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________________ अनेकान्त [फाल्गुन, बीर-निर्वाण सं० २४६६ मगवान सिद्धार्थ कुखभानु न केवल अहिंसाके का प्रश्न उठाने की आवश्यकता नहीं, वह तो स्वभावसे महासको लेकर प्रवतीर्ण हुए थे किन्तु जीवमात्रकी ही उसमें गर्मित है किन्तु वहाँ राजनीतिकी ग्रंथियाँ समानताको प्रत्यसीमून कराने पाये थे। विचार-वैषम्य खोलनेवाला कर्मयोगी गाँधीव नहीं । हारा होनेवाले विरोधके शमनको स्थावाद जैसी विभूति प्रसिधारी हाथ कृपाणरिक्त होते हुए भी विश्व के साथ भगवानने दर्शन दिया था। नायकत्व सफलतापूर्वक कर सकते हैं, इसके तुमसे बढ़भगवान वर्धमानका अहिंसा और विश्वशाँतिका कर और कौन जीवित उदाहरण हो सकता है ? निर• पाठपज्ञान और कैन्यके छिपानेका विधान नहीं था। धान नहा था । तिशय-क्रांति का हृदय इतनी प्रवाधशांतिसे उसका जन्म नाथवंशी युद्धवीर पत्रियकुल-पुंगवके परी शामित हो यह भारतवर्षके ही भाग्य भौर जलवायुकी पित और विकान्त हृदयमें हुमा था। विचित्रता है। वीर जिनेन्द्रकी तपोरत मारमाने वास्तवमें इन्द्रभूत, वायुभूत, भामभूत जैसे गणधरों भेणिक-बिम्बसार सत्रियकं नृशंस, दयाविहीन और कर्कश हृदयमे विश्वशांतिकी कल्लोन प्राणीदयाका अविरल श्रोत, और अंगेश कुणिक-मजात-शत्रु, कौशल-रक्षक प्रसेनजित जैसे नरेशोंके ही नहीं किन्तु जेष्ठा, चन्दना, चेतना जैसी राज्यलिप्साये ओतप्रोत वक्षस्थलसे मानवसमताकी धांगनामोंके हृदयोंको भी भालोदित किया था और भावाज अपम्चेन्द्रिय जीवों को भी उद्वारका संदेश, विश्वशांति तथा भ्रातृत्व फैजानेको दीक्षित किया था। कैमा विचित्र विरोध है। ___ "न गच्छेज्जैनन्दिरम्"के शमन करनेकी शक्ति तुम्हारे सुन्दर शरीर सम्पत्ति-युत नव-हृदयमें रूमा सौम्पमूर्ति जिमराज तुम्हारे हाथमें ही है, अर्थवादको तया भयंकर तपनिगृहीत किन्तु स्वभाव-सरल भारममोर चिप्रगतिसे दौड़नेवाले संसारको रुकाये बौर विश्व संयम है। देवांगनाओंके मधुर हास्य तथा प्रलोभनों में पास हो ही नहीं सकता, पर इसका मेहरा तुम्हारे भी मदनपर रुट हो उसे दहन करनेको शिवशक्तिकी से सिरोंपर ही बाँधा जा सकता है। मिद्धान्तोंके भावश्यकता नहीं। बिना भोग तथा तलवारके मदनदिग्विजयकी वाचा जिनके हदयों में दलित रहती है विजय ही नहीं. विश्वविजय करनेवाले प्रतिवीरको क्यों उनका शौर्य पाजकसकी जैन समाजमें प्राप्त कराना न बोधिसत्व भादरकी ष्टिमे देखते ? कुसीनाराके निर्माण तुम्हारी ही कृपापर अवलम्बित है। पथगामी समवयस्क तथा गतमपिने पदि तुमें सर्वश भगवन् ! तुम्हारे द्वारा प्रचारित धर्ममें भगवान् और सर्वदर्शी कहकर विभूषित किया तो इससे अधिक बुद्धकी मान-अबहेलना वा अपलामको स्थान नहीं। बुद्धभगवान् जैसे भापके प्रति और क्या कर सकते थे ? प्रभु ईसाकी दवा तुम्हारी बैसी तपस्याओंमें निष्णात हृदयोंको द्रवित करनेवाले और बरवस पॉस् बहा देनेनहीं। वस्तुनिस्पषमें बात बातमें बुद्ध होनेकी भाव- वाले उपसगोंके बीचमें भी शांति और धमाके भविचन स्वासको तुमारे सापेक-वादने सदाके लिये दूर कर अवतार यदि तुम्हारी तपस्या पूर्ववत् बनी रही तो क्या दिया। प्राचीमानसे बडाँ मातृत्व हो सकता है वहाँ भाबर्ष ? यदि विश्व के सबसे बड़े शांति के अवतार कर गली स्वातनपबिप्सा और एक उोरयाधिकृत भुत्व र तुम्हारा भावाहन किया जाब तो क्या प्रत्युक्ति ?
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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