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वर्ष ३, किरण )
जैन समाजके लिए अनुकरणीय मादर्श
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धर्मके प्रचारमें, नवीन जैन बनाने में लगाये जाएँ महत्व देकर दिनोंदिन हम अधिकाधिक कट्टरता तो कोई कारण नहीं कि हम विश्वमें गौरव प्राप्त धारण कर रहे हैं। साधारणतया यही धारणा हो नहीं कर सकें।
रही है कि उनसे हमारा मिलान-मेल हो ही नहीं देहलीसे बनारस आने पर वहाक भेलुपुरके सकता, उनको धारणा सदाभ्रान्त है, पर वास्तवमें जैन मन्दिरको देखकर प्रथम मुझे आनन्द एवं वैसी कुछ बात है नहीं, यह मैंने अपने "दिगम्बर
आश्चर्य हुआ कि वहां श्वेताम्बर जैन मंदिर में श्वेताम्बर मान्यता-भेद शीर्षक लेखमें जो कि भनेश्वेताम्बर मूर्तियोंके साथ साथ कई दिगम्बर कान्तक' वर्ष २ अंक १० में प्रकाशित हुआ है, मूर्तियां भी स्थापित हैं। पर पीछेसे मालूम हुआ कि बतलाया है। हमारी वर्तमान विचारधाराको देखते उसीके पासमें दिगम्बर भाइयोंका एक और मंदिर हुए उपयुक योजना केवल कल्पना-स्वप्नसी एवं है जिसमें बहु संख्यक मूर्तियां हैं। यदि हमारे असम्भवमी प्रतीत होती है, संभव है मेरे इन मंदिरोंमें दोनों मम्प्रदायोंकी मूर्तियाँ पासमें रखी विचारांका लोग विरोध भी कर बैठे, पर वे यह रहें और हम अपनी अपनी मान्यतानुमार बिना निश्चयसे स्मरण रखें कि बिना परस्पर संगठन एक दृमरेका विरोध किये ममभाव पूर्वक पूजा एवं सहयोग कभी उन्नति नहीं होनेकी । करते रहें तो जो अनुपम आनन्द प्राप्त हो मकना श्वेताम्बर एक अच्छा काम करेंगे तो दिगम्बर है यह तो अनुभवको ही वस्तु है। ऐमा होने पर उसमें अमहिपा होकर उसकी असफलताका हम एक दुमरेमे बहुत कुछ मिल-जुल मकत है। प्रयत्न करेंगे । दिगम्बर जहां प्रचार कार्य करना
आपमी विरोध कम हो सकता है, एक दूमकं प्रारम्भ करेंगे श्वेताम्बर वहां पहुंच कर मतभेद विधि-विधानसे अभिज्ञ होकर जिम मम्प्रदायकी डाल देंगे। तब कोई नया जैन कैसे बन सकता विधिविधानमें जो अनुकरणीय तत्व नजर आवे है ? अन्य ममाजम कैमे विजय मिल मकती है ? अपने में ग्रहण कर मकते हैं। एक दूमांक विद्वान अर्शन हमारा कोई भी इच्छिन कार्य पूर्ण रूपसे
आदि विशिष्ट व्यक्तियोंसे महज पर्रािचन हो सफल नहीं हो मकना । उदाहरणार्थ दिगम्बर मकने हैं। दोनों मंदिरोंके लिये अलग अलग महावीर जयंतीकी छुट्टीकं लियं या अन्य किमी जगहका मूल्य मकान बनानेक खर्च, नौकर, पूजा- उत्तम कायकं लिये आगे बढ़ेंगे तो श्वेताम्बर ममरी, मुनीम रखने आदिका मारा खर्च आधा हो अंग कि हम यदि महयोग देंगे और कार्य मफल जाय। अनः आर्थिक दृष्टिसं यह योजना बहुत हो जायगा नो यश उन्हें मिल जायगा अतः हम उपयोगी एवं लाभप्रद है । पर हमारा समाज अभी अपनी नृती अलग ही बजावें, नब कहिये मफलता तक इसके योग्य नहीं बना, एक दूमरकं विचागं- मिलगी कम ? मवप्रथम यह परमावश्यक है कि जो को हीन क्रियाकाण्डोंको अयुक्त और मिद्धान्तको आदर्श काय हम दोनों समाजों के लिये लाभप्रद है सर्वथा भिन्न मान रहे हैं, इधर उधरम जो कुछ कमसे कम उमम ना एक दूमरेको पूर्ण सहयोग साधारण मान्यता-भेद सुन रखे हैं उन्हींको बहुत दें। महावीर जयनी आदिके उत्मव एक साथ