयुक्त निष्कर्ष के प्रति अपवादस्वरूप नहीं है । हरिभद्र लिखना नहीं चाहते थे। कुछेक साहित्यकारों ने अपनी सूरिकी जीवन-मामग्री वर्तमान में इतनी पाई जाती है:कृतियोंमें प्रशस्तिरूपसे थोड़ा सा लिखा है; किन्तु उसमे (१) श्री मुनिचन्द्र सूरिने संवत् ११७४ में श्री हरिजन्म-स्थान, गुरुनाम, माता पिता नाम, एवं स्व-गच्छ भद्र सूरि कृत उपदेशपदकी टीका के अन्तमें इनके जीवप्रादिके नामका सामान्य ज्ञान-मात्र ही हो सकता है, नके मम्बन्धमें अति मंक्षेपात्मक उल्लेग्व किया है। विस्तृत नहीं। पीछेके साहित्यकागेने प्राचीन-साहित्यका- (२) संवत् १२६५ में श्री सुमतिगणिने गणधररोके सम्बन्धमें इतिहासरूपसे लिखनेका प्रयास किया है; सार्धशतककी बृहद् टीकामें भी इनके मम्बन्धमें कुछ किन्तु उसमें इतिहास-अंश तो अति स्वल्प है और किं- थोड़ा मा लिखा है। वदन्तियाँ एवं कवि-कल्पना ही अधिक परिमाण में है। (३) भद्रेश्वर सूरि कृत २३८०० श्लोक परिमाण यह सिद्धान्त केवल जैन साहित्यकारोंके सम्बन्धमें ही प्राकृत कथावली में भी हरिभद्र सूरिके सम्बन्धमें कुछ नहीं है, बल्कि मम्पूर्ण भारतीय साहित्यकारोंके सम्बन्धमें परिचय मिलता है । श्री जिनविजय जीका कहना है कि पाया जाता है।
इसका प्रणयन बारहवीं शताब्दीमें हुअा होगा। "जिन शामनकी अधिकाधिक प्रभावना हो;" इसी (२) मवत् १३३४ में श्री प्रभाचन्द्र सरि द्वारा विएक उद्देश्यने संग्रहकागेको किंवदन्तियों और कवि-कल्प- रचित प्रभावक चरित्रमें चरित्र नायक के सम्बन्धमें. नाओकी ओर वेगमे प्रवाहित किया है। इसके साथ २ विस्तृत काव्यात्मक पद्धतिमे जीवन कथा पाई जाती है। काल व्यवधानने भी इतिहास सामग्रीको नष्ट-प्रायः कर (५) संवत् १४०५ में श्री राजशेखर सूरि द्वारा दिया; और इसीलिये उन्हें प्रभावनाके ध्येयकी पतिके निर्मित प्रबन्ध कोषमें भी प्रभावक चरित्रके समान ही लिये अवशिव चरित्र सामग्री के बलपर तथा किंवदन्तियों अति विस्तृत जीवन चरित्र पाया जाता है।