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________________ अनेकान्त [माध, बीरनिर्वाण सं०२४१६ स्थापन करेंगे । इस लेखमें अन्य व्यक्तियों द्वारा केवल दो ही घंटेमें अवलोकन किया था अतः उपस्थित किये हुए दो नवीन आदर्शोकी ओर जैन- उसके पूरे विवरणसे मैं अज्ञात हूँ, फिर भी थोड़े समाजका ध्यान आकर्षित करता हूँ। आशा है समयमें जो कुछ देखा उससे वह संस्था एक आदर्श समाजके नेता एवं विद्वान्गण उनपर गंभीर संस्था प्रतीत हुई । जैन समाजकी स्तुतिके इच्छुक विचार करेंगे। व्यक्तियोंको यहांस कुछ बोध ग्रहण करना चाहिये । गत वर्ष इधर कलकत्ता पाते समय रास्तेमें इसी प्रकार एक बार आते समय दिल्लीमें पागरे ठहरा था तो वहाँकी 'दयालबाग' नामक एक आदर्श मन्दिरको देखनेका सुअवसर मिला, संस्थाके आदर्शको देखकर दंग रह गया ! इतने उसका नाम है 'बिडला मंदिर।' परवार बन्धुके थोड़े वर्षोंमें इतनी महती उन्नति सचमुच आश्चर्य- सुयोग्य सम्पादक श्रीयुत् धन्यकुमारजी जैन भी जनक है ! मनुष्य जीवनको सुखप्रद बनाने एवं साथ थे। निःसन्देह यह एक दर्शनीय देवस्थान बितानेकी जो सुव्यवस्था वहां नजर आई वह है। भारतवर्षमें यह अपन, ढंगका एक ही है । इम भारतकं सभी समाजोंके लिये अनुकरणीय बोध मंदिरस सर्व-धर्मसमभावका सुन्दर आदर्श-पाठ पाठ है । जीवनोपयोगी प्रायः सभी वस्तुएँ वहाँ मिलना है । यद्यपि मुख्य रूपमे यह मंदिर बिड़ला प्रस्तुत की जाती हैं, और उस संस्थामें रहने वाले जी के उपास्य श्री लक्ष्मीनारायणजीका है, पर सभी लोगोंको उन्हींका व्यवहार करना आवश्यक वैसे मभी प्रसिद्ध धर्मोके उपास्यदेवों-महापुरुषोंकीमाना गया है। बड़े-बड़े बुद्धिशाली इन्जिनियर मूर्तियाँ एवं चित्र इसमें अंकित हैं, स्थान स्थान मादि कम वेतनमें संस्थाको अपनी ममझ कर पर प्रसिद्ध महापुरुषोंक उपदेश वाक्य चुन चुन कर्तव्यके नाते संवा कर रहे हैं। उनकी पवित्र कर उत्कीर्ण किये गये हैं, जिससे प्रत्येक दर्शन सेवा एवं लगनका ही यह सुफल है कि थोड़े ही वाले निसंकोचसे वहां दर्शनार्थ जा सकते वर्षोंमें करोड़ों रुपयोंकी सम्पति वहाँ हो गई है है और सब एक साथ एक ही मंदिरमें बैठकर और दिनोदिन संस्थाका भविष्य उज्ज्वल प्रतीत अपने अपने उपास्य देवोंकी उपासना कर सकते हो रहा है। संस्थामें काम करने वाले सभी हैं। कहां सर्व-धर्मसम-भावका इतना ऊँचा आदर्श सुशिक्षित हैं, शिक्षाका प्रबन्ध भी बहुत अच्छा है। और कहां हमारा जैन ममाज, जो दिगम्बर श्वेएक-दमरेमें बहुत प्रेम है और सभी व्यक्ति स्वस्थ ताम्बर मूर्तियों एवं तीर्थों के लिये लाखों रुपये व्यर्थ एवं सुखी दिखाई देते हैं। बरबाद, कर रहा है। इस आदर्शका अनुसरणकर धार्मिक संस्कारोंके सुदृढ़ बनाने के लिये संस्था यदि हमारा जैन समाज थोड़ा सा उदार होकर में रहने वाले सभी व्यक्ति सुबह शाम नियत अपनी साम्प्रदायिक कट्टरताको कम करदे तो समय एकत्र होकर प्रार्थना, व्याख्यान श्रवण ज्ञान- आज ही ममाज उन्नतिकी ओर अग्रसर होने गोष्ठी करते हैं। लाखों रुपयोंकी लागतका एक लगे । लाखों रुपयोंका व्यर्थ खर्च बच जाय और नया मन्दिर बन रहा है । यद्यपि मैंने इस संस्थाका वे रुपये दयालबारा-जैसी संस्थाके स्थापनमें, जैन
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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